नई दिल्ली : 21 जनवरी को, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को 8 फ़रवरी को होने वाले विधानसभा चुनाव में नई दिल्ली विधानसभा सीट से नामांकन दाखिल करने लिए लुटियंस दिल्ली स्थित जामनगर हाउस में एक कतार के साथ टोकन नंबर 45 आवंटित किया गया था. रिटर्निंग ऑफिसर के सामने अपनी बारी आने तक उन्हें लगभग छह घंटे तक इंतजार करना पड़ा.
उसी कतार मे टोकन नंबर 44 के साथ उनके आगे खड़े व्यक्ति का नाम पवन कुमार था, जो एक टैक्सी ड्राइवर हैं. पवन के पास केजरीवाल से खार खाने की काफ़ी वजहें भी थीं.
करोल बाग के पास फिल्मिस्तान के करीब रहने वाले पवन ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा कि ‘इस सरकार (आप) ने टैक्सी-ड्राइवरों की रोजमर्रा की मुश्किलों का हल निकालने के प्रति सोचने की जहमत नहीं उठाई. ऑटो रिक्शा के किराए में संशोधन करके उसमे वृद्धि भी कर दी गयी, लेकिन टैक्सी चालकों के लिए इनके पास कोई योजना हीं नहीं थी. मेरे पास अपनी आवाज़ उठाने का यह सबसे अच्छा तरीका था और मैं उम्मीद करता हूं कि कम से कम अब मुझे सुना जाएगा.’
हालांकि, उन्हें अगले दिन यह जानकर निराशा ज़रूर हुई होगी कि उनका नामांकन पत्र अस्वीकार कर दिया गया था.
पवन की बात का समर्थन उनकी हीं जैसी काली-पीली टैक्सी के कई अन्य चालक भी करते हैं. उनका कहना है कि आम आदमी पार्टी की सरकार टैक्सी एग्रीगेटर्स ओला और उबर के कारण इस क्षेत्र मे बढ़ती प्रतिस्पर्धा का सामना करने में उनकी सहायता और उनके हितों की रक्षा करने में विफल रही है. वे यह भी करते दावा हैं कि ज्यादातर कैब और ड्राइवर दिल्ली के बाहर से आते हैं. 2013 में आप पार्टी की स्थापना के बाद से हीं ऑटोरिक्शा ड्राइवरों और आप के बीच के संबंधों के बारे में भी वे अपनी नाराजगी जताने से नहीं चूकते.
दूसरी तरफ तमाम ऑटो चालक अब भी केजरीवाल के साथ मजबूती से खड़े दिखतें हैं, उनके वाहनों पर ‘आई लव केजरीवाल’ और ‘केजरीवाल मेरा हीरो, बिजली बिल मेरा ज़ीरो’ जैसे प्रचार संदेश लिखे मिलते हैं, पर उनके लिए भी सब हरा-हीं-हरा हो ऐसा नही है. कुछ ऑटोरिक्शा चालकों का कहना है कि दिल्ली सरकार की महिलाओं के लिए मुफ्त बस की सवारी की योजना से उनका बिजनेस भी प्रभावित हुआ है. कई अन्य ऑटोरिक्शा चालकों की अपनी अलग शिकायतें हैं.
लेकिन बात जब चुनाव की आती है, तो चाहे ऑटो चालक हों, या ओला/ उबर कैब वाले या यहां तक कि काली-पीली ’टैक्सी ड्राइवर हों, केजरीवाल और आप का उनका भरपूर समर्थन है. कारण? मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, और उनके बच्चों के लिए ‘बेहतर’ शिक्षा का प्रबंध.
केजरीवाल सरकार ने कैब चालकों के लिए क्या किया (और क्या नहीं किया)?
दिल्ली सरकार के परिवहन विभाग ने वर्ष 2018 में ऐप-आधारित कैब नीति का एक मसौदा तैयार किया था. ऐप-बेस्ड कैब एग्रीगेटर्स लाइसेंसिंग एंड रेग्युलेशन रूल्स, 2017 के नाम से तैयार की गयी तह इस मसौदा नीति का उद्देश्य सर्ज प्राइसिंग, लाइसेंसिंग पोर्टल, साथ ही साथ उपलब्ध कैब की संख्या में अत्यधिक वृद्धि, (जो उसी समय 1.4 लाख की सीमा को पार कर गई थी) को नियंत्रित करना था.
मसौदा नीति में कैब के लिए अपने वाहनों को पंजीकृत करने से पहले वाहन के स्वामी के लिए पार्किंग की उपलब्धता का प्रमाण दिखाना अनिवार्य करने का प्रस्ताव किया गया था. यह भी कहा गया है कि इन कैब का एक निश्चित ‘अधिकतम किराया’ भी तय होगा, जिससे अधिक लेने पर भारी जुर्माना लगाया जाएगा.
