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Friday, 22 November, 2024
होमएजुकेशनमजदूरी से लेकर शैक्षणिक अराजकता तक और फिर CUET के जरिए JNU पहुंचने वाले बिहार के एक छात्र का सफर

मजदूरी से लेकर शैक्षणिक अराजकता तक और फिर CUET के जरिए JNU पहुंचने वाले बिहार के एक छात्र का सफर

22 साल के आदर्श कुमार की तरह बिहार के मगध यूनिवर्सिटी के सैकड़ों छात्र पांच साल बाद भी बिना डिग्री के घूम रहे हैं. कुमार ने अब दिल्ली में जेएनयू में पढ़ने के लिए सीयूईटी का रास्ता अपनाया है.

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नई दिल्ली: थोड़ी सी घबराहट और बहुत सारी खुशी के साथ 22 साल के आदर्श कुमार अपना बैग पैक करने में लगे हैं. फिलहाल तो वह बिहार से दिल्ली के अपने नए सफर के लिए पूरी तरह से तैयार हैं.

उन्होंने इस साल कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (सीयूईटी) दिया और वह पास हो गए. अगले महीने से दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में स्नातक के रूप में उनकी क्लासेज शुरू हो जाएंगी.

लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि कुमार ने अपने बाकी सहपाठियों की तरह हाल-फिलहाल में हाई स्कूल पास नहीं किया है. वह बिहार की आरोपों में घिरी संकटग्रस्त मगध यूनिवर्सिटी में गणित के स्नातक छात्र के रूप में लगभग पांच साल पढ़ाई करने में बिता चुके हैं.

लेकिन लगभग आधे दशक तक कॉलेज के साथ जुड़े होने पर भी कुमार और उनके बैचमेट को डिग्री नहीं मिल पाई. इसकी वजह? 30 करोड़ रुपये की वित्तीय धोखाधड़ी के आरोप में कुलपति (वीसी), प्रो वाइस चांसलर, रजिस्ट्रार और अन्य शीर्ष अधिकारियों को गिरफ्तार किए जाने के बाद विश्वविद्यालय व्यावहारिक रूप से बंद पड़ा है.

अभी और कुछ भी है जो बिहार में अराजकता की बड़ी तस्वीर पेश करने के लिए काफी होगा. कुमार ने इन सालों में कभी भी स्टेट यूनिवर्सिटी की एक भी क्लास में भाग नहीं लिया था. राज्य में ज्यादातर छात्र ‘पढ़ने’ के लिए प्राइवेट कोचिंग क्लासेस या सेल्फ-स्टडी पर भरोसा करते हैं. यूनिवर्सिटी तो सिर्फ एग्जाम देने और डिग्री पाने का एक जरिया भर है.

मगध विश्वविद्यालय के सैकड़ों पूर्व छात्र बिना डिग्री और वैकल्पिक विकल्पों की तलाश में कुमार की तरह काफी समय से भटक रहे हैं. मैथ से लेकर जापानी स्टडीज तक के अपने इस सफर में 22 साल के कुमार भी कुछ करने की तलाश में अपने आपको यहां से वहां भटकाते रहे थे.

मगर उन्होंने अपनी उम्मीदों को टूटने नहीं दिया. भोजपुर से दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘मैं 21 नवंबर के बाद फिर से दिल्ली आ जाऊंगा. 2018 से मैं दिल्ली में रहकर दिहाड़ी मजदूरी कर रहा था. लेकिन अब मैं दिल्ली, एक प्रतिष्ठित केंद्रीय विश्वविद्यालय का छात्र बनकर आ रहा हूं. मुझे लगता है कि मैं अपने सपने के एक कदम और करीब हूं.’

कुमार उन लाखों लोगों में शामिल थे, जो इस साल अगस्त में सीयूईटी में शामिल हुए थे. उन्होंने प्रवेश परीक्षा पास की और जेएनयू में स्नातक की डिग्री के लिए एडमिशन मिल गया.

भोजपुर में एक किसान परिवार- जो महीने में मुश्किल से 10,000 रुपये कमा पाता है- से ताल्लुक रखने वाला कुमार जेएनयू में जापानी लेंग्वेज कोर्स का ही खर्च उठा पाने में सक्षम हैं.


