जालोर: करीब तीन दशक पहले जब राजस्थान के जालोर जिले के राजपुरा गांव में वाग्ताराम नामक एक दलित युवा ने अपना घर-बार छोड़ दिया और दो बीघा भूमि पर आध्यात्मिक जीवन शुरू किया, तब उसने अपनी झोपड़ी के बाहर बरगद का एक पौधा भी लगाया था. पिछले गुरुवार को उसने कथित तौर पर पूरी तरह विकसित उसी पेड़ की एक शाखा पर दो पीले दुपट्टे बांधे और खुद को फांसी लगा ली.
60 वर्ष की आयु में कथित तौर पर आत्महत्या कर लेने वाले वाग्ताराम को अब जालोर के जसवंतपुरा ब्लॉक स्थित बाला हनुमान आश्रम के संत रविनाथ के रूप में जाना जाता था. उनके शिष्यों का दावा है कि उनका आध्यात्मिक दबदबा था, लेकिन साथ ही जोड़ा कि भीनमाल के चार बार के भाजपा विधायक पुरराम चौधरी के साथ उनकी नहीं पटती थी. उनके साथ संत रविनाथ का कथित तौर पर आश्रम के ठीक सामने जमीन के एक छोटे से टुकड़े को लेकर विवाद चल रहा था.
आश्रम से सटी जमीन के एक बड़े हिस्से के मालिक विधायक का दावा है कि इसके सामने की जमीन का एक छोटा-सा हिस्सा भी उनकी संपत्ति में आता है. इन दोनों प्रॉपर्टी के बीच से सड़क गुजरती है. शिष्यों का दावा है कि उनके गुरु ने विधायक के इस दावे का कभी खंडन नहीं किया, लेकिन वह केवल यही चाहते थे कि विधायक आश्रम में आने-जाने के रास्ते के लिए कुछ जमीन छोड़ दें. क्योंकि यह रास्ता छोड़े बिना आश्रम में प्रवेश पूरी तरह से अवरुद्ध हो जाता.
चौधरी ने जहां सोमवार को स्थानीय मीडियाकर्मियों से कहा कि वह आश्रम के लिए रास्ता देने को तैयार थे, रविनाथ के शिष्य एक अलग कहानी बताते हैं.
चौधरी ने 4 अगस्त को कथित तौर पर आश्रम में एक जेसीबी मशीन मंगवाई और बिना किसी चेतावनी के उसके सामने मिट्टी खोदनी शुरू कर दी. उनके शिष्यों का आरोप है कि रविनाथ ने चौधरी से रुकने की गुहार लगाई, लेकिन उन्होंने उन्हें ‘लात मार दी’ और ‘जातिसूचक गालियां दीं’. मामले में दर्ज प्राथमिकी में भी इस घटनाक्रम का जिक्र है.
बरगद के पेड़ के पास एक गहरा गड्ढा देखा जा सकता है, जिसकी वजह से जमीन में इसकी मोटी जड़ें भी साफ नजर आती हैं. रविनाथ के करीबियों का दावा है कि यही घटना पुजारी की मौत की वजह बनी.
उसी रात, रविनाथ ने अपने बिस्तर पर एक कथित सुसाइड नोट छोड़कर कथित तौर पर फांसी लगा ली. पुलिस के कब्जे में आए सुसाइड नोट में तीन लोगों के नाम हैं—विधायक पुरराम चौधरी, उनका ड्राइवर धन सिंह, और संत बिजनाथ, एक बगल में ही एक और छोटा आश्रम चलाते हैं.
रविनाथ की मौत की खबर फैलते ही उनके भक्त और पूरे क्षेत्र के पुजारी आश्रम पहुंच गए और उनका शोक कुछ ही देर में विधायक और उनके सहयोगियों के विरोध में बदल गया.
उन्होंने सुसाइड नोट में जिन तीन लोगों का नाम लिखा था, उनके खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज होने तक पुलिस को रविनाथ का शव पेड़ से उतारने नहीं दिया. 30 घंटे तक वाग्ताराम का शव उसी तरह पेड़ पर लटका रहा, उनके पैर उस गड्ढे के पास थे जिसके कारण कथित तौर पर उन्हें अपनी जान देनी पड़ी है.
