(फाइल फोटो के साथ)
नयी दिल्ली, 26 मई (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने मानहानि के कथित मामले में नौ महिला पत्रकारों द्वारा दर्ज किये गये एक मुकदमे पर सोमवार को टिप्पणीकार अभिजीत अय्यर मित्रा को समन जारी किया और उनसे अभिव्यक्ति के अधिकार का इस्तेमाल करते समय ‘लक्ष्मण रेखा’ का ध्यान रखने को कहा।
न्यायमूर्ति पुरुषेंद्र कुमार कौरव ने मित्रा से मीडिया हाउस ‘न्यूजलॉण्ड्री’ की पत्रकारों द्वारा दायर किये गये मामले में अपनी लिखित दलीलें रखने को कहा है तथा उनसे ‘एक्स’ पर की गयी टिप्पणी को लेकर उनका रुख भी पूछा।
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि मित्रा ने ‘एक्स’ पर ‘अपमानजनक, झूठे, दुर्भावनापूर्ण और निराधार आरोप’ लगाते हुए ‘अपमानजनक शब्दों और गालियों’ का इस्तेमाल किया है।
न्यायमूर्ति कौरव ने कहा कि न्यायालय द्वारा पिछले सप्ताह की गई कुछ टिप्पणियों के बाद मित्रा ने कथित अपमानजनक सामग्री हटा दी थी, लेकिन अब याचिकाकर्ताओं ने अदालत से उन्हें (मित्रा को) संयमित रहने का निर्देश देने का अनुरोध किया था।
न्यायालय ने कहा, ‘‘वादियों की दलीलों की प्रकृति पर विचार करने के बाद, न्यायालय प्रतिवादियों को सम्मन जारी करने का निर्देश देना उचित समझता है।’’
न्यायमूर्ति कौरव ने कहा, ‘‘हम आपको (मित्रा को) रोक नहीं रहे हैं (लेकिन) लक्ष्मण रेखा कहां है, यह आपको समझना चाहिए। जब तक आप अपनी अभिव्यक्ति के अधिकार का इस्तेमाल करते रहेंगे … तबतक आपको यह ध्यान रखना होगा कि यदि यह (अभिव्यक्ति) अपमानजनक हो जाएगी, तो याचिकाकर्ताओं को अदालत का फिर से दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता होगी।’’
वादी पक्ष की ओर से पेश अधिवक्ता बानी दीक्षित और फरमान अली ने दावा किया कि मित्रा ने अपने पोस्ट के लिए ‘कोई पछतावा’ नहीं दिखाया है।
मित्रा के वरिष्ठ वकील पर्सीवल बिलिमोरिया ने कहा कि विषय-वस्तु अपमानजनक नहीं थी, फिर भी अदालत की टिप्पणियों के सम्मान में इसे हटा दिया गया था और मुकदमा खारिज कर दिया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि विषय-वस्तु हटाने के अदालत के आदेश का पालन किया गया है।
उन्होंने उच्च न्यायालय से इस ‘सबसे कपटी’ मीडिया मंच के खिलाफ जांच का आदेश देने का भी आग्रह किया। हालांकि, अदालत ने कहा, ‘‘यदि आप इसके खिलाफ जांच चाहते हैं, तो उपाय कहीं और है।’’
उच्च न्यायालय ने कहा कि विषय-वस्तु हटाने के उसके पिछले आदेश में पक्षकारों के अधिकारों के प्रति कोई पूर्वाग्रह नहीं था, लेकिन यह (आदेश) लागू रहेगा। उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि अगर भविष्य में इसी तरह की आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट की जाती है तो वे ‘वापस आएं।’
मुकदमे में महिला पत्रकारों ने निषेधाज्ञा, मित्रा से लिखित माफ़ी और दो करोड़ रुपये के हर्जाने का अदालत से अनुरोध किया है। उन्होंने दावा किया कि मित्रा ने अपने पोस्ट में उनके खिलाफ कई तीखे और आक्रामक हमले किए हैं।
उच्च न्यायालय ने 21 मई को मित्रा को उनकी कथित अपमानजनक टिप्पणियों के लिए फटकार लगाई और उन्हें पांच घंटे के भीतर पोस्ट हटाने को कहा था।
अदालत ने मौखिक रूप से कहा था कि जो व्यक्ति अपने पोस्ट में ऐसी ‘असभ्य भाषा’ का इस्तेमाल करने की हिम्मत करता है, उसका पक्ष तब तक नहीं सुना जाना चाहिए जब तक कि उसे (पोस्ट को) हटा न दिया जाए।
मामले की अगली सुनवाई सितंबर में होगी।
भाषा
राजकुमार सुरेश
सुरेश
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