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‘कॉलेज और कोचिंग का दोहरा खर्च उठाते गरीब छात्र’

कुमार ने 2018 में गणित में बी.एस.सी करने के लिए मगध यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया था. उन्होंने जनवरी 2020 में अपनी पहले साल की परीक्षा दी थी. सेकेंड ईयर का एग्जाम उन्होंने अक्टूबर 2021 में दिया था. और फिर अगले साल तीसरे साल के लिए परीक्षा दी. लेकिन परिणाम सिर्फ 2020 की परीक्षा के घोषित किए गए हैं.

स्टेट यूनिवर्सिटी में चार साल से ज्यादा समय बिताने के बाद भी कुमार जैसे सैकड़ों छात्रों के पास अभी भी स्नातक की डिग्री नहीं है.

महीनों के सड़क विरोध, पुलिस द्वारा पीटे जाने और कई अन्य बाधाओं के बाद, भोजपुर के रहने वाले आनंद के लिए बेहतरीन शिक्षा पाने की यात्रा आखिरकार शुरू हो ही गई.

कुमार ने कहा, ‘हमने पिछले कुछ साल या तो विरोध करने या फिर विरोध की योजना बनाने में बिताए. कुछ दिनों में स्नातक की डिग्री एक कभी पूरा न होने वाले सपने की तरह लगने लगी थी. छात्रों के रूप में हमने अपनी सारी उम्मीदें खो दीं थीं. हम में से बहुत से बच्चे सिविल सेवा परीक्षा के लिए उपस्थित होना चाहते थे. लेकिन जब डिग्री ही हाथ में नहीं होगी तो हम कैसे इसका हिस्सा बन पाएंगे.’

कुमार ने तीन बार इंडियन एयरफोर्स की परीक्षा और एक बार अग्निवीर भर्ती परीक्षा दी है. उन्होंने बताया, ‘लिखित परीक्षा में मैं हमेशा पास हो जाता, लेकिन अंग्रेजी भाषा पर मेरी खराब पकड़ के चलते इंटरव्यू और ग्रुप डिस्कशन में पीछे रह जाता हूं. स्नातक की डिग्री न होना भी मेरे चयन में एक बड़ी बाधा थी.’

उन्होंने यह भी बताया कि उनकी महिला सहपाठियों ने शादी कर ली क्योंकि उनके परिवार कोर्स पूरा करने के लिए और इंतजार नहीं कर सकते थे. कुमार कहते हैं, ‘मेरे कुछ सीनियर अब शादी-शुदा हैं और उनके बच्चे भी हैं! हमने रोजाना घंटों तक सेल्फ स्टडी की लेकिन सिवाय निराशा के, कुछ हाथ नहीं आया.’

सूत्रों की मानें तो मगध यूनिवर्सिटी बिहार की शिक्षा की दयनीय हालत का प्रतीक है.

प्रोफेसर सुबोध कुमार दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं और विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय प्रवक्ता के रूप में भी काम करते हैं. उन्होंने कहा, ‘बिहार में लगभग 262 कांस्टीट्यूएंट कॉलेज हैं, जिनमें से प्रत्येक में 10 से 12 विभाग होंगे. प्रत्येक कॉलेज में नामांकित छात्रों की औसत संख्या 5,000 से 10,000 के बीच कहीं भी हो सकती है. इसका मतलब है कि इन कॉलेजों के साथ लगभग 30 लाख छात्र जुड़े हैं और उन्हें पढ़ाने के लिए 3 लाख शिक्षकों का होना जरूरी है. लेकिन बिहार सरकार ने शिक्षण के 12,500 पद स्वीकृत किए हैं, जिनमें से सिर्फ 5,500 सीटें ही भरी गई हैं.’

उन्होंने कहा, ‘बाकी के पद सालों से खाली पड़े हैं. इन रिक्तियों के अलावा, नॉन-टीचिंग और एग्जामिनेशन विभाग में भी कर्मचारियों की कमी है. राज्य में कक्षाएं नहीं लगना एक बहुत ही सामान्य घटना है.’

प्रोफेसर ने कहा, ‘छात्रों के पास अपनी कॉलेज शिक्षा के लिए निजी कोचिंग क्लासेज में जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है. गरीब छात्र कॉलेजों और कोचिंग कक्षाओं दोनों का खर्च उठा रहे हैं. और इतना सब करने के बाद भी वह खाली हाथ हैं, उन्हें पांच साल बाद भी डिग्री नहीं मिलती है.’