हालांकि, पुलिस इस मामले में फूंक-फूंककर कदम उठा रही है.
कथित तौर पर आत्महत्या के लिए उकसाने, घर में जबरन घुसने, आपराधिक धमकी और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की विभिन्न धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई है, लेकिन अभी तक किसी की भी गिरफ्तारी नहीं हुई है.
पुलिस अधीक्षक (एसपी), जालोर हर्षवर्धन अग्रवाल ने कहा, ‘चूंकि इस केस में एक मौजूदा विधायक का नाम बतौर आरोपी दर्ज है, इसलिए इसे पुलिस मुख्यालय की अपराध शाखा में ट्रांसफर कर दिया गया है. जोधपुर की एक टीम मामले की जांच कर रही है.’
फिलहाल गांव में माहौल तनावपूर्ण बना हुआ है. दिप्रिंट ने सोमवार को जब यहां का दौरा किया तो आश्रम के बाहर 20 से अधिक पुलिसकर्मी तैनात थे. रविनाथ के कई शिष्यों ने साइट पर टेंट और वाटर कूलर लगा रखे हैं और उन्होंने तब तक वहीं रहने का संकल्प लिया है, जब तक आरोपी सलाखों के पीछे नहीं चले जाते.
रविनाथ के गुरु, संत मंगल नाथ भी अहमदाबाद से यहां आ गए हैं और जांच पूरी होने तक उनके यहीं रहने की योजना है. इस मामले में कई तरह की अटकलें भी चल रही हैं, कि आश्रम से मुख्य सीसीटीवी फुटेज गायब है, और यह भी कि रविनाथ की मौत के पीछे कोई साजिश भी हो सकती है.
इस बीच, राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार ने स्वतंत्र रूप से मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति बना दी है.
आखिर क्या है ‘विवाद’ की जड़
रविनाथ के शिष्यों का दावा है कि दलित गुरु और चौधरी के बीच वर्षों से ‘टकराव’ चल रहा था.
एफआईआर में यह भी दर्ज है कि चौधरी ने कथित तौर पर कई मौकों पर रविनाथ को गालियां दी थीं और धमकाया भी था, इससे मामला और ज्यादा बिगड़ गया.
क्षेत्र में चौधरी की जमीन का एक हिस्सा, जो कई साल पहले खरीदा गया था, कथित तौर पर आश्रम के ठीक सामने पड़ता है. इस बीच, रविनाथ के शिष्य बताते हैं कि जब रविनाथ पुजारी बने, तो सरकार ने उन्हें अपना निवास बनाने के लिए जमीन आवंटित की थी. लेकिन उनके पास इस पर मालिकाना हक का कोई सबूत नहीं है.
राजस्व विभाग के साथ भूमि रिकॉर्ड के बारे में जानकारी रखने वाले राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इसकी पुष्टि की. सूत्र ने कहा कि हालांकि आश्रम की जमीन सरकार की है, लेकिन जमीन का कोई स्पष्ट सीमांकन नहीं है.
रविनाथ के एक शिष्य जीवराम चौहान ने कहा, ‘इस सड़क पर कई अन्य आश्रमों की तरह, रविनाथजी के पास भी यहां अपनी जमीन थी, लेकिन सौदा कई दशक पहले हुआ था. इसका कोई रिकॉर्ड आश्रम के पास नहीं है. इस सड़क के दोनों ओर सभी आश्रम एक ही तरह से स्थापित किए गए थे.’
रविनाथ के आश्रम से करीब एक किलोमीटर दूरी पर स्थित प्राचीन सुंधा माता मंदिर की ओर जाने वाला पक्का रास्ता इस क्षेत्र में आध्यात्मिक और व्यावसायिक गतिविधियों का केंद्र बन चुका है.
कई संतों ने सड़क के दोनों किनारों पर छोटे-छोटे आश्रम बना रखे हैं, राज्य का पहला रोपवे मंदिर के पास है, और बड़े-बड़े होर्गिंग दर्शाते हैं कि यहां जल्द ही एक वाटर पार्क खोला जाएगा.
