(अंजलि ओझा)
नयी दिल्ली, 21 जनवरी (भाषा) मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की वरिष्ठ नेता वृंदा करात ने कहा है कि महिलाओं के लिए नकदी अंतरण के कदम स्वागत योग्य हैं और यह कोई रेवड़ी नहीं है क्योंकि महिलाएं अवैतनिक श्रम के माध्यम से सकल घरेलू उत्पाद में लगभग सात प्रतिशत का योगदान देती हैं।
‘ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वूमेन एसोसिएशन’ (एडवा) के संस्थापक सदस्यों में से एक और प्रसिद्ध राजनीतिक कार्यकर्ता करात ने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए साक्षात्कार में कहा कि राजनीतिक दलों को एहसास हो गया है कि महिलाओं को हल्के में नहीं लिया जा सकता है।
चुनावों से पहले राजनीतिक दलों द्वारा महिलाओं के लिए लाई जा रही प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) योजनाओं के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘‘यह महिला आंदोलनों, महिला संगठनों, संघर्षों और महिलाओं की चेतना का परिणाम है कि वे केवल पुरुषों पर निर्भर नहीं है, बल्कि उनका एक स्वतंत्र अस्तित्व है।’’
उनका कहना था, ‘‘राजनीतिक दलों ने समझ लिया है कि वे महिलाओं को हल्के में नहीं ले सकते। इस अर्थ में यह उस बात की मान्यता है जिसके लिए हम महिला कार्यकर्ता लड़ रहे हैं। मैं इन योजनाओं को महिला सशक्तीकरण नहीं कहूंगी। लेकिन हां, यह इस बात का प्रतिबिंब है कि स्वतंत्र नागरिक के रूप में महिलाओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।’’
उन्होंने महिलाओं द्वारा किए जाने वाले अवैतनिक श्रम का हवाला दिया और भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के 2023 के सर्वेक्षण का उल्लेख किया जिसमें पता चला था कि महिलाओं द्वारा अर्थव्यवस्था में अवैतनिक श्रम का कुल योगदान लगभग 22.7 लाख करोड़ रुपये है, जो भारत की जीडीपी का लगभग 7.5 प्रतिशत है।
करात ने कहा, ‘‘यदि आप पैसे के संदर्भ में इसका अनुमान लगाते हैं, तो अवैतनिक घरेलू या देखभाल कार्यों के माध्यम से परिवारों के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए महिलाएं जो काम कर रही हैं, वह भारत के सकल घरेलू उत्पाद का सात प्रतिशत से अधिक है। यह वास्तव में महिलाओं का बड़ा योगदान है। इसे पहचानने के बजाय आप महीने में 1,500 रुपये या 1,000 रुपये दे रहे हैं और कहते हैं कि यह आपके अधिकार की मान्यता नहीं है, बल्कि सरकार की ओर से एक उदारता है।’’
उन्होंने कहा कि एक महिला का अधिकार एक लाभार्थी के अधिकार में बदल गया है।
माकपा नेता ने कहा, ‘‘हम लाभार्थी नहीं बनना चाहते हैं। आप हमें संरक्षण देना चाहते हैं, आप पितृसत्तात्मक संरक्षण चाहते हैं जिससे ऐसा लगता है कि हम कितना अच्छा काम कर रहे हैं, आपको पैसा दे रहे हैं। आप चाहते हैं इसे उदारता में बदलो और इसे रेवड़ी कहो।’’
भाषा हक हक माधव
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