नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी में कारों में यात्रा करने वाले लोगों की तुलना में साइकिल चालकों के सड़क दुर्घटनाओं में जान गंवाने की संभावना 40 गुना अधिक होती है. हाल ही में एक अध्ययन के दौरान विभिन्न वाहन सवारों के एक समान दूरी तय करने के दौरान होने वाली मौतों के आंकड़े की तुलना किए जाने से यह तस्वीर सामने आई है.
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ इंजरी कंट्रोल एंड सेफ्टी प्रमोशन (टेलर एंड फ्रांसिस पब्लिकेशन) में प्रकाशित वर्किंग पेपर के मुताबिक, यद्यपि साइकिल चालकों की मौतों की कुल संख्या कारों में यात्रा करने वालों की तुलना में कम है लेकिन अध्ययन के दौरान यह बात सामने आई कि सड़कों पर कम दूरी तय करने के बावजूद उनके लिए जान का खतरा अधिक होता है.
इस शोध के लेखकर भारतीय परिवहन संस्थान के दिल्ली ट्रांसपोर्टेशन रिसर्च एंड इंजरी प्रिवेंशन सेंटर (यानी ट्रिप सेंटर) के सहायक प्रोफेसर राहुल गोयल हैं और इसे 31 जनवरी को ऑनलाइन पब्लिश किया गया था.
निरपेक्ष आधार पर डेटा विश्लेषण से पता चलता है कि दिल्ली में सड़क हादसों में साइकिल चालकों की मौतों का आंकड़ा अपेक्षाकृत कम है. जैसा कि परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय (एमओआरटीएच) के आंकड़े बताते हैं कि राष्ट्रीय राजधानी में हर साल औसतन 74 साइकिल सवारों की मौत होती है जो कि पिछले पांच वर्षों (2017 से 2021) के दौरान किसी कार/जीप/टैक्सी हादसे के कारण हर वर्ष होने वाली औसतन 216 मौतों की तुलना में काफी कम है.
हालांकि, शोध पत्र कहता है कि साइकिल चालक औसत कार चालक या बाइकर की तुलना में अपेक्षाकृत कम दूरी तय करते हैं, और इस संदर्भ में देखा जाए तो उनकी जान को खतरा अधिक होता है.
इस आंकड़े को बेहतर ढंग से समझने के लिए शोध के दौरान एक सामान्य माप इस्तेमाल किया गया—प्रति एक अरब किलोमीटर यात्रा के दौरान कितने लोगों ने जान गंवाई. इस दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि 2017 से 2019 के बीच साइकिल सवारों की मौत के मामले में आंकड़ा हर साल प्रति बिलियन किलोमीटर औसतन 20.8 रहा. वहीं, हर साल औसतन 9.5 मोटरसाइकल सवारों और 0.53 कार सवारों की जान गई.
अध्ययन में यह भी कहा गया कि राज्य की तरफ से इस पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है.
लेखकों का कहना है, ‘शहरों में अब सुरक्षित साइक्लिंग के लिए बुनियादी ढांचा स्तर सुधारने के प्रति रुचि बढ़ी है. यह परिवहन को प्रदूषण रहित बनाने और लोगों को स्वस्थ रखने में मददगार होगा. लोगों का मानना है कि साइकिल का उपयोग इसलिए भी कम होता है क्योंकि इसमें सुरक्षा का कथित अभाव एक बड़ी बाधा है. इसलिए इस पर ध्यान देना जरूरी है कि साइकिल चालकों की जान को कितना जोखिम है.’
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कैसे किया गया अध्ययन
रिपोर्ट में तर्क दिया गया कि वाहन चालकों की तरफ से कई गई यात्रा की दूरी का अनुमान लगाने के कई तरीके हैं, जैसे वाहन संबंधी ओडोमीटर रीडिंग या सर्वेक्षण, लेकिन पैदल यात्रियों और साइकिल चालकों के मामले में यह पता लगाना एक चुनौती है.
इस डेटा गैप को दूर करने के लिए, लेखक ने माना कि साइकिल सवारों द्वारा तय किलोमीटरों का मोटरसाइकिल वालों द्वारा तय किलोमीटरों की संख्या का अनुपात शहर में कुल यातायात में उनके वॉल्यूम के अनुपात के समान है.
ट्रैफिक वाल्यूम के लिए, शोधकर्ताओं ने 2018 में आईआईटी दिल्ली की तरफ से किए गए एक अध्ययन का उपयोग किया और यह निर्धारित करने के लिए 2011 की जनगणना के आंकड़ों का इस्तेमाल किया कि कितने लोग अपने काम पर जाने के लिए साइकिल का उपयोग करते हैं.
अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने व्हीकल ऑक्यूपेंसी—यानी किसी एक वाहन में सवार लोगों की संख्या—के आधार पर अनुमान लगाया कि शहर में कोई यात्री कितने किलोमीटर की यात्रा करता है. अध्ययन में माना गया है कि यदि दो लोगों ने एक ही कार में 20 किमी की यात्रा की है, तो उनमें से प्रत्येक ने समान दूरी यानी 20 किलोमीटर की यात्रा की है.
ट्रैफिक वॉल्यूम और तय दूरी के संदर्भ में शोध लेखकों ने निष्कर्ष निकाला कि दिल्ली में साइकिल सवार प्रति वर्ष औसतन 2.4 से 2.6 बिलियन किलोमीटर की दूरी तय करते हैं, जबकि मोटर साइकिल चालकों के मामले में यह आंकड़ा 57.11 बिलियन किमी और कार सवारों के लिए 99.5 बिलियन किमी है.
शोध लेखक ने दिल्ली के आंकड़ों की तुलना आकार और जनसंख्या के लिहाज से समान शहर लंदन के आंकड़ों से की और पाया कि प्रति अरब किलोमीटर यात्रियों की मृत्यु की दर कम है—साइकिल चालकों के लिए 14.8, मोटर साइकिल चालकों के लिए 32.1, और कार सवारों के लिए 0.33.
(अनुवाद: रावी द्विवेदी | संपादन: आशा शाह)
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