नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाथरस सामूहिक बलात्कार मामले सहित अन्य दुष्कर्म पीड़िताओं की पहचान कथित तौर पर उजागर करने को लेकर दिल्ली सरकार, ट्विटर, फेसबुक, यूट्यूब और कई अन्य मीडिया संस्थानों से जवाब-तलब किया है.
दरअसल, एक याचिका दायर कर इनके खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की गई है.
मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमर्ति ज्योति संह ने याचिका पर नोटिस जारी किया और ‘बजफीड’, ‘द सिटीजन’, ‘द टेलीग्राफ’ ‘आई दिवा’, ‘जनभारत टाइम्स’, ‘न्यूज 18’, ‘दैनिक जागरण’, ‘यूनाटेड न्यूज ऑफ इंडिया’, ‘बंसल टाइम्स’, ‘दलित कैमरा’, ‘द मिलेनियम पोस्ट’ और ‘विकिफीड’ से जवाब भी मांगा है.
अदालत ने विषय की सुनवाई पांच फरवरी के लिए सूचीबद्ध की है.
याचिका के जरिए दिल्ली सरकार को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि वह सोशल मीडिया मंचों और मीडिया संस्थानों से ऐसी कोई सामग्री, खबर, सोशल मीडिया पोस्ट या ऐसी कोई भी सूचना हटाने के कहे, जिनमें हाथरस सामूहिक बलात्कार पीड़िता या इस तरह के अन्य मामलों की पीड़िता की पहचान का ब्योरा हो.
याचिकाकर्ता मनन नरूला ने आरोप लगाया है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 228 का घोर उल्लंघन किया गया है और पीड़िता की पहचान का खुलासा कर उसके निजता के अधिकार का हनन करने वालों के खिलाफ उन्होंने प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की है.
यह जनहित याचिका अधिवक्ता सुमन चौहान और जिवेश तिवारी के मार्फत दायर की गई है. इसमें दावा किया गया है कि उल्लेख किये गये इन सभी प्रकाशनों/पोर्टलों/ समाचार संस्थानों ने पीड़िता के बारे में ऐसी सूचना प्रकाशित की, जो व्यापक स्तर पर लोगों के बीच उसकी पहचान को उजागर करता है.
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को बताया कि उत्तर प्रदेश के हाथरस में जिस दलित युवती के साथ सामूहिक बलात्कार एवं हत्या की घटना हुई , उसके नाम का ट्विटर पर सेलीब्रिटी एवं क्रिकेटर सहित बड़ी संख्या में लोगों ने ‘हैशटैग’ के साथ इस्तेमाल किया गया.
दिल्ली सरकार के वकील राहुल मेहरा ने कहा कि बलात्कार पीड़िता की पहचान उजागर करने का मुद्दा बहुत ही गंभीर है, खासतौर पर सोशल मीडिया के युग में.
मेहरा ने कहा कि याचिकाकर्ता को प्राथमिकी दर्ज करने की मांग करने के लिए धारा 156(3) के तहत निचली अदालत का रुख करना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘मैं पीड़िता की पीड़ा को समझ सकता हूं और कानून इस बारे में स्पष्ट है कि आप पीड़िता की पहचान को उजागर नहीं कर सकते.’
याचिकाकर्ता के वकील ने पहले के एक मामले का भी जिक्र किया, जिसमें पीड़िता की पहचन उजागर की गई थी और उच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लिया था तथा कठुआ सामूहिक बलात्कार पीड़िता की पहचान उजागर करने को लेकर कई मीडिया संस्थानों को कड़ी फटकार लगाई थी.