सितंबर 2018 मे पेश किए जाने के एक सप्ताह के भीतर हीं दिल्ली सरकार की एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति द्वारा इस मसौदा नीति को मंजूरी दी जानी थी, पर ऐसा हुआ नही और परंपरागत काली-पीली टैक्सियों के ड्राइवरों के बीच आप के प्रति गुस्से का मूल कारण यही है.
दिल्ली के जमरुदपुर के निवासी हरजीत देव (टैक्सी चालक) ने कहा, ‘मुझे प्रशासनिक राजनीति की समझ नहीं है. लेकिन तथ्य यह है कि नीति अभी भी लागू नहीं हुई है. हमें ड्राफ्ट पॉलिसी की परवाह क्यों करनी चाहिए?’
इस मामले का सकारात्मक पहलू यह है पिछले साल (2019) अक्टूबर में, केजरीवाल के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी में सभी प्रकार की टैक्सियों के लिए फिटनेस परीक्षण शुल्क और जीपीएस से संबंधित शुल्क पूरी तरह से माफ कर डिता था. इसने दिल्ली में पंजीकृत सभी कैब्स के लिए अन्य दस्तावेजों के शुल्क और और जुर्माने की राशि मे 60-80 प्रतिशत की कटौती भी की थी.
दिप्रिंट ने जिन ड्राइवरों ने से बात की उनमे से कुछ ने वार्षिक फिटनेस शुल्क को ख़त्म करने के निर्णय की सराहना की और साथ ही मीटर खरीदने की लागत को 12000 से कम करके 6000 करने के लिए भी सरकार की प्रशंसा की पर कई अन्य चालकों ने कहा कि इससे उहें बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ा.
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इसके बजाय, आप सरकार ने महिलाओं के लिए मुफ्त बस सवारी की जो योजना शुरू की है उसके कारण रेलवे स्टेशनों जैसे भीड़-भाड़ वाली जगह पर भी लोग टैक्सी लेने के बजाय बसों से चलना पसंद करने लगे हैं.
दिलशाद गार्डन में रहने वाले नरेंद्र कुमार ने बताया कि नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर ऑटो/ टॅक्सी लेने वाले यात्रियों की रोजाना संख्या में भारी गिरावट आई है . उन्होंने कहा कि ‘लोग तभी कैब लेते हैं जब उनके पास बहुत अधिक सामान है, अन्यथा, वे बसों की यात्रा हीं पसंद करते हैं.’
ऑटो चालकों का दर्द
ऑटो चालकों के पास भी अपनी परेशानियां व्यक्त करने के अलग कारण हैं. पूरे दिल्ली शहर में फिलहाल 95000 ऑटोरिक्शा हैं, जो आमतौर पर मालिकों अथवा ड्राइवरों द्वारा दो पालियों में संचालित किए जाते हैं, इन चालकों और मालिकों मे से कई उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रवासी हैं. लगभग 1.5 करोड़ मतदाताओं वाले इस चुनाव में, 70 विधानसभा क्षेत्रों में बिखरे हुए ये ड्राइवर संख्यात्मक रूप से बहुत महत्वपूर्ण तो नहीं हैं, लेकिन उनकी ख़ासियत यह है कि वे आप के सबसे मुखर समर्थकों में से एक माने जाते हैं.
इन चुनावों से ठीक पहले कई ऑटो चालकों ने अपने वाहनों पर ‘आई लव केजरीवाल’ ’और ‘केजरीवाल मेरा हीरो, बिजली बिल मेरा ज़ीरो’ जैसे संदेश चस्पा कर दिए थे. लेकिन इन संदेशों के कारण उन्हें दिल्ली पुलिस के कोप का सामना करना पड़ रहा है जिसने, कथित रूप से उन पर भारी जुर्माना लगा दिया है.
कई ऑटो चालकों ने यातायात पुलिस द्वारा उनकें कथित रूप से टारगेट करने के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है. इन्हीं याचिकाकर्ताओं में से एक मनोज ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं जसोला के पास रहता और वहीं एक पार्किंग में मैं खड़ा था. ट्रैफिक पुलिस वाले और मेरे ऑटो पर लगे आई लव केजरीवाल ’संदेश के लिए 10,000 रुपये का चालान काट दिया.’
