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Friday, 17 May, 2024
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कोविड का असली प्रभाव देखने के लिए कार्यकर्ताओं और एक्सपर्ट्स ने मांगे 2018 के बाद सभी मौतों के आंकड़े

ये मांग एक खुले पत्र में, 230 से अधिक पब्लिक हेल्थ प्रोफेश्नल्स, महामारी विज्ञानियों और कार्यकर्ताओं ने की है, जिनमें गौतम मेनन, गिरिधर आर बाबू और टी जेकब जॉन शामिल हैं.

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नई दिल्ली: 230 से अधिक पब्लिक हेल्थ प्रोफेश्नल्स, महामारी विज्ञानियों और कार्यकर्ताओं के एक समूह ने भारत में 2018 के बाद दर्ज हुई तमाम मौतों के आंकड़े जारी किए जाने की मांग की है. उनका मक़सद है कोविड-19 से मरने वालों के आंकड़ों में संभावित गैप्स को भरना और महामारी के असली असर का आंकलन करना, जिसमें वो ग़ैर-कोविड मरीज़ भी शामिल होंगे, जो दबाव से चरमराते हेल्थ सिस्टम में, पर्याप्त इलाज न मिलने से मर गए होंगे.

रविवार को लिखे गए खुले पत्र में एक्सपर्ट्स ने- जिनमें महामारी विज्ञानी गौतम मेनन और गिरिधर आर बाबू और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के प्रमुख टी जेकब जॉन शामिल हैं- साल 2018, 2019 और 2020 में हुई कुल मौतों के आंकड़ों की मांग की है, जिससे कि ‘अतिरिक्त मौतों’ के आंकड़ों का हिसाब लगाया जा सके, यानी ‘उससे अधिक मौतें जिनकी हम सामान्य हालात में अपेक्षा करते.’

एक्सपर्ट्स ने अपने पत्र में ये भी लिखा है, कि भारत के इतिहास में सिविल रजिस्ट्रेशन प्रणाली द्वारा संकलित किया गया डेटा, कभी भी इतना महत्वपूर्ण नहीं रहा. ये पत्र रजिस्ट्रार जनरल कार्यालय, सेंसस कमिश्नर ऑफ इंडिया, प्रदेश रजिस्ट्रार्स, और नगर निगम जैसी दूसरी एजेंसियों को संबोधित करके लिखा गया है, जो मौतों के रिकॉर्ड्स रखती हैं.

उन्होंने लिखा है, ‘महत्वपूर्ण पंजीकरण प्रणालियां जो जन्म और मृत्यु के रिकॉर्ड रखती हैं, स्वास्थ्य निगरानी के ऐसे बेजोड़ साधन हैं, जो विशेषकर महामारियों से निपटने में सहायक होते हैं.’

पूरी महामारी के दौरान एक्सपर्ट्स ने इस बात को लेकर शक जताया है, कि क्या भारत कोविड-19 मौतें सही से बता रहा है. राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में भी, कोविड मौतों के सरकारी आंकड़ों पर, विसंगतियों के आरोप लगते रहे हैं.

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एक्सपर्ट्स ने जून में ये आरोप भी लगाया था, कि कोविड-19 से हुईं कुछ मौतें, कम टेस्टिंग की आड़ में छिप गईं. दुनिया के कुछ दूसरे हिस्सों में भी इसी तरह की चिंता ज़ाहिर की गई है.

अप्रैल में, द न्यूयॉर्क टाइम्स ने 11 देशों में हुई मौतों के आंकड़ों का विश्लेषण किया, जिससे पता चला कि कोरोनावायरस महामारी से दुनियाभर में हुई मौतों की अधिकारिक संख्या, अस्ल संख्या से हज़ारों कम हो सकती है.

ये शंका भी जताई गई है कि हज़ारों ग़ैर-कोविड मरीज़ इस लिए मर गए होंगे, कि महामारी के चलते उन्हें वो मेडिकल तवज्जो नहीं मिल सकी, जिसकी उन्हें ज़रूरत थी.

‘डेटा से पॉलिसी बनाने में मदद मिलेगी’

अपने पत्र में एक्सपर्ट्स ने कहा है, कि कुल मौतों के आंकड़े जारी होने से, भारत में कोविड-19 महामारी के मृत्यु दर पर असर को, एक संख्या दी जा सकती है, और उसी हिसाब से नीतियां तय की जा सकती हैं.


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पत्र में लिखा है, ‘पिछले कुछ महीनों के अंदर बहुत से देशों में, महत्वपूर्ण पंजीकरण प्रणालियों ने ये आंकड़े उपलब्ध कराए हैं, जिससे उन्हें अपनी रणनीतियां बनाने में मदद मिली है…इस डेटा से भारत में सरकारी अधिकारियों को उन जगहों की शिनाख़्त करने में सहायता मिलेगी, जहां गतिविधियों पर प्रतिबंध और अधिक टेस्टिंग की ज़रूरत है और जहां हेल्थकेयर के प्रावधान मज़बूत करने की आवश्यकता है.’

पत्र में ये भी लिखा है, ‘इस डेटा से वायरस इनफेक्शन से होने वाली मौतों की बेहतर समझ पैदा होगी, जिसके नतीजे में भारत में कोविड-19 के बारे में वैज्ञानिक जानकारी बढ़ेगी.’

एक्सपर्ट्स के मुताबिक़, अतिरिक्त मौतों के सही आंकलन के लिए कम से कम पिछले तीन साल (2018, 2019, 2020) में हुई मौतों की जानकारी ज़रूरी होगी. पत्र में कहा गया है कि अगर पिछले तीन साल में हुई मौतों के कारण पता हैं, तो हम अथॉरिटीज़ से उन्हें जारी करने का अनुरोध करते हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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