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Monday, 23 December, 2024
होमडिफेंसबुरहान, नाइकू, मूसा की मौत के साथ कश्मीर एक बार फिर ‘फेसलेस’ आतंकवाद की ओर बढ़ता दिख रहा

बुरहान, नाइकू, मूसा की मौत के साथ कश्मीर एक बार फिर ‘फेसलेस’ आतंकवाद की ओर बढ़ता दिख रहा

2020 पिछले एक दशक में दूसरा ऐसा साल है जब सबसे ज्यादा संख्या में आतंकवादी भर्ती हुई है. पुलिस के मुताबिक, संगठन अब आतंकवाद के अगले चरण के लिए ‘फेसलेस कमांडर’ तलाश रहे हैं.

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श्रीनगर: गत 26 नवंबर को श्रीनगर के बाहरी इलाके अबान शाह चौक के पास दो आतंकवादी आराम से टहलते हुए सेना की एक क्विक रिस्पांस टीम के दो जवानों के पास से गुजरे. पलक झपकते ही उनमें से एक ने एक-47 खींची और घूमकर खड़ा हो गया. थोड़ी ही देर में सेना के जवान अंधाधुंध गोलीबारी की चपेट में थे जबकि आसपास मौजूद स्थानीय लोग वहां से भाग खड़े हुए.

सोशल मीडिया पर एक आतंकी समूह की तरफ से जारी इस हमले के एक वीडियो में हमलावरों में से एक अपने दाहिने हाथ से हथियार चलाते और दूसरे हाथ में मौजूद कैमकॉर्डर की मदद से इस घटना को रिकॉर्ड करते दिखाई देता है.

ताबड़तोड़ फायरिंग के बाद दोनों युवकों, जो करीब 20 वर्ष की उम्र के माने जा रहे हैं, ने घटनास्थल के पास से ही एक मारुति 800 कार का उसके ड्राइवर समेत अपहरण कर लिया. आतंकियों ने एक सुरक्षित दूरी पर पहुंचने के बाद ड्राइवर को उतार दिया और कार लेकर भाग निकले और अधिकारी काफी समय तक इस पूरे घटनाक्रम की कड़ियां जोड़ने में माथापच्ची करते रह गए.

यद्यपि दो जवानों की जान लेने वाले इस हमले के बारे में पूरी जानकारी और हमले में शामिल लोगों की पहचान हो गई लेकिन हमले की जगह, योजना और उसे अंजाम देने का तरीका जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के बदलते चेहरे को दर्शाता है.

सुरक्षा अधिकारियों का कहना है कि इस केंद्रशासित प्रदेश में आतंकवाद घिनौना रूप धारण कर रहा है. आतंकी संगठनों में स्थानीय भर्ती बढ़ने से यह पूर्ववर्ती राज्य ‘फेसलेस’ आतंकवाद की तरफ लौटता दिख रहा है, जैसा सोशल मीडिया पर नजर आने वाले और अपने दुष्प्रचार अभियान के लिए उसका इस्तेमाल करने वाले बुरहान वानी और ऐसे ही अन्य आतंकी कमांडरों के उभरने से पहले कभी हुआ करता था.


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स्थानीय भर्ती—एक खतरनाक ट्रेंड

दिप्रिंट को मिले पुलिस डाटा के अनुसार, 2020 पिछले एक दशक में दूसरा ऐसा साल है जब सबसे ज्यादा आतंकी भर्ती हुई है, यद्यपि इस वर्ष अब तक सुरक्षा बलों के हाथों 190 से अधिक आतंकवादी मारे जा चुके हैं.

डाटा बताता है कि इस साल 148 स्थानीय युवकों ने आतंकवाद की राह अपनाई है. सूत्रों के अनुसार, प्रशासन कश्मीर में दो दर्जन से अधिक लापता युवकों की स्थिति का पता लगाने में अगर सक्षम हो पाए तो हो सकता है कि यह आंकड़ा और भी बढ़ जाए.

डाटा बताता है कि 2019 में आतंकी रैंक में स्थानीय भर्ती का आंकड़ा 126 था. इस दशक में सबसे ज्यादा भर्ती 2018 में हुई जब यह संख्या 199 थी, 2017 में 139 आतंकवादियों की भर्ती हुई थी.

2010 में 54 कश्मीरी युवक आतंकवादी संगठनों में शामिल हुए थे, इसके बाद सबसे ज्यादा गिरावट 2011, 2013 और 2013 में आई जब यह संख्या क्रमशः 23, 21 और 6 रही.

