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Saturday, 4 May, 2024
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इंदिरा गांधी के लगाए आपातकाल के ‘पीड़ितों’ की SC से गुहार- ‘हमें स्वतंत्रता सेनानी घोषित करें’

आपातकाल के दौरान गिरफ्तार किए गए लोगों के प्रतिनिधित्व संगठन ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई है कि ऐसे सभी लोगों को पेंशन, मुफ्त यात्रा पास और स्वास्थ्य सेवा जैसे कल्याण के लाभ दिए जाएं.

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नई दिल्ली: आपातकाल के दौरान गिरफ्तार किए गए लोगों के प्रतिनिधि संगठन ने उच्चतम न्यायालय में एक हस्तक्षेप याचिका दायर करके आग्रह किया है कि कोर्ट की ओर से उन्हें स्वतंत्रता सेनानी घोषित किए जाए.

अखिल भारतीय लोकतंत्र सेनानी संयुक्त कार्रवाई समिति ने, 94 वर्षीय वीरन सरीन की ओर से दायर एक याचिका में पक्ष बनाए जाने का अनुरोध किया है जिन्होंने शीर्ष अदालत से अपील की है कि 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा घोषित इमरजेंसी को असंवैधानिक करार दिया जाए.

जस्टिस संजय किशन कौल की अगुवाई में एक बेंच ने, सरीन की याचिका पर 14 दिसंबर को केंद्र सरकार को एक नोटिस जारी किया था लेकिन उन्होंने सरीन के बतौर मुआवज़ा, 25 करोड़ के निवेदन पर विचार नहीं किया.

सरीन के केस में ताज़ा आवेदक, ऐसी कई इकाइयों का एक संगठन है, जो आपातकाल के दौरान गिरफ्तार किए लोगों की नुमाइंदगी करता है.

स्वतंत्रता सेनानी के दर्जे की मांग करने वाली, अपनी हस्तक्षेप याचिका में लोकतंत्र सेनानी ने कोर्ट से कहा है कि 10 प्रांतों ने आवेदकों को मान्यता दी है और मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा तथा यात्रा पास देने के अलावा उन्हें मासिक पेंशन की सुविधा दी है.

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लेकिन, सेनानी ने ये भी कहा कि ये कल्याण स्कीमें एक जैसी नहीं हैं और सत्ताधारी पार्टी के हिसाब से बदल जाती हैं.

आवेदन में उदाहरण दिए गए हैं कि कैसे राज्य सरकारों ने, समूह के सदस्यों को वित्तीय सहायता देनी बंद कर दी, सिर्फ इसलिए कि सूबे में सत्ताधारी पार्टी बदल गई थी.


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‘राज्य द्वारा हर्जाने के पात्र’

सरीन की हिमायत में सामने आते हुए, संगठन ने कहा कि राज्यों के पदाधिकारियों द्वारा, उसके सदस्यों को उनके जीने और आज़ादी के अधिकार से वंचित किया गया है.

अभिवक्ता भारती त्यागी की ओर से दायर आवेदन में संगठन ने कहा, ‘उक्त अवधि के दौरान, उक्त कार्य अवैध था और ऐसे सभी व्यक्ति, राज्य द्वारा हर्जाने के पात्र हैं’.

सरीन के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने भी यही दलील देकर, कोर्ट को इस मामले में नोटिस जारी करने के लिए राज़ी किया था.

बेंच ने, जो दिसंबर में ज़ुबानी तौर पर कह चुकी थी कि ‘पृथम दृष्टया’ उसे याचिका में, कोई योग्यता नज़र नहीं आती, उस समय इस मुद्दे की जांच के लिए राज़ी हो गई, जब साल्वे ने उससे ये सुनिश्चित करने का अनुरोध किया कि ‘इतिहास को ठीक किया जाए’, ताकि वो अपने आप को ‘न दोहराए’.

‘केंद्र की ओर से समान कल्याणकारी नीति की याचिका पर कोई प्रतिक्रिया नहीं’

अखिल भारतीय लोकतंत्र सेनानी संयुक्त कार्रवाई समिति ने, हाई कोर्ट के पुराने आदेशों का हवाला दिया है, जिनमें राज्य सरकारों को सलाह दी गई है कि आपातकाल के दौरान जेल में बंद किए गए लोगों को ज़रूरी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं.

याचिका में कहा गया है कि इन आदेशों के आधार पर ग्रुप के सदस्यों ने, राज्यों तथा केंद्र की सरकार को लिखा था कि उन्हें सहायता पहुंचाने के लिए एक समान नीति बनाई जाए लेकिन उसका कोई जवाब नहीं मिला.

आवेदन में कहा गया कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यों ने, उन्हें कुछ कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिया तो, अलबत्ता रुक-रुक कर दिया.

आवेदन में ये भी कहा गया कि ‘ये सुविधाएं सुसंगत तरीके से नहीं दी गईं और सत्ताशील पार्टी की सुविधा के अनुसार, इन्हें राज्य की सियासत के चलते अक्सर पूरी तरह वापस ले लिया गया’.

मसलन, याचिका में कहा गया कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में पेंशन और सम्मान दिए जाने के बाद वापस ले लिए गए. उसमें ये भी कहा गया कि मध्य प्रदेश में 2018 में उसे बहाल किया गया लेकिन महाराष्ट्र और राजस्थान ने अभी तक ऐसा नहीं किया है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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