इनमें से कुछ ड्राइवरों के लिए तो यह राशि लगभग पूर एक महीने की कमाई के बराबर है. दिल्ली ऑटो रिक्शा संघ के प्रमुख राजेंद्र सैनी ने कहा, ‘पिछले चुनावों के दौरान, हम कांग्रेस से नाखुश थे, और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने हमारी समस्याओं को समझा हीं नहीं इससे आप को हमारा समर्थन मिला.’ सैनी ने आरोप लगाया कि इस समर्थन के कारण कांग्रेस और भाजपा दोनों से ऑटो चालकों की दुश्मनी सी हो गई है, जिन्होंने उन्हें ‘केजरीवाल वाला’ कहना शुरू कर दिया. पर ऐसा भी नहीं है की आप पार्टी और ऑटो चालकों के बीच सबकुछ ठीक- ठाक हीं है. सैनी का कहना है कि आप ने भी उनकी समस्याओं को पूरी तरह नहीं समझा है और यही कारण है कि महिलाओं के लिए मुफ्त बस सवारी योजना उन्हें भी नुकसान पहुंचा रही है.
कुछ ऑटो चालक अभी भी शीला दीक्षित के 15 साल के कांग्रेस शासन को याद करते हैं, यह इस तथ्य के बावजूद है कि ऑटो चालकों को कैब देने की उनकी योजना कभी भी धरातल पर आई हीं नही.
वह मामला जहां कैब और ऑटो ड्राइवर एकमत हैं
टैक्सी और ऑटो चालकों में बहुत से अलग मुद्दे हैं, लेकिन वे मोटे तौर पर तीन चीजों पर सहमत हैं – दिल्ली के बाहर से ओला / उबर कैब पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए, नरेंद्र मोदी को भारत का प्रधानमंत्री होना चाहिए और केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री होने चाहिए.
गोरखपुर के मूल निवासी और मध्यम आयु वर्ग के एक ऑटो चालक उर्मिलेश यादव ने कहा, ‘दिल्ली के बाहर के वाहन उन लोगों को प्रभावित नहीं करते हैं जो कम दूरी पर वाहन चलाते हैं जैसे की किसी मेट्रो स्टेशन से को विशेष इलाक़ा. लेकिन यह उन चालकों को ज़्यादा तंग करता है जो लंबे मार्ग पर काम करते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि अगर इन पर दिल्ली में प्रतिबंध लगाया जाता है, तो यह ड्राइवरों के लिए एक बड़ी राहत की बात होगी.
केजरीवाल को सीएम के रूप में वापस देखने की इच्छा के पीछे उनके कारण शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में आप सरकार द्वारा की गई की पहल है, साथ ही साथ मुफ्त पानी और बिजली भी एक बड़ा कारण है.
रानी बाग के रहने वाले प्रदीप सक्सेना, जो 22 साल से दिल्ली में कैब ड्राइवर हैं कहते हैं की उनके बच्चों की शिक्षा ने उन्हें शहर की बदलती हुई राजनीति का एहसास कराया है. शुरुआत मे में एक निजी टैक्सी ऑपरेटर के रूप मे काम करने वाले सक्सेना पिछले चार वर्षों से उबेर के साथ पंजीकृत हैं.
सक्सेना ने कहा, ‘मैं सबसे ज्यादा इस बात से खुश हूं कि मेरे बच्चों की पढ़ाई और स्कूल के प्रति धारणा हीं बदल गई है,’ हाल हीं में उन्होंने अपनी बेटी को एक निजी स्कूल से दिल्ली सरकार द्वारा संचालित सर्वोदय विद्यालय में स्थानांतरित करा दिया है. वह कक्षा 9वीं की छात्रा है और बताती है कि उसके शिक्षक बहुत अच्छे हैं. सक्सेना ने आगे बताया कि ‘मेरे दो छोटे बेटे कक्षा 3 और 4 में हैं, मैं उन्हें भी शिफ्ट करने की योजना बना रहा हूं.’
सक्सेना विशेष रूप से तब प्रभावित हुए जब स्कूल से घर आने के बाद उनकी बेटी ने स्कूल में पढ़ाए जा रहे विषय के रूप में में ‘खुश रहने के महत्व’ के बारे में बात की थी . यह बात उसने वर्ष 2019 में आप सरकार द्वारा शुरू की गई हैप्पीनेस पाठ्यक्रम की चर्चा करते हुए की.
इस बीच, पीएम मोदी के लिए ड्राइवरों के हर वर्ग मे व्याप्त प्यार के बावजूद, दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी को सीएम के रूप में स्वीकार करने को कोई भी तैयार नहीं है. यहां तक कि वे ड्राइवर भी नहीं जो पार्टी के घोर समर्थक हैं, या जो यूपी और बिहार ले मूल निवासी हैं. ठीक वही लोग जिनको लुभाने का जिम्मा पूर्व भोजपुरी सुपरस्टार मनोज तिवारी पर पटना से आने वाले के एक मध्यम आयु वर्ग के ड्राइवर राम माधव ने कहा, ‘मनोज तिवारी शासन करने के लिए कतई उपयुक्त व्यक्ति नहीं हैं. मैं कोईपागल नहीं हूं कि मैं उसे वोट दूंगा. मैं केजरीवाल को हीं वोट दूंगा.’