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘हिजबुल मुजाहिदीन के बुरहान वानी के सुर्खियों में रहने के बाद हमने इस संख्या में काफी वृद्धि देखी है.’

2014 में 53 कश्मीरी युवक आतंकी संगठनों में शामिल हुए गए, जबकि अगले दो वर्षों में 66 और 88 युवक आतंकवादी बन गए.

एक दूसरे वरिष्ठ अधिकारी ने भी बताया कि इस वर्ष अगस्त, सितंबर और अक्टूबर के तीन महीनों के दौरान 2017 के बाद से अब तक सबसे ज्यादा आतंकी भर्ती हुई है, जिसका आंकड़ा 57 है. इससे पहले 2017, 2018 और 2019 में इन्हीं तीन महीनों की अवधि के दौरान क्रमश: 32, 42 और 20 युवा आतंकी गुटों में शामिल हुए थे.

दिल्ली पॉलिसी ग्रुप की पूर्व महानिदेशक राधा कुमार, जिन्हें कश्मीर में 2010 के आंदोलन के बाद वार्ताकार के रूप में नियुक्त किया गया था, ने कहा कि वह आतंकी भर्ती में तेजी देखकर हैरान नहीं हैं. उन्होंने कहा कि राजनीतिक वार्ता के अभाव में यह संख्या और ज्यादा बढ़ सकती है.

उन्होंने कहा, ‘1986-87 में चुनावों में धांधली के आरोपों के बाद आतंकवाद पर काबू पाने में दो-तीन साल लग गए थे. जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा (5 अगस्त 2019 को) निरस्त किए जाने के बाद मैंने आगाह किया था कि कश्मीर में आक्रोश बढ़ेगा और हमें एक बार फिर आतंकवाद में वृद्धि नजर आ सकती है.’

उन्होंने कहा, ‘यह तथ्य कि (कश्मीर पर) कोई राजनीतिक बातचीत नहीं हो रही और यहां तक कि विधानसभा चुनाव भी नहीं हो रहे, केवल इस संकट को बढ़ाएगा ही. हुआ बस यह है कि स्थानीय प्रशासन के लिए चुनाव कराए गए हैं जबकि प्रमुख मुद्दों पर ध्यान ही नहीं दिया जा रहा है.’

‘बिना चेहरे वाला’ आतंकवाद

आतंकी भर्ती की बढ़ती संख्या सुरक्षा व्यवस्था की गंभीर स्थिति को दर्शाती है लेकिन ‘बिना चेहरे वाला’ आतंकवाद और भी अधिक चिंता का कारण बन गया है.

श्रीनगर में तैनात एक तीसरे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘बुरहान वानी और उसके समूह ने एक चीज बदल दी थी और वह ये कि कश्मीरी आतंकवाद से जुड़ी पर्दे के पीछे रहकर चलने वाली गतिविधियां. ये क्लाशनिकोव के साथ खींची गई फोटो के जरिये आतंकवाद को महिमामंडित करते और इन तस्वीरों को सोशल मीडिया पर साझा करते.’

नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने कहा, ‘अब हम एक ऐसे मुकाम पर हैं जहां हमने बुरहान वानी के साथ के लगभग सभी आतंकवादियों को खत्म कर दिया है. कोई जाना-पहचाना चेहरा नहीं है जो आतंकी भर्ती बढ़ाने वाला हो. इन्हीं सब कारणों से अबान शाह चौक पर हालिया हमले जैसी घटनाएं सामने आ रही हैं. यह हमला रिकॉर्ड करने और शेयर करने के इरादे से किया गया था और ऐसी चीजें भर्ती का हथियार बनाने में इस्तेमाल होती हैं.

अधिकारी ने कहा कि ऐसी घटनाओं के साथ-साथ संभवत: हाई-प्रोफाइल हत्याएं और हमले भी कश्मीर में आतंकवाद के अगले दौर को बढ़ा सकते है, जिसकी कमान ‘फेसलेस कमांडरों’ के हाथों में होगी.

तीसरे अधिकारी ने कहा, ‘कोई भी आतंकवाद का पूरा इतिहास उठाकर देख सकता है जिसमें सबसे पहले एचएजेवाई ग्रुप—यानी हामिद शेख, अशफाक मजीद, जावेद मीर और यासीन मलिक सक्रिय था. एक बार जब आतंकवाद के इस पहले चरण पर काबू पाया गया तो आप फेसलेस पाकिस्तानी आतंकवादियों का उभार देखते हैं जिसमें संसद हमले में शामिल गाजी बाबा, उत्तरी कश्मीर में आतंकवाद को खड़ा करने वाला अब्दुल्ला उन्नी, और दक्षिण कश्मीर में आतंकवाद की आग लगाने वाले अबू कासिम और अबू दुजाना शामिल हैं.’