चौहान ने कहा, ‘यह क्षेत्र एक पर्यटन स्थल बन चुका है. राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र से लोग मंदिरों और आश्रमों का भ्रमण करने आते हैं.’
रविनाथ के समर्थकों का कहना है कि अचल संपत्ति में आए उछाल के बीच चौधरी यहां एक रिसॉर्ट खोलने की योजना बना रहे थे और रविनाथ का आश्रम इसके रास्ते में आ रहा था.
यद्यपि चौधरी ने मीडिया में दिए एक बयान में कहा है कि वह आश्रम तक जाने के लिए अपनी कुछ जमीन देने को तैयार थे, लेकिन स्थानीय निवासी कुछ अलग ही कहानी बताते हैं.
चौहान ने कहा, ‘रविनाथजी ने चौधरी के साथ विवाद सौहार्दपूर्ण तरीके से सुलझाने की कोशिश की. वो तो केवल आश्रम में प्रवेश का एक रास्ता चाहते थे. उन्होंने कभी पुलिस को फोन नहीं किया क्योंकि उन्हें विधायक ने धमका रखा था और उनके पास जमीन के दस्तावेज नहीं थे.’
यह भी पढ़ें: ‘रोटी थी चिकन नहीं’ अपनी किस्मत पर दुखी मुस्लिम परिवार ने कहा ‘हमें डर लग रहा है’
‘उन्हें लात मारी, जातिसूचक गालियां दीं’
4 अगस्त को मामला और ज्यादा बढ़ गया. रविनाथ के शिष्यों का दावा है कि उन्होंने चौधरी को एक जेसीबी मशीन के साथ आते देखा, जिसने विवादित क्षेत्र को ही खोद डाला, जिससे आश्रम तक पहुंचना असंभव हो गया.
उनका आरोप है, जैसा एफआईआर में भी दर्ज है, कि रविनाथ विधायक के पैरों पर गिर गए और उनसे ऐसा न करने की गुहार लगाई, लेकिन चौधरी ने उन्हें लात मारी और जातिसूचक गालियां दीं.
रविनाथ के शिष्यों ने दावा किया कि उसी शाम, सादे कपड़ों में दो पुलिसकर्मियों, चौधरी के ड्राइवर और बिजनाथ सहित चार लोग फिर आश्रम आए और गुरु को ‘धमकी’ दी.
बिजनाथ, जो खुद भी एक दलित हैं, ने दिप्रिंट से बातचीत में यह पुष्टि तो की कि उन्होंने शाम को विधायक की काली कार और पुलिस की एक कार रविनाथ के घर के बाहर खड़ी देखी थी, लेकिन उन्हें धमकाने के लिए अंदर जाने की बात से इनकार किया.
हालांकि, यहां मिली जानकारी बताती है कि रविनाथ स्पष्ट तौर पर काफी परेशान थे और उनके पांच शिष्य रात भर आश्रम में रहे थे.
ऐसा माना जाता है कि रात में किसी समय ही रविनाथ ने खुदकुशी कर ली, लेकिन आश्रम के कुछ लोगों को इस पर संदेह है, और इसकी वजह वे सीसीटीवी फुटेज ‘लापता’ होने को बताते हैं.
‘रात 11 बजे से सुबह 5 बजे तक की कोई रिकॉर्डिंग नहीं’
आश्रम में आठ सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं, जिनमें से तीन उस रास्ते की तरफ हैं, जिसके बारे में माना जाता है कि पुजारी ने वहीं से गुजरकर आत्महत्या की होगी.
फुटेज देखने वाले शिष्यों के मुताबिक, सुबह 2.51 बजे रविनाथ को आश्रम के पीछे के क्षेत्र में जाते देखा जा सकता है जिधर शौचालय बना हुआ है. यह क्षेत्र दो कैमरों की जद में आता था—एक मुख्य हॉल की तरफ और दूसरा शौचालय के सामने.
रविनाथ के शिष्यों का कहना है कि एक तीसरा कैमरा, जो शौचालय से लेकर आश्रम के सामने तक जहां बरगद का पेड़ लगा है, को कवर करता है, उस पर रात 11 बजे से सुबह 5 बजे तक कोई रिकॉर्डिंग नहीं है. कैमरों का कंट्रोल स्विच रविनाथ के कमरे में ही है.
