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Friday, 3 May, 2024
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दिल्ली के ये ‘बीमार’ अस्पताल कैसे करेंगे किसी रोगी का इलाज

दिल्ली सरकार के अस्पतालों की हालत जर्जर हो चुकी है. कहीं मरीज़ वार्ड में पंखा गिरता है तो किसी अस्पताल में गर्भवती महिला को डॉक्टर भर्ती नहीं करते और वह पार्किंग में बच्चा जन्म दे देती है.

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नई दिल्ली: सरकारी अस्पतालों का हाल किसी से छुपा नहीं है. चाहे वह केंद्र सरकार द्वारा चलाया जा रहा हो या राज्य सरकार द्वारा स्थिति एक जैसी ही है. हिंदुराव अस्पताल के एक वार्ड में पंखे का गिर जाना हो या फिर दीपचंद बंधु अस्पताल में गर्भवती महिला का डॉक्टरों द्वारा भर्ती न किया जाना और महिला का अस्पताल की पार्किंग में बच्चे को जन्म देना या फिर अस्पताल के प्रसूती विभाग में एक बेड पर कई-कई महिलाओं का होना हो.

दिल्ली के हरिनगर इलाके में स्थित दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल का नज़ारा अद्भुत है. अस्पताल बाहर से तो एकदम चकाचक है लेकिन अंदर घुसते ही जगह-जगह कचरों के ढेर केंद्र और दिल्ली सरकार के स्वच्छता अभियान को मुंह चिढ़ाते नज़र आ जाएंगे. धूम्रपान निषेध क्षेत्र में सिगरेट पीते लोगों को पूछने वाला कोई नहीं है. सबसे बुरी स्थिति प्रसूति वार्ड की है. एक बेड पर दो से तीन महिलाएं हैं वह भी अपने बच्चे के साथ. एक महिला को बैठना पड़ता है तब दो महिलाएं लेट पाती हैं.

प्रसूति वार्ड के शौचालय की छतों से प्लास्टर झड़ रहे हैं. एक ओर दिल्ली सरकार द्वारा जननी सुरक्षा योजना के तहत गर्भवती महिलाओं को विशेष सेवाएं देने के दावे किये जा रहे हैं वहीं दूसरी ओर प्रसूति वार्ड में सफाई भी चार दिन बाद हो रही है. न तो बेड पर चादर है न ही साफ़ वाशरूम. जंग लगे कूलर में आखिरी बार पानी कब पड़ा यह तो अस्पताल प्रबन्धन ही जाने. कूलर में पानी नहीं है इसलिए डेंगू मच्छरों के पनपने की गुंजाइश नहीं है. हालांकि अस्पताल में ऐसी कई जगह है जहां डेंगू मलेरिया के मच्छर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के हर रविवार दस मिनट डेंगू पर वार की पोल खोल रहे हैं.

अस्पताल में लगा रहता है गंदगी का ढेर/ फोटो- यशस्वी पाठक



मनीष (तीमारदार) ने दिप्रिंट को बताया कि ‘यहां चोरियां हो रही हैं 12 सितम्बर को हॉस्पिटल की कैंटीन से मेरे 10 हज़ार रूपये चोरी हो गए…हॉस्पिटल में खारा पानी आ रहा है हमें पानी तक खरीद कर पीना पड़ रहा है.’ राष्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल की वेबसाइट पर इस अस्पताल के सम्पर्क सहायता डेस्क के 9 लैंडलाइन नम्बर दिए गए हैं मजाल क्या कि एक भी नंबर पर आप की कॉल का जवाब मिल जाए.

पिछले दिनों दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजेंद्र गुप्ता ने दीपचंद बंधु अस्पताल की पार्किंग में हुई डिलीवरी पर दिल्ली सरकार को घेरा है.  डॉक्टरों द्वारा गर्भवती महिला को भर्ती न करना यह बताता है कि दिल्ली सरकार की स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है. केजरीवाल सरकार स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर हजारों करोड़ रूपये खर्च कर रही है, लेकिन प्रसव पीड़ा से तपड़ती हुई महिला के साथ डॉक्टरों के दुर्व्यवहार के कारण उसे पार्किंग में डिलीवरी करनी पड़ी. यह घटना दिल्ली सरकार के अस्पतालों की वास्तविक स्थिति और मरीजों के प्रति उनका रवैया दर्शाता है.  विजेन्द्र गुप्ता सोमवार को दिल्ली के उपराज्यपाल श्री अनिल बैजल से मिलकर पूरे मामले की विजिलेंस जांच की मांग करने जा रहे हैं.

