नई दिल्ली: तलाक के मामले में अपने पति के साथ एकमुश्त सेटलमेंट हो जाने के बाद अधिक पाने की लालसा में समझौते की शर्तों का उल्लंघन करने वाली पत्नी को दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महीने की जेल की सज़ा सुनाई है.
समझौते के तौर पर कोर्ट से किए गए वादे से मुकरने को लेकर गंभीर रुख अख्तियार करते हुए अदालत ने कहा कि अगर इस तरह के व्यवहार को स्वीकार किया गया तो, ‘‘यह कानूनी कार्यवाही और दिए गए कोर्ट से किए गए वादों में आम जनता के विश्वास को कम कर देगा.’’
महिला को एक महीने के साधारण कारावास की सज़ा सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि पत्नी का रुख अदालत के प्रति ‘‘कम सम्मान’’ को दर्शाता है और अगर अनुमति दी गई, तो यह ‘‘न्याय का मजाक और अदालत का मजाक होगा’’.
अदालत ने माना कि पत्नी ‘‘अपने वचन का सम्मान करने में विफल होकर, अदालत के अधिकार को कम कर रही है और न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप कर रही है’’.
न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा ने केवल ‘‘बेहतर वित्तीय सौदेबाजी के लिए’’ एक-दूसरे के खिलाफ दायर किए गए 20 मामलों को जारी रखने की पत्नी की ज़िद्द को ‘‘कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग’’ करार दिया.
पति की ओर से पेश हुए वकील प्रभजीत जौहर ने अदालत को सूचित किया कि तलाक के समझौते के अनुसार मुंबई में एक अपार्टमेंट पत्नी को सौंप दिया गया था, लेकिन उसने जोर देकर कहा कि पति लंबित रखरखाव बकाया का भुगतान पहले करे.
जौहर ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि पत्नी ने लंबित मामलों को आगे बढ़ाने के लिए कदम उठाए, जबकि समझौते में उन्होंने कहा था कि इन्हें वापस ले लिया जाएगा.
जवाब में पत्नी ने कहा कि उसने पुनर्विचार किया है और तर्क दिया कि कानून ने उसे तलाक की कार्यवाही में अपना मन बदलने का अधिकार दिया है.
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