हालांकि, पुलिस ने इस बात से इनकार किया है कि किसी कैमरे का फुटेज गायब है.
अग्रवाल ने कहा, ‘ऐसा कोई फुटेज नहीं है जो गायब हो. हमने सभी कैमरों से फुटेज रिकॉर्ड कर ली है और सबूतों को सील कर क्राइम ब्रांच को भेज दिया है. आश्रम में 500 से अधिक लोग थे और उन सभी ने फुटेज नहीं देखा है, इसलिए इस तरह की गलत सूचना फैला रहे हैं.’
लेकिन रवीfनाथ के दो शिष्यों ने दिप्रिंट से बातचीत में इस बात पर जोर दिया कि उन्होंने पुलिस के पास मौजूद सभी फुटेज देख लिए थे जब उन्हें रिकवर किया गया था.
उस रात आश्रम में ही रहे एक शिष्य केसराम का दावा है, ‘तीसरे कैमरे में कुछ घंटों की कोई रिकॉर्डिंग नहीं है. मैंने इसे खुद पुलिस के साथ देखा था. यहां तक कि उन्होंने ही मुझे ही इस बारे में बताया.’
अगली सुबह, लगभग 6 बजे, उप-मंडल मजिस्ट्रेट (जसवंतपुरा) राजेंद्र सिंह ने सुबह की सैर के दौरान रविनाथ के शरीर को पेड़ से लटके देखा था और उन्होंने ही पुलिस को सूचित किया. शिष्यों का कहना है कि उन्हें भी तभी उनकी मृत्यु के बारे में पता चला. पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज के अलावा हिंदी में लिखा कथित सुसाइड नोट भी बरामद किया है.
नोट को फोरेंसिक विश्लेषण के लिए भेज दिया गया है और रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है.
यह भी पढ़ें: देश के ‘हीरो साहब’ हैं UP के पुलिस अधिकारी, भोजपुरी के बाद तेलुगू फिल्म इंडस्ट्री को भी उनकी तलाश
क्या है ‘आरोपी’ का दावा
तीन दशक या उससे अधिक समय में संत रविनाथ ने इस क्षेत्र में अच्छी-खासी संख्या में अपने अनुयायी बना लिए थे. भक्तों से मिलने वाले धन से, उन्होंने एक मंजिला आश्रम और उसके बगल में दो मंदिरों का निर्माण किया, लेकिन उनके अनुयायियों का दावा है कि पुरराम चौधरी से उनका कोई मुकाबला नहीं था, जिन्होंने छह विधानसभा चुनावों में जालोर जिले के भीनमाल निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और चार बार जीत हासिल की. मौजूदा विधायक के तौर पर यह उनका लगातार तीसरा कार्यकाल है.
हालांकि, जहां तक विधायकों की बात है तो उन्होंने अपेक्षाकृत लो-प्रोफाइल बनाए रखा है.
भीनमाल के एक राजनेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘उन्होंने कभी पार्टी से मंत्री पद की मांग नहीं की और न ही उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र के लिए बतौर विधायक किसी विकास कार्य की मांग की. उन्हें हर बार पार्टी टिकट मिलता रहा है क्योंकि उनके पास कलबी (ओबीसी) का ठोस वोटबैंक है. उनकी पार्टी के लिए यह एक सुरक्षित सीट है.’
राजनेता ने यह आरोप लगाया कि विधायक को पीने की आदत है, जिसकी पुष्टि आश्रम के निवासियों ने भी की है.
वहीं, चौधरी ने अपनी ओर से किसी तरह के गलत कार्यों में लिप्त होने से इनकार किया है.
8 अगस्त को शाम करीब 7 बजे विधायक ने अपने फेसबुक पेज पर पांच मिनट का एक वीडियो अपलोड किया, जिसमें वह रविनाथ की मौत के विवाद के बारे में स्थानीय पत्रकारों के सवालों का जवाब दे रहे हैं.
