नयी दिल्ली, 13 जनवरी (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि राज्य सरकार ने नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट विधानसभा के समक्ष पेश करने के मुद्दे पर अपने कदम पीछे खींच लिये, जिससे ‘‘उसकी बातों पर संदेह’’ उत्पन्न होता है।
न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विधायकों की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि सरकार को कैग रिपोर्ट को चर्चा के लिए सदन के समक्ष तुरंत रखना चाहिए था।
न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, ‘‘जिस तरह से आपने अपने कदम पीछे खींचे, उससे आपकी बातों पर संदेह उत्पन्न होता है। आपको तुरंत रिपोर्ट विधानसभाध्यक्ष को भेजनी चाहिए थी और सदन में इस पर चर्चा करानी चाहिए थी। देखिए, जिस तरह से आप अपने कदम पीछे खींच रहे हैं, वह दुर्भाग्यपूर्ण है।’’
विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता और भाजपा विधायक मोहन सिंह बिष्ट, ओम प्रकाश शर्मा, अजय कुमार महावर, अभय वर्मा, अनिल कुमार बाजपेयी और जितेंद्र महाजन ने पिछले साल याचिका दायर करके विधानभाध्यक्ष को कैग रिपोर्ट पेश करने के लिए विधानसभा का सत्र बुलाने का निर्देश देने का अनुरोध किया था।
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा कि विधानसभा सत्र बुलाना विधानसभाध्यक्ष का विशेषाधिकार है और सवाल किया कि क्या अदालत विधानसभाध्यक्ष को ऐसा करने का निर्देश दे सकती है, खासकर तब जब चुनाव नजदीक हों।
सरकार के वरिष्ठ वकील ने याचिका की ‘‘राजनीतिक’’ प्रकृति के संबंध में आपत्ति जतायी और आरोप लगाया कि उपराज्यपाल कार्यालय ने रिपोर्ट सार्वजनिक की है और इसे समाचार पत्रों के साथ साझा किया है।
अदालत ने सवाल किया, ‘‘इससे क्या फर्क पड़ता है?’’
सुनवाई जारी है।
भाषा अमित सुरेश
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