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बुधवार, 2 जुलाई, 2025
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पति-पत्नी और बच्चे को वित्तीय सहायता देने में देरी करना सम्मान से वंचित करने के समान: अदालत

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नयी दिल्ली, दो जुलाई (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक वैवाहिक मामले में एक व्यक्ति को ‘अंतरिम भरण-पोषण’ आदेश देते हुए कहा कि अलग रह रही पत्नी और बच्चे को वित्तीय सहायता देने में देरी करना सम्मान से वंचित करने के समान है।

न्यायमूर्ति स्वर्णकांता शर्मा कुटुंब अदालत के उस आदेश के खिलाफ पति की अपील की सुनवाई कर रही थीं, जिसमें इसने (कुटुंब अदालत ने) व्यक्ति (पति) को निर्देश दिया था कि वह अलग रह रही अपनी पत्नी और नाबालिग बेटी के अंतरिम भरण-पोषण के लिए प्रतिमाह कुल 45,000 रुपये का भुगतान करे।

इस राशि में से दोनों को बराबर-बराबर हिस्सा दिया जाना है।

एक जुलाई को जारी फैसले में कहा गया है, ‘‘वित्तीय सहायता में देरी करना सम्मानित जीवन से वंचित करना है और यह अदालत इस तथ्य से अवगत है कि समय पर भरण-पोषण दिया जाना न केवल जीवनयापन के लिए, बल्कि वैसे लोगों की बुनियादी गरिमा की रक्षा के लिए भी आवश्यक है, जो कानूनी रूप से ऐसे समर्थन के हकदार हैं।’’

अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि भरण-पोषण केवल एक मौद्रिक दायित्व नहीं, बल्कि एक कानूनी और नैतिक कर्तव्य है, जो आश्रित पति-पत्नी और बच्चे की गरिमा और सुरक्षा को बनाए रखने के लिए बनाया गया है।

इसमें कहा गया है, ‘‘जब वित्तीय सहायता में देरी होती है, तो सबसे पहले गरिमा को ठेस पहुंचती है… यदि भरण-पोषण का काम कमाऊ पति या पत्नी की सुविधा पर छोड़ दिया जाता है, तो भरण-पोषण का उद्देश्य ही विफल हो जाता है।’’

हालांकि, न्यायमूर्ति शर्मा ने नाबालिग बेटी के लिए दी जाने वाली राशि घटाकर 17,500 रुपये प्रतिमाह कर दी, जबकि पत्नी के लिए दी जाने वाली राशि को बरकरार रखा।

अदालत ने कहा कि पति अपनी नियमित आय और संसाधनों के बल पर सुरक्षित शांति से सोता रहा, जबकि अलग रह रही पत्नी चुपचाप पीड़ा झेलती रही, अनिश्चितता और चिंता से जूझती रही कि अगर यह राशि समय पर नहीं दी गयी, तो वह अपनी बुनियादी जरूरतों को कैसे पूरा करेगी।

अदालत ने कहा, ‘‘यद्यपि याचिकाकर्ता (पति) का तर्क है कि केवल एक महीने का भरण-पोषण बकाया है, प्रतिवादी (पत्नी) पर इस तरह की देरी के प्रभाव को कम करके आंका नहीं जा सकता है। वास्तविकता यह है कि बुनियादी खर्चों पर एक दिन की अनिश्चितता भी प्रतिवादी के लिए संकट और कठिनाई का कारण बनती है, जो अपने जीवनयापन और नाबालिग बच्चे के भरण-पोषण के लिए पूरी तरह से इसी राशि पर निर्भर है।’’

आदेश में कहा गया है, ‘‘भरण-पोषण का उद्देश्य सम्मान के साथ जीने और भोजन, आश्रय, कपड़े, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसे बुनियादी खर्चों को पूरा करने के उनके अधिकार की रक्षा करना है।’’

भाषा सुरेश माधव

माधव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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