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पहली पसंद नहीं थी जेएनयू

कुमार दिल्ली यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता की पढ़ाई करना चाहते थे. उन्होंने कहा कि वह अपनी तरह गरीबों और हाशिए पर पड़े लोगों की आवाज बनना चाहते थे.

कुमार बताते हैं, ‘हम विरोध करते रहे लेकिन राज्य या केंद्र में किसी ने भी हमारी दुर्दशा पर ध्यान नहीं दिया. हम यूक्रेन जाने वालों की तरह अमीर नहीं हैं या आईआईटी में जगह पाने वाले छात्रों की तरह खास सुविधा पाने वाले नहीं है. बिहार की प्रतिष्ठा खराब है और सरकार का इनके प्रति रवैया इन्हें और खराब बना रहा है.’

वह अपने पसंदीदा कोर्स की फीस का बोझ नहीं उठा सकता था. जब उन्हें पता चला कि जेएनयू में फीस नाममात्र की है तो उन्होंने इस तरफ पर जाने के लिए अपने कदम बढ़ा लिए. उन्होंने मजाक में कहा, ‘मैंने राजनेताओं को जेएनयू के छात्रों की आलोचना करते हुए सुना था कि उन्हें ‘मुफ्त का खाना और मुफ्त का रहना’ मिलता है.’

कुमार ने अपने फोन के बिल भरने के लिए 10वीं के छात्रों को ट्यूशन भी दिया है.

लेकिन उस सीयूईटी ने उनकी दुनिया की तरफ जाने वाले रास्ते फिर से खोल दिए, जिसे शिक्षाविदों ने ‘एक स्तर का खेल का मैदान’ बताया था. इस परीक्षा ने कुमार के 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में 60 प्रतिशत को जेएनयू में एक अवसर में बदल दिया. वह हाई कट-ऑफ के कारण पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी में एडमिशन नहीं ले पाया था.’

उन्होंने कहा, ‘जब मुझे सीयूईटी के बारे में पता चला, तो मुझे एहसास हुआ कि मैं दिल्ली में केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए आवेदन कर सकता हूं. मैं 2018 में एक प्रतियोगी परीक्षा में बैठने के लिए राष्ट्रीय राजधानी आया था. लेकिन यहां आकर दिहाड़ी पर एक कपड़ा कारखाने में काम करने लगा. इस बार मुझे पता था कि मेरे पास एक वास्तविक मौका है.’


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मगध की समस्या

बोधगया में तत्कालीन शिक्षा मंत्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा द्वारा 1962 में स्थापित की गई मगध यूनिवर्सिटी बिहार का एक बड़ा शिक्षा संस्थान है. यहां से पढ़कर निकले छात्र, आज कई बड़े नामों की गिनती में शुमार हैं. मौजूदा कैबिनेट मंत्रियों गिरिराज सिंह और आर.के. सिंह के अलावा लोकप्रिय अभिनेता पंकज त्रिपाठी भी यहीं से निकले हैं.

मगध यूनिवर्सिटी में वर्तमान में चार प्रमुख पदों पर- वीसी, प्रो वीसी, रजिस्ट्रार और वित्त अधिकारी- अतिरिक्त प्रभार वाले अधिकारी हैं. मौजूदा वीसी राजेंद्र प्रसाद ने भी कथित वित्तीय अनियमितताओं के एक मामले में 2021 में उनके कार्यालय और गोरखपुर आवास पर सतर्कता छापे के बाद, अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.

यूनिवर्सिटी में एक साल से अधिक समय से परीक्षाएं नहीं हुई हैं. छात्रों का कहना है कि उन्हें 2021 की परीक्षा के लिए फिर से उपस्थित होना होगा. नाम न बताने की शर्त पर एक छात्र ने कहा, ‘तत्कालीन वीसी ने जिस एग्जामिनेशन कॉन्ट्रेक्टर को काम पर रखा था, उनकी उसके साथ मिलीभगत थी. गिरफ्तार होने के बाद जब उन्हें भुगतान नहीं मिला, तो उन्होंने सभी छात्रों के डेटा गायब कर दिए.

(अनुवाद:संघप्रिया मौर्य | संपादन: कृष्ण