( उज्मी अतहर )
नयी दिल्ली, 27 जनवरी (भाषा) दिल्ली विधानसभा चुनाव में महिला केंद्रित योजनाओं पर लगभग सभी राजनीतिक दलों के जोर दिए जाने को विशेषज्ञ चुनावी नतीजों को आकार देने में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका की गहरी स्वीकृति मानते हैं लेकिन उन्होंने महिलाओं का समर्थन पाने के लिए लोकलुभावन उपायों पर निर्भरता और इसके दीर्घकालिक परिणामों को लेकर चिंता भी व्यक्त की है।
दिल्ली में लगभग 50 प्रतिशत मतदाता महिलाएं है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस ने चुनाव प्रचार में महिलाओं पर केंद्रित वादों को प्राथमिकता दी है।
भाजपा ने ‘महिला समृद्धि योजना’ के तहत महिलाओं को प्रति माह 2,500 रुपये, मातृत्व लाभ के तौर पर 21,000 रुपये और रसोई गैस सिलेंडर पर 500 रुपये की सब्सिडी का वादा किया है।
आप ने महिलाओं के लिए प्रति माह 2,100 रुपये की सहायता घोषणा की है और कांग्रेस ने ‘प्यारी दीदी योजना’ के तहत 2,500 रुपये नकद देने का वादा किया है।
इन घोषणाओं को सकारात्मक चुनावी रुझानों के अनुरूप माना जा रहा है। महिलाओं पर केंद्रित योजनाओँ का प्रभाव मध्य प्रदेश की ‘लाडली बहन योजना’ और महाराष्ट्र की ‘लाडकी बहन योजना’ में भी देखा गया। फिर भी, आलोचकों ने इन उपायों की व्यवहार्यता पर सवाल उठाए हैं।
चुनाव सुधार निकाय ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ के संस्थापक जगदीप छोक्कर ने इन योजनाओं की प्रभावशीलता पर संदेह जताया। उन्होंने कहा, ‘मुफ्त सुविधाएं केवल अल्पकालिक राहत प्रदान करती हैं। लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कौशल सिखाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।’
उन्होंने कहा कि मतदाताओं को इन लाभों की कीमत का बारे में पता होना चाहिए जो अंतत: जनता की जेब से ही आती है। ‘‘यहां तक कि निर्धनतम व्यक्ति भी अप्रत्यक्ष रूप से टैक्स दे रहा है चाहे वह जीएसटी आवश्यक सामग्री पर हो या सेवाओं पर हो।’’
माकपा नेता और सामाजिक कार्यकर्ता बृंदा करात ने इन वादों को दोधारी तलवार बताया। उन्होंने कहा, ‘ऐसी योजनाएं महिलाओं को स्वतंत्र नागरिक के रूप में पहचान देती हैं, लेकिन वे अक्सर महिलाओं को केवल लाभार्थी के रूप में सीमित कर देती हैं।’
उन्होंने कहा कि महिलाओं को उनके अधिकारों के जरिये सशक्त बनाया जाना चाहिए।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ये लोकलुभावन वादे स्वतंत्र मतदाता के रूप में महिलाओं की संख्या को और अधिक बढ़ा सकते हैं।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मोहम्मद आफताब आलम मानते हैं कि इस तरह की योजनाएं परंपरागत मतदान चलन को प्रभावित कर सकती हैं।
उन्होंने कहा, ”ज्यादातर महिलाएं अपने राजनीतिक नेतृत्व के चुनाव में घर के पुरुष की राय के अनुरुप ही मतदान करती हैं। इन योजनाओं से महिलाओं को अपने राजनीतिक निर्णय लेने की स्वतंत्रता मिलती है।”
इन योजनाओं पर अलग-अलग वर्ग की महिलाओं के भिन्न मत हैं। हैदरपुर की सब्जी विक्रेता शांति देवी ने नकद सहायता को बदलाव लाने वाला कदम बताया। उन्होंने कहा, ‘इससे स्कूल की फीस या किराया देने में मदद मिलेगी। नकद इसलिए बेहतर है क्योंकि मैं अपनी जरूरत के हिसाब से खर्च कर सकती हूं।’
मयूर विहार में घरेलू सहायिका का काम करने वाली सीमा सिंह ने सहमति जताते हुए कहा कि मुफ्त बस यात्रा से उसकी खासी बचत हुई है। उसने कहा ‘‘अगर वह नगद देते हैं तो और अधिक अच्छा होगा।’’
हालांकि, मध्यम वर्ग की महिलाओं की प्राथमिकताएं अलग हैं। सरिता विहार की शिक्षिका पूजा वर्मा ने कहा, ‘ये योजनाएं गरीबों के लिए उपयोगी हैं, लेकिन बेहतर सड़कें, शिक्षा और बुनियादी ढांचे का क्या?’
मदनपुर खादर में रहने वाली ब्यूटिशियन अंजलि कुमारी ने कहा, ‘ये योजनाएं मददगार हैं, लेकिन ये हमें गरीबी से बाहर नहीं निकाल पाएंगी। हमें बेहतर नौकरियों तक पहुंच की जरूरत है।’
दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए पांच फरवरी को मतदान होगा। महिलाओं पर केंद्रित इन योजनाओं का असर न केवल मतपेटी पर बल्कि महिला सशक्तिकरण के व्यापक संदर्भ में भी देखा जाएगा।
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राखी मनीषा
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