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इस मामले में आप पार्टी की आतिशी ने कहा, कि यह मामला हमारे संज्ञान में है. हमने पिछले पांच वर्षों में दिल्ली के अस्पतालों में काफी सुधार लाने की कोशिश की है.
महिला वार्ड में नहीं है पर्याप्त बेड, एक बेड पर दो से चार महिलाएं/फोटो- यशस्वी पाठक

अपनी जर्जर इमारत और स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर केंद्र द्वारा संचालित लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज भी नाम कर चुका है. 1916 में स्थापित यह अस्पताल दिल्ली के सबसे पुराने अस्पतालों में शामिल है. इमारत की ईंटें तक दिखने लगी है. अस्पताल के प्रसूति वार्ड में बेड की किल्लत है, एक बेड पर 2 महिलाएं हैं. महिलाओं का कहना है कि वाशरूम इतने गंदे हैं कि इस्तेमाल करते भी डर लगता है कहीं गंदगी की वजह से कोई संक्रमण रोग न हो जाए. अस्पताल में तीमारदारों के बैठने की कोई व्यवस्था भले ही न हो लेकिन अस्पताल के गलियारों में सोते कुत्ते ज़रूर मिल जायेंगे. रोगी परिजन प्रतीक्षालय पर ताला लगा है. केंद्र सरकार जब ‘स्वच्छ भारत अभियान’ को लेकर इतनी गंभीर है कि साफसुथरी संसद की सफाई करती दिखती है तो ऐसे में इस अस्पताल के हर कोने में फैला कचरा, अभियान का कचरा कर देता है.

अस्पताल की हालत के बारे में नर्सों और कर्मचारियों का कहना है कि जितनी सुविधायें हमारे पास है हम उस आधार पर मरीजों की पूरी देखभाल कर रहे हैं. एक बेड पर एक से ज्यादा मरीज़ रखना हमारी मजबूरी है. अस्पताल में बेड की संख्या बढ़ाने और नई इमारतों के शीघ्र बनने की ज़रूरत है. स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन भी यह बात स्वीकार कर चुके हैं.

दिल्ली के अस्पताल का नजारा/ फोटो- यशस्वी पाठक

बता दें कि दिल्ली सरकार ने 2019-20 बजट में 963 करोड़ रूपये अस्पतालों की मरम्मत के लिए और अस्पतालों में लगभग 2600 नये बेड जोड़ने के लिए आवंटित किये हैं जबकि 588 करोड़ रूपये नये अस्पताल बनाने के लिए आवंटित किये गए हैं. दिल्ली सरकार ने अपने पूरे बजट का 13.8 प्रतिशत व्यय स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए आवंटित किया है जो औसतन देश के दूसरे राज्यों (5.2%) के मुकाबले अधिक है. आंकड़ों से आप अंदाज़ा लगा सकते है कि देश के बाकी राज्यों में सरकारी अस्पतालों की क्या स्थिति होगी.

सरकारी अस्पतालों की हालत सुधारने के प्रयास तो बहुत किये जाते हैं लेकिन हकीकत में दो चार अस्पतालों पर ही यह प्रयास नज़र आता है. ज़रूरी है कि स्वास्थ्य सुविधाओं को प्राथमिकता दी जाए. सरकारी अस्पतालों में आवश्यक उपकरण और मशीनें मुहैया कराई जाएं. मरीजों को ध्यान में रखते हुए डॉक्टरों और बिस्तरों की संख्या बढाई जाए. सरकारी अस्पतालों में नज़रअंदाज़ किये गए साफ-सफाई के पक्ष पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाये.

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