नई दिल्ली: आने वाली सर्दियां दिल्ली में भयानक प्रदूषण और धुंध की सालाना वापसी का संकेत दे रही हैं- जिसका ताल्लुक़ काफी हद तक पंजाब और हरियाणा के किसानों के अपने खेतों में धान की पराल जलाने से है. लेकिन इस बार, कोविड लॉकडाउन के बाद फिर से शुरू हुईं आर्थिक गतिविधियां एक बड़ी दोषी साबित हो सकती हैं.
लॉकडाउन के दौरान दिल्लीवासियों ने कई महीने तक ताज़ा हवा में सांस ली. सितंबर के शुरू में दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 41 दर्ज किया गया- जो 2014 में राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक शुरू होने के बाद से सबसे कम है.
लेकिन, पिछले हफ्ते जैसे ही सेटेलाइट चित्रों को पंजाब के खेतों में आग दिखनी शुरू हुई. दिल्ली की वायु गुणवत्ता भी बिगड़नी शुरू हो गई- सोमवार सुबह को राजधानी का एक्यूआई 140 था, जो मध्यम श्रेणी में आता है.
सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग (सफर) के मुताबिक, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मिटियोरोलॉजी (आईआईटीएम) पर रिसर्चर्स जो प्रदूषण प्रीडिक्टर चलाते हैं, उसके अनुसार अनुकूल मौसम और हवाओं ने अभी तक, दिल्ली में एक्यूआई को ‘मध्यम’ से ख़राब होने नहीं दिया है. वायु गुणवत्ता के अगले तीन दिन तक, मध्यम श्रेणी में बने रहने की संभावना है.
एक्सपर्ट्स को उछाल की अपेक्षा
एक्सपर्ट्स का कहना है कि लॉकडाउन के फायदों के अब उलट जाने की संभावना है.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ एनवायरनमेंट साइंसेज़ के प्रोफेसर एके दिमरी ने दिप्रिंट को बताया कि बेसलाइन पल्यूशन लोड- पराली जलाने से पहले ही हवा में मौजूद प्रदूषकों का स्तर- पिछले साल से कम है, जिससे कुल मिलाकर प्रदूषण में कमी आ सकती है. लेकिन यदि पराली पिछले साल के बराबर ही जलाई गई, तो दिल्ली के वायु प्रदूषण में, तेज़ी से उछाल देखने को मिल सकता है.
दिमरी ने कहा, ‘प्रदूषण के गैसीय घटकों में बदलाव आ सकता है. मसलन, लॉकडाउन की वजह से सल्फर व नाइट्रोजन ऑक्साइड्स और साथ ही सरफेस ओज़ोन के कम रहने की संभावना है. लेकिन जहां तक पीएम 2.5 और पीएम 10 का सवाल है, उनके स्तर पहले जैसे ही रह सकते हैं.’
यह भी पढ़ें : ब्राजील के एक अध्ययन का कहना है- डेंगू एंटीबॉडीज कोविड के खिलाफ पैदा कर सकते हैं इम्युनिटी
पर्यावरणविद और इंटरनेशनल फोरम फॉर एनवायरनमेंट, सस्टेनेबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी (आईफॉरेस्ट) के सीईओ, चंद्र भूषण ने भी भविष्यवाणी की है कि अर्थव्यवस्था के फिर से खुलने से प्रदूषण का निचला स्तर जल्द ही उलट जाएगा.
भूषण ने कहा, ‘ऊर्जी की खपत, ट्रांसपोर्ट सेक्टर और निर्माण गतिविधियों को काफी गति मिलने वाली है. दूसरी तरफ फसल अवशेष जलाने का काम पहले ही शुरू हो गया है.’ उन्होंने आगे कहा, ‘मैं अपेक्षा कर रहा हूं कि आने वाले हफ्तों में, प्रदूषण के स्तर में उछाल आएगा. बचाव की सिर्फ एक ही सूरत हो सकती है, कि मौसम की स्थिति हमारे अनुकूल हो.’
उन्होंने ये भी कहा कि लोगों को ज़्यादा सावधान रहने की ज़रूरत होगी, क्योंकि वायु प्रदूषण सांस संबंधी समस्याएं पैदा करता है, जैसे कोविड-19 करता है और इसलिए ‘मास्क उससे भी ज़्यादा ज़रूरी हो जाएंगे, जितने आज हैं.’
क्या होता है हर साल
पिछले हफ्ते प्रकाशित केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट में अलग-अलग शहरों में वायु गुणवत्ता पर, कोविड-19 लॉकडाउन के असर का अनुमान लगाया गया. इसमें इस साल पीएम 2.5, पीएम10, और एनओ2 के स्तरों में ख़ासी गिरावट देखी गई, जिसके पीछे कई कारण थे, जैसे सड़कों पर वाहनों की संख्या में कमी केवल आवश्यक कमर्शियल इकाइयों का चलना और मौसम की परिस्थितियां.
