(सौम्या शुक्ला)
नयी दिल्ली, 11 जून (भाषा) दिल्ली के द्वारका स्थित बहुमंजिला इमारत के फ्लैट में एक जलते दीये, ज्वलनशील ‘पीवीसी पैनल’ और ‘बायोमेट्रिक-लॉक’ वाले मुख्य द्वार के कारण एक मामली आग भयावह में तब्दील हो गई और उसने तीन जिंदगियां छीन ली।
बचाव कार्य में देरी, तेज हवा और खाली अग्निशामक यंत्रों ने मंगलवार को लगी आग को और फैलाने का काम किया, जिससे फ्लैट में रह रहे परिवार पर यह जानलेवा आफत आई।
आग ‘शब्द अपार्टमेंट’ में एक डुप्लेक्स फ्लैट की नौवीं और दसवीं मंजिल पर लगी थी, जहां 41 वर्षीय इंटीरियर डिजाइनर एवं फ्लेक्स प्रिंटिंग व्यवसायी यश यादव अपने परिवार के साथ रहते थे।
आग की वजह से यादव, उनकी 12 वर्षीय बेटी आशिमा और 11 वर्षीय भतीजे शिवम यादव की मौत हो गई थी।
पोस्टमार्टम के बाद उनके शवों को अंतिम संस्कार के लिए उत्तर प्रदेश के एटा में उनके गृहनगर धुमारी ले जाया गया।
पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि आग नौवीं मंजिल के फ्लैट के अंदर एक छोटे से मंदिर में रखे जलते हुए दीये से लगी।
उन्होंने बताया कि लकड़ी की साज-सज्जा व पीवीसी पैनल के कारण आग की लपटें तेजी से पूरे घर में फैल गईं। आग ने खिड़कियों के शीशों को चकनाचूर कर दिया जिससे अंदर आई हवा ने इसे भीषण बना दिया।
अधिकारी ने बताया कि परिवार के सदस्य मुख्य दरवाजे से निकलने में असमर्थ रहे, क्योंकि उस पर बायोमेट्रिक लॉक लगा था और वह अपने आप बंद हो गया था।
उन्होंने बताया कि दरवाजे के पास ही मंदिर था और आग के कारण मुख्य द्वार को जबरन खोलना उनके लिए असंभव हो गया था।
अधिकारी ने बताया कि यश के बड़े बेटे आदित्य (18) समेत तीन लोग किसी वस्तु का इस्तेमाल कर नौवीं मंजिल से नीचे के फ्लैट में कूदने में कामयाब रहे।
एक अन्य अधिकारी ने बताया कि चूंकि उस फ्लैट के अंदर कोई नहीं था, इसलिए आदित्य ने कांच का दरवाजा तोड़ दिया और मुख्य दरवाजे का ताला तोड़ कर बाहर निकल गया।
उन्होंने बताया कि परिवार के अन्य सदस्य सीढ़ियों का इस्तेमाल करके दसवीं मंजिल पर पहुंचे।
अधिकारी ने बताया कि उनमें से छह लोग एक छोटी सी छत पर पहुंचे लेकिन आशिमा और शिवम धुएं के कारण भटक कर गलती से सीढ़ियों के सामने वाले कमरे में चले गए।
उन्होंने बताया कि बच्चों की अनुपस्थिति का एहसास होने पर यश उन्हें बचाने के लिए वापस भागा और उन्हें बालकनी में पाया।
अधिकारी ने बताया कि यश ने दोनों बच्चों को वॉशिंग मशीन के पीछे छिपाकर बचाने की कोशिश की।
उन्होंने बताया कि तीनों ने मदद की उम्मीद में करीब 15 से 20 मिनट तक इंतजार किया लेकिन जब लपटें बालकनी के ऊपर पीवीसी छतरी तक पहुंच गईं और उसके अवशेष पिघलकर उन पर गिरने लगे, तो पहले बच्चे और बाद में यश एक के बाद एक कूद पड़े।
तीनों की ही मौत हो गई। अधिकारी ने बताया कि इस बीच, छत पर मौजूद अन्य लोग रेलिंग के ऊपर लगे सजावटी पैनल को हटाकर बगल की इमारत की सीढ़ियों पर कूद गए, जहां से उन्हें बचा लिया गया।
प्रत्यक्षदर्शियों ने दावा किया कि फ्लैट के बाहर आग बुझाने वाले यंत्र खाली पड़े थे।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सोसाइटी के अधिकारियों और निवासियों ने मदद के लिए कदम नहीं उठाया।
स्थानीय दुकानदार 29 वर्षीय राजकुमार ने बताया, “उन्होंने हमें मदद के लिए अंदर नहीं जाने दिया और न ही उन्होंने खुद कोई कदम उठाया। यहां तक कि जमीन पर फोम का गद्दा भी रख दिया जाता तो गिरने के प्रभाव को कम किया जा सकता था।”
एक अन्य निवासी ने बताया कि लोग मदद करने के बजाय अपने फोन पर आग की वीडियो बनाने में व्यस्त थे।
एक अधिकारी ने बताया कि पुलिस इस बात की जांच कर रही है कि क्या रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्ल्यूए) को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
यश के रिश्तेदार एटा से मोहन गार्डन में एक धार्मिक समारोह में शामिल होने आए थे।
उनके एक करीबी दोस्त अमित भंडारी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि यश अपने परिवार के लिए कमाने वाला एकमात्र व्यक्ति था।
उन्होंने बताया, “यश की पत्नी गृहिणी हैं। मैं सरकार से परिवार को मुआवजा और सहायता देने का आग्रह करता हूं।”
भंडारी ने अग्निशमन विभाग की देरी से की गई कार्रवाई पर भी सवाल उठाए और राजधानी की सभी ऊंची इमारतों की अग्नि सुरक्षा ऑडिट की मांग की।
उन्होंने कहा, “मैं सिर्फ इसलिए बोल रहा हूं क्योंकि मैं नहीं चाहता कि यश की तरह कोई और परिवार अपने प्रियजन को खो दे।”
द्वारका उत्तर थाने में प्राथमिकी दर्ज कर ली गई है और पुलिस, अग्निशमन और फोरेंसिक विभाग की रिपोर्ट का इंतजार कर रही है ताकि यह पता लगाया जा सके कि किसकी लापरवाही के कारण यह दुखद घटना हुई।
भाषा जितेंद्र पवनेश
पवनेश
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