उन्होंने कहा, ‘इनकी गतिविधियों का ही नतीजा था कि बुरहान वानी, रियाज नाइकू, जाकिर मूसा और समीर टाइगर जैसे चेहरों ने आतंकवाद को मिटने नहीं दिया.

उक्त अधिकारी ने कहा कि अब जब इन सभी को मार गिराया जा चुका है कश्मीर फिर चेहराविहीन आतंकवाद की ओर बढ़ता नजर आ रहा है. जमीनी स्तर पर ऐसी गतिविधियों से निपटने की ठोस रणनीति अपनाने की जरूरत है.

अधिकारी के अनुसार, ये आतंकवादी स्थानीय युवकों की तुलना में बेहतर प्रशिक्षित हैं और अधिक हथियारों से भी लैस हैं.

उन्होंने कहा कि न केवल जैश और लश्कर के आकाओं ने कश्मीर में लो प्रोफाइल बना रखा है, हिजबुल मुजाहिदीन ने भी अपनी गतिविधियों को सीमित कर रखा है, रेजिस्टेंस फ्रंट एंड पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट (पीएएफएफ) जैसे नए गुटों का खड़ा होना इसी ओर इशारा करता है.

धीरे-धीरे कदम बढ़ा रहे

कई सुरक्षा अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि पाकिस्तानी आतंकवादी कमांडर यहां धीरे-धीरे अपना मोर्चा संभालते जा रहे हैं.

एक चौथे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘इस वर्ष मारे गए 190 से अधिक आतंकवादियों में लगभग 20 विदेशी हैं. यह महत्वपूर्ण है क्योंकि 100 से अधिक विदेशी आतंकवादी सक्रिय हैं. आतंकवादियों के बीच प्रौद्योगिकी का उपयोग तेजी से घटा है, हालांकि वे कुछ मैसेजिंग एप का इस्तेमाल करते हैं.’

नाम उजागर न करने की शर्त पर उक्त अधिकारी ने कहा, ‘हमारे हाथों आतंकियों के सैकड़ों सहयोगियों की गिरफ्तारी के बाद भी वह जमीनी स्तर पर फिर से अपने सहयोगियों का नेटवर्क खड़ा करने में सफल रहे हैं. लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि अब पूरा फोकस मध्य कश्मीर पर रखा जा रहा है.’

अधिकारी ने कहा कि हालांकि, दक्षिण कश्मीर आतंकवाद से बुरी तरह प्रभावित है, उत्तर में आतंकवाद बीते पांच साल से अधिक समय से निष्क्रिय रहा है.

अधिकारी ने कहा, ‘अब हम न केवल उत्तर बल्कि मध्य कश्मीर, विशेषकर श्रीनगर में आतंकी गतिविधि बढ़ती देख रहे हैं. अकेले इस साल श्रीनगर में गोलीबारी की 20 घटनाएं और कई हमले हुए हैं. इसमें 6 दिसंबर को हवाल क्षेत्र में हुई घटना सबसे ताजा है.

हिजबुल मुजाहिदीन का आतंकी कमांडर सैफुल्लाह भी शहर के बाहरी इलाके में एक मुठभेड़ में मारा गया था, जो जम्मू-कश्मीर की ग्रीष्मकालीन राजधानी में सबसे सनसनीखेज गोलीबारी की घटनाओं में एक है. उससे पूर्व, एक और हिजबुल कमांडर जुनैद सेहराई, हुर्रियत नेता अशरफ सेहराई के बेटे, को इस साल के शुरू में श्रीनगर में मुठभेड़ में मार गिराया गया था.

हालांकि, श्रीनगर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक हसीब मुगल का कहना है कि श्रीनगर में अशांति फैलाने की आतंकवादियों की कोशिश कोई नई बात नहीं है.

मुगल ने कहा, ‘इस साल 20 मुठभेड़ हुई हैं लेकिन वह सभी पुलिस की तरफ से शुरू की गई कार्रवाइयों का नतीजा थीं. आतंकी हमेशा श्रीनगर में अपनी गतिविधियां तेज करने की कोशिश करते हैं लेकिन हम हमेशा उन्हें रोकने में कामयाब रहे हैं.


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