2018 में ऊर्जा और संसाधन संस्थान व ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एआरएआई) द्वारा की गई एक स्टडी के अनुसार गर्मियों में दिल्ली में प्रदूषण के प्रमुख स्रोत धूल व निर्माण कार्य (38-42 प्रतिशत), ट्रांसपोर्ट (15-17 प्रतिशत), और इंडस्ट्री (22 प्रतिशत) होते हैं.
लेकिन सर्दियों के आने के साथ ही, पंजाब और हरियाणा के किसान अपने खेतों से धान के अवशेषों साफ करने के लिए, उन्हें जलाने लगते हैं. इस आग से उठे छोटे छोटे कण, गंगा के पूरे मैदान में फैल जाते हैं, और उत्तरी भारत के एक बड़े हिस्से पर, धुएं की चादर फैल जाती है.
दिल्ली, नोएडा और गुड़गांव जैसे शहरों को, जो पहले से ही वाहनों और साल भर चलने वाले उद्योगों के प्रदूषण से त्रस्त रहते हैं, इसका परिणाम भुगतना पड़ता है, चूंकि उनकी मौसमी परिस्थितियां इस धुएं को छंटने नहीं देतीं.
सर्दियां आने के साथ ही, ठंड की वजह से छोटे छोटे कण ऊपर नहीं उठ पाते, जिससे लोगों को ज़हरीली धुंध का सामना करना पड़ता है. दीवाली का त्योहार- जो इस साल 14 नवम्बर को मनाया जाएगा- इसमें और अधिक प्रदूषक जोड़ देता है, चूंकि लोग पटाख़े जलाते हैं.
यह भी पढ़ें: कोरोनावायरस महामारी के बाद पहली बार भारत की R वैल्यू एक से नीचे आयी
2016 से 2018 के बीच, दिल्ली के प्रदूषण स्तर में क़रीब 25 प्रतिशत गिरावट आई. लेकिन एक्यूआई के आंकड़े सुरक्षित समझी जाने वाली सीमा से, कहीं ज़्यादा ऊंचे रहे. सेन्टर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की एक स्टडी के मुताबिक़, वायु गुणवत्ता मानदंडों पर पूरा उतरने के लिए दिल्ली को अपने प्रदूषण स्तर में अभी और 65 प्रतिशत कमी करनी होगी.
लेकिन फिर भी, 22 सितंबर को सेटेलाइट डेटा को अमृतसर में पराली जलाने के पहले सबूत दिखने शुरू हो गए, बावजूद इसके कि पराल जलाना अब एक दंडनीय अपराध है.
शहर-केंद्रित नीतियां
भूषण ने कहा कि वायु प्रदूषण घटाने के लिए हुआ काम अभी तक शहर-केंद्रित रहा है. जिसमें मुख्य रूप से ऑटोमोबाइल सेक्टर के इर्द गिर्द ही उपाय किए गए हैं. मसलन, दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार हर साल सीमित अवधि के लिए, ऑड-ईवन स्कीम लागू कर देती है-ऑड नंबर की तारीख़ों पर ऑड नंबर की गाड़ियां और ईनव पर ईवन की. लेकिन ये स्कीम विवादास्पद रही है और स्टडीज़ ने दिखाया है कि इसका दिल्ली के प्रदूषण स्तर पर कोई ख़ास असर नहीं होता.
इस बीच बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने ईस्टर्न और वेस्टर्न पेरिफरल एक्सप्रेसवेज़ को खोल दिया. जिससे 30,000-40,000 वाहन जिन्हें दिल्ली नहीं जाना होता वो शहर के बाहर से ही निकल जाते हैं.
पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने ये दावा भी किया था कि 2019 के नए मोटर वाहन अधिनियम पराल जलाने में कमी के उपायों भारत स्टेज 6 सम्मत फ्यूल व वाहन नियमों ई-वाहनों के लिए प्रोत्साहन और दिल्ली में मेट्रो सेवा के विस्तार से, शहर में वायु प्रदूषण को कम करने में मदद मिली थी.
लेकिन, भूषण ने कहा कि सरकार को समझ ही नहीं आ रहा कि जैव ईंधन जलाने के मामले में क्या करना है- जिसकी वजह से हर साल प्रदूषण में उछाल आ जाता है.
डिमरी ने भी उनसे सहमति जताते हुए कहा कि पराल जलाने के ख़िलाफ बनाई गई नीतियां ज़मीनी स्तर पर कामयाबी से लागू नहीं हो पाईं हैं.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)