नई दिल्ली: दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार दिल्ली के कनॉट प्लेस (सीपी) में स्मॉग टॉवर लगाकर दो साल की पायलट परियोजना यहां कि हवा को साफ करने और प्रदूषण को कम करने के लिए शुरू किया गया था, लेकिन हवा की गुणवत्ता में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ और यह केवल एक छोटे दायरे में ही प्रभावी है.
स्मॉग टावर मूलतः बड़े पैमाने पर हवा को साफ करता है. सितंबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, दिल्ली सरकार ने अगस्त 2021 में सीपी में एक स्मॉग टॉवर स्थापित किया, जो भारत में पहला था. केंद्र ने उस वर्ष के अंत में आनंद विहार में एक ऐसा ही टावर स्थापित किया.
पिछले दो वर्षों में, आईआईटी-बॉम्बे और आईआईटी-दिल्ली के शोधकर्ताओं की एक टीम ने विशिष्ट क्षेत्रों में स्वच्छ वायु क्षेत्र प्रदान करने में इन स्मॉग टावरों की दक्षता और मुख्य प्रदूषकों, पीएम 2.5 और पीएम 10 के स्तर को कम करने में उनके प्रदर्शन का अध्ययन किया.
सीपी स्मॉग टावर की रिपोर्ट दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति को और आनंद विहार स्मॉग टावर की रिपोर्ट केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की अंतिम रिपोर्ट जल्द ही सौंपी जाएगी.
सीपी स्मॉग टावर के अध्ययन के निष्कर्षों से परिचित दिल्ली सरकार के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि 24 मीटर ऊंची संरचना हवा की गुणवत्ता में केवल 10-15 प्रतिशत सुधार करती है और वह भी केवल 500 मीटर के दायरे में.
दिप्रिंट ने टिप्पणी के लिए दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय से संपर्क किया, लेकिन उनसे कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
शीर्ष अदालत के 2020 के आदेश में उल्लिखित विवरण के अनुसार, जिसे दिप्रिंट ने देखा है – सीपी में स्मॉग टावर 20 करोड़ रुपये की लागत से स्थापित किया गया था, और इसमें 40 पंखे शामिल हैं जो 4 मीटर ऊंचे फिल्टर सिस्टम के माध्यम से हवा को धकेलते हैं जो संरचना के चारों किनारों को 960 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड m3/सेकंड) की कुल वायु प्रवाह दर के साथ कवर करते हैं. इसके अलावा, आदेश में कहा गया कि संरचना की प्रभावी स्वच्छ वायु वितरण दर 75 मिलियन m3/दिन थी.
इसमें आगे कहा गया कि “औसतन, (प्रदूषण) में 65 प्रतिशत की कमी 700 मीटर तक हासिल की जा सकती है और इसके नीचे की दिशा में 1 किमी से अधिक प्रभावित होने की उम्मीद है. साथ ही, अन्य सभी दिशाओं में प्रभाव का दायरा लगभग 400 मीटर है.”
दिल्ली सरकार के एक सूत्र ने बताया कि जहां तक उद्देश्य का सवाल है, स्मॉग टॉवर एक अच्छी गुणवत्ता वाला वायु क्षेत्र बनाता है, भले ही केवल एक छोटे दायरे में.
सूत्र ने कहा, “हालांकि, 500 मीटर के दायरे में हवा की गुणवत्ता में सुधार के लिए 20 करोड़ रुपये लगते है, और इस तर्क के अनुसार, ऐसे टावर स्थापित करने के लिए जमीन उपलब्ध नहीं होगी. स्मॉग टावर कोई व्यवहार्य समाधान नहीं हैं.”
सूत्र ने यह भी कहा कि स्रोत पर प्रदूषकों को कम करना अधिक प्रभावी तरीका होगा, साथ ही कहा कि सड़कों, निर्माण, विध्वंस स्थलों और वाहनों से उत्पन्न धूल पर अंकुश लगाया जाना चाहिए. “क्योंकि इन सब से प्रदूषण बढ़ता है और इन्हें रोकना मुश्किल होलाी है.”
स्मॉग टावर की दक्षता पर टिप्पणी करते हुए, नई दिल्ली स्थित गैर-लाभकारी नीति अनुसंधान संस्थान, ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) के फेलो और निदेशक (अनुसंधान समन्वय) कार्तिक गणेशन ने कहा कि यह सोचना व्यर्थ है कि कोई हवा को वैक्यूम करके साफ कर सकता है.
उन्होंने बताया कि एक एक स्मॉग टावर हवा से कभी न खत्म होने वाले प्रदूषण को खत्म करने की कोशिश कर रहा है.
गणेशन ने कहा, “सड़क की मिट्टी के खराब प्रबंधन के कारण होती है जिसे निर्माण और विध्वंस के समय ले जाया जाता है. जबकि पास के थार रेगिस्तान से हवा में उड़ने वाली रेत आती है, निर्माण और डेमोलिशन के अपशिष्ट प्रबंधन और उद्योग के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है. पीक अवधि में निर्माण गतिविधि में निलंबन की अधिकता के बावजूद, उद्योग समूहों द्वारा अच्छी प्रथाओं को संस्थागत बनाने के लिए बहुत कम कदम उठाए गए हैं.”
एमसीडी और दिल्ली सरकार को पहल भी फेल
दिल्ली सरकार ने स्रोत पर प्रदूषकों को कम करने के लिए पानी के छिड़काव, एंटी-स्मॉग गन और मैकेनिकल रोड स्वीपिंग मशीनों सहित कई अन्य उपाय लागू किए हैं. लेकिन दिल्ली सरकार के आंकड़े बताते हैं कि ये उपाय भी कम पड़ गए हैं.
दिल्ली में सड़कों का रखरखाव विभिन्न एजेंसियों द्वारा किया जाता है, जिनमें नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी), भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई), केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी), और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र परिवहन निगम (एनसीआरटीसी) शामिल हैं.
प्रतिदिन मशीनों से सफाई के लिए दिल्ली की 7,963.29 किलोमीटर लंबी सड़क में से 6,731 किलोमीटर की सफाई दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के अधिकार क्षेत्र में आती है.
दिप्रिंट को मिलें सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि इन 7,963.29 किमी में से, इस साल अगस्त में विभिन्न एजेंसियों द्वारा प्रतिदिन साफ की जाने वाली औसत लंबाई केवल 2,694.3 किमी थी – यानी 5,268.99 किमी की दैनिक कमी. इसका मतलब है कि अगस्त में हर दिन औसतन पूरी सड़क का केवल 33.83 प्रतिशत लंबाई की ही सफाई की गई. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, एमसीडी के पास 52 मैकेनाइज्ड रोड स्वीपिंग मशीनें हैं, जबकि एनडीएमसी के पास तीन हैं.
दिप्रिंट ने टिप्पणी के लिए एमसीडी के प्रेस एवं सूचना विभाग के निदेशक अमित कुमार से संपर्क किया, लेकिन प्रकाशन के समय तक उन्हें कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
(संपादन: अलमिना खातून)
(इस ख़बर को अंग्रज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: बीते 24 घंटे में डूबने से बिहार में 22 लोगों की मौत, CM ने जताया दुख, पीड़ित परिवार को 4-4 लाख का मुआवजा