उन्होंने दावा किया, ‘ये सिर्फ आरोप हैं. अभी कुछ भी साबित नहीं हुआ है. मुझे नहीं पता कि संत साक्षर थे या नहीं. मुझे नहीं पता कि किसने (कथित सुसाइड नोट में) नाम लिखे. सब कुछ जांच के बाद ही साफ होगा. संत ने आश्रम के लिए रास्ता मांगा और मैंने जमीन का एक हिस्सा छोड़ दिया. जमीन कानूनी तौर पर मेरी है, फिर भी मैंने इंसानियत के नाते उन्हें दे दी थी.’
हालांकि तीस मिनट बाद ही जब दिप्रिंट की टीम उनके घर पहुंची, तो चौधरी के सहयोगियों ने बताया कि वह अपने ड्राइवर—जो कि प्राथमिकी में सह-आरोपी है—के साथ गांव छोड़कर जा चुके हैं.
एफआईआर में नामित तीसरे व्यक्ति संत बिजनाथ हैं, जो रविनाथ के शिष्यों के मुताबिक, चौधरी की आंख-कान बनकर काम करते थे.
मालवाड़ा गांव के एक भक्त भरत कुमार ने आरोप लगाया, ‘जब भी हम किसी छोटे-मोटे समारोह के लिए विधायक के स्थान का इस्तेमाल करते थे, बिजनाथ तुरंत उन्हें बुला लेते थे. उन्हें हमारे महाराजजी की सफलता और लोकप्रियता से जलन होती थी. उनके आश्रम में बहुत कम लोग आते थे.’
5 अगस्त की शाम जब रविनाथ के शव को पेड़ से नीचे उतारा गया तो पुलिस ने बिजनाथ को गिरफ्तार कर दो रातों तक दो अलग-अलग जेलों में रखा.
बिजनाथ के बेटे गणेश राम ने बताया, ‘हमने एक वकील से संपर्क साधा और फिर उनकी तलाश करते रहे और आखिरकार 7 अगस्त को हमने उन्हें जसवंतपुरा थाने में पाया.’ उन्हें उसी दिन जमानत पर रिहा कर दिया गया.
बिजनाथ के वकील ईश्वर सिंह देवड़ा ने कहा कि उनके मुवक्किल को भारतीय दंड संहिता की धारा 151 के तहत जेल में रखा गया था, जो शांति व्यवस्था भंग करने वाले लोगों को हिरासत में लेने के लिए है, न कि आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए जैसा प्राथमिकी में उल्लेख है.
बिजनाथ ने इस मामले में अपनी किसी भूमिका से साफ इनकार किया है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘रविनाथ और मैं एक ही गुरु के शिष्य हैं, इसलिए वह मेरे गुरु भाई की तरह थे, लेकिन हम बातचीत नहीं करते थे. मैंने विधायक के साथ मिलकर उनके खिलाफ कोई साजिश नहीं की है.’
समाधि बनाई गई
आश्रम परिसर में ही रविनाथ की अस्थायी समाधि उनकी पत्नी चंद्रनाथ की समाधि के बगल में स्थापित की गई है, जो उनके साथ ही साध्वी बन गई थीं और 2020 में उनकी मृत्यु हो गई. एक संत के तौर पर रविनाथ की युवावस्था की एक स्टूडियो फोटो समाधि के ऊपर लगाई गई है.
सोमवार शाम तक आश्रम में भीड़ कुछ कम हो गई थी. पुलिस ने लोगों को यह आश्वस्त कर घर भेज दिया कि गिरफ्तारी तभी हो पाएगी जब जांच में अपराध साबित हो और इस प्रक्रिया में महीनों का समय लग सकता है.
रविनाथ के कमरे में उनके कुत्ते चेतन और लीखा फर्श पर लेटे हैं. केसराम ने कहा, ‘उन्होंने गुरु की मृत्यु के बाद से कुछ नहीं खाया है. जब हम चेतन को छोड़ते हैं तो वह उसी रास्ते की ओर भागता है, जिस रास्ते पर महाराजजी ने आखिरी बार देखा गया था.’
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: मुंडका अग्निकांड में किसे मुआवजा मिलेगा, किसे नहीं : ‘प्रूफ राज’ से लड़ रहे हैं पीड़ितों के परिवार