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Friday, 3 May, 2024
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दिल्ली कोर्ट ने कुतुब मीनार को मंदिर घोषित करने पर फैसला सुरक्षित रखा, ASI ने कहा- इसे पूजा स्थल नहीं बना सकते

सुनवाई को दौरान अदालत ने पूछा कि क्या पूजा का अधिकार एक स्थापित अधिकार था और किस आधार पर अपीलकर्ता कथित मंदिरों को बहाल करना चाहते हैं.

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नई दिल्ली: दिल्ली में साकेत डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने कुतुब मीनार मामले में सिविल जज के आदेश के खिलाफ अपील पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है.

एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज निखिल चोपड़ा ने मामले की अगली सुनवाई 9 जून को करने के आदेश दिए हैं.

दरअसल, कुतुब मीनार परिसर में कथित हिंदू और जैन मंदिरों को बहाल करने की मांग करने वाले एक मुकदमे को सिविल जज ने खारिज करने का आदेश दिया था. इसके खिलाफ साकेत कोर्ट में याचिका डाली गई थी जिसपर मंगलवार को अदालत ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है.

सिविल जज ने पूजा स्थल अधिनियम 1991 और सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 7 नियम 11 (ए) का हवाला देते हुए अपील को खारिज कर दिया था. जज ने अपने आदेश में यह भी कहा था कि अतीत की गलतियों को आधार बनाकर मौजूदा शांति को भंग नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने आगे कहा था कि अगर इसकी इजाजत दी गई तो इससे संविधान के ताने-बाने और धर्मनिरपेक्षता को नुकसान होगा.

जैन देवता तीर्थंकर भगवान ऋषभ देव की तरफ से वकील हरि शंकर जैन ने एक मुकदमे दायर किया था जिसमें दावा किया गया था कि 27 मंदिरों को आंशिक रूप से कुतुब अल-दीन ऐबक, राजा मुहम्मद गोरी की सेना में एक जनरल ने ध्वस्त कर दिया था. इसके बाद कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद को कथित मंदिर की सामग्री को इस्तेमाल करके परिसर के अंदर बनाया गया था. वाद में मांग की गई है कि इस पूरी संपत्ति को मंदिर परिसर के तौर पर घोषित किया जाए.

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वहीं, आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) ने इस मामले पर अपना जवाब साकेत डिस्ट्रिक्ट कोर्ट को सौंपा जिसमें उसने कुतुब मीनार परिसर में मंदिर को बहाल करने की याचिका का विरोध किया.

एएसआई ने अदालत को बताया कि किसी स्मारक में पूजा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.

हालांकि अदालत में एएसआई ने हिंदू मूर्तियों के अस्तित्व के बारे में कोई इनकार नहीं किया है. उसने कोर्ट में कहा कि संरक्षित स्मारक में पूजा के मौलिक अधिकार का दावा नहीं किया जा सकता है.

एएसआई ने कहा कुतुब मीनार 1914 से एक संरक्षित स्मारक है और इसकी संरचना को अब नहीं बदला जा सकता है.

सुनवाई को दौरान अदालत ने पूछा कि क्या पूजा का अधिकार एक स्थापित अधिकार था और किस आधार पर अपीलकर्ता कथित मंदिरों को बहाल करना चाहते हैं.

कोर्ट ने यह भी कहा कि सिविल जज ने इस पॉइंट पर निष्कर्ष निकाला है कि राहत देने से एंशियंट मोन्यूमेंट एंड आर्केलॉजिकल साइट्स एंड रिमेन एक्ट, 1958, (एएमएएसआर अधिनियम) के साथ-साथ पूजा के स्थान अधिनियम 1991 का उल्लंघन हो सकता है.

दक्षिणपंथी समूह ने आरोप लगाया गया था कि कुतुब मीनार परिसर के भीतर स्थित कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद एक मंदिर परिसर के स्थान पर बनाई गई थी और इसकी बहाली की मांग की गई थी.


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