नयी दिल्ली, छह मार्च (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को दिल्ली अग्निशमन सेवा विभाग (डीएफएस) को 92 स्कूलों के संबंध में नगर निगम द्वारा मांगे गए अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) की प्रक्रिया में तेजी लाने का निर्देश दिया।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत पी. एस. अरोड़ा की पीठ ने दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) से अपने स्कूलों में लंबित सिविल और विद्युत कार्यों में तेजी लाने तथा उन दो स्कूल भवनों को या तो खाली कराने या पुनर्निर्माण कराने को कहा जिन्हें खतरनाक करार दिया गया है।
अदालत वकील कुश कालरा की एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दावा किया गया है कि निजी और सरकार द्वारा संचालित, सहायता प्राप्त कई विद्यालयों ने अग्नि सुरक्षा और भवन स्थिरता मानदंडों का पालन नहीं किया है।
पीठ ने एमसीडी द्वारा दाखिल एक स्थिति रिपोर्ट पर गौर किया, जिसमें कहा गया है कि 1,185 स्कूलों में से 705 स्कूलों को अग्नि अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी किया गया। रिपोर्ट में कहा गया कि 119 स्कूलों में सिविल कार्य लंबित है और 116 स्कूलों में सिविल और इलेक्ट्रिकल दोनों कार्य लंबित हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘एमसीडी को 119 स्कूलों में लंबित सिविल कार्य और 116 स्कूलों में लंबित सिविल और इलेक्ट्रिकल कार्यों में तेजी लाने का निर्देश दिया जाता है। डीएफएस को 92 स्कूलों के लिए एमसीडी द्वारा दायर एनओसी की प्रक्रिया में तेजी लाने का निर्देश दिया गया है। जिन दो स्कूलों की इमारतों को खतरनाक करार दिया गया है, उन्हें या तो तुरंत खाली कराया जाना चाहिए, या पुनर्निर्माण किया जाना चाहिए अथवा मजबूत किया जाना चाहिए।’’
पीठ ने कहा कि एमसीडी की स्थिति रिपोर्ट में कहा गया है कि 101 स्कूलों तक पहुंचने का रास्ता बहुत संकरा है, इसलिए उनके लिए एनओसी जारी नहीं की जा सकती।
उच्च न्यायालय ने मामले को दो मई को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।
कालरा ने 2017 में दायर अपनी याचिका में दावा किया है कि उच्चतम न्यायालय ने 2009 में भारत के सभी स्कूलों को अग्नि सुरक्षा और स्थिरता प्रमाणपत्र रखने के निर्देश जारी किए थे, लेकिन इसका अनुपालन नहीं किया जा रहा।
भाषा आशीष सुरेश
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