नई दिल्ली: भारतीय रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान का आकलन बताता है कि भारत और चीन के बीच सीमा पर गतिरोध तब तक बना रह सकता है जब तक कि पूर्ण रूप से तनाव कम नहीं हो जाता है. दोनों देश वर्तमान में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तनाव का समाधान खोजने के लिए सैन्य और कूटनीतिक स्तर की बातचीत कर रहे हैं.
सूत्रों के अनुसार, भारत का पहला उद्देश्य एक हद तक डी-एस्केलेशन सुनिश्चित करना है और फिर तनाव को कम करने प्रक्रिया शुरू होगी.
डी-एस्केलेशन सैन्य विस्तार को कम करना सुनिश्चित करेगा. तनाव कम करना (डिसिन्गेज्मन्ट) वह प्रक्रिया है जिसके तहत यथास्थिति बनाए रखी जाती है.
चीन ने गलवान घाटी और हॉट स्प्रिंग एरिया में डी-एस्केलेशन किया है- जिसके तहत उसने लगभग एक दर्जन वाहनों को एलएसी से 1.5 किमी पीछे हटाया है. हालांकि, भारतीय क्षेत्र में उसका विस्तार को जारी रखा है.
सूत्रों ने कहा कि पैंगोंग झील के फिंगर इलाकों में चीनियों द्वारा डे-एस्केलेशन दिखाई नहीं दे रहा है, जो कि समस्या का कारण बना हुआ है.
उन्होंने चीन के इस कदम को डी-एस्केलेशन कहा है न कि तनाव कम करने वाला क्योंकि अभी एलएसी पर अतिक्रमण जारी है.
गुरुवार को सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे लद्दाख की तीन दिवसीय यात्रा के बाद राष्ट्रीय राजधानी लौटे हैं. सूत्रों ने कहा कि वह शुक्रवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को जानकारी देंगे.
‘लंबी प्रक्रिया’
डिसिन्गेज्मन्ट के बारे में पूछे जाने पर एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह एक लंबी प्रक्रिया है. कई बैठकें होंगी जो विभिन्न स्तरों पर समय-समय पर आयोजित की जाएंगी.’
स्रोत ने कहा, ‘कुछ वाहनों और चीनी पक्ष की ओर से आगे के क्षेत्रों के पुरुषों का पीछे हटना एक सकारात्मक संकेत है, लेकिन हमें उम्मीद नहीं है कि डिसिन्गेज्मन्ट प्रक्रिया जल्दी होने वाली है.’
एक दूसरे सूत्र ने कहा कि सप्ताह भर में पूर्ण डिसिन्गेज्मन्ट नहीं होगा. वास्तव यह प्रक्रिया सर्दियां आने तक चल सकती है.
स्रोत ने कहा, हालांकि यह आशा की जाती है कि डिसिन्गेज्मन्ट जल्दी होगा और अप्रैल जैसी यथास्थिति बनी रहेगी. भारत लंबी प्रक्रिया की संभावना से इनकार नहीं कर रहा है.
पर्याप्त तैनाती
दूसरे स्रोत ने यह भी कहा कि भारत के पास भी आगे और गहराई वाले क्षेत्रों में पर्याप्त तैनाती है, साथ ही किसी भी घटना के लिए आपूर्ति में भी असंगति की प्रक्रिया से निपटने के लिए तैयारी है.
एक तीसरे स्रोत ने कहा, ‘हम एक या दो क्षेत्र के बारे में बात नहीं कर रहे हैं. टकराव के बहुत सारे(फ्रिक्शन पॉइंट) बिंदु हैं. जिन पर बात करने और हल करने की आवश्यकता है. चीनी की कुछ चिंताएं हैं, हमारी अपनी चिंता है. लेकिन इसमें समय लगेगा.’
अपनी लद्दाख यात्रा के दौरान, सेना प्रमुख ने आगे के क्षेत्रों का दौरा किया और सैनिकों के साथ बातचीत की. उन्हें लेह में कोर मुख्यालय में स्थिति पर विस्तृत जानकारी दी गई, जिसमें स्थानीय कमांडरों और उत्तरी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल वाईके जोशी और कोर कमांडर, लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह शामिल थे.
दिप्रिंट ने गुरुवार को रिपोर्ट किया था कि भारत और चीन ने उस इलाके में अतिरिक्त सैनिकों और उपकरणों को तैनात नहीं करने की संभावना पर चर्चा की है, जहां पूर्वी लद्दाख में गतिरोध जारी है, इसके अलावा टकराव क्षेत्रों में नए टेंट और बंकर निर्माण गतिविधि को रोकना है.
दिप्रिंट ने रिपोर्ट किया था कि यह सुनिश्चित करना था कि कोई एस्कलेशन न हो. कोर कमांडर-स्तरीय बैठकों के दौरान, मौजूदा तौर-तरीकों पर जोर दिया गया था ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दोनों पक्षों के गश्त दल एक-दूसरे के साथ आने पर हिंसा में लिप्त न हों.
गुरुवार को, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि मई की शुरुआत से चीनी पक्ष एलएसी के साथ सैनिकों और सेनाओं की एक बड़ी टुकड़ी को एकत्र कर रहा है.
उन्होंने कहा, ‘जाहिर है, भारतीय पक्ष को जवाबी तैनाती करनी थी और जिसके परिणामस्वरूप तनाव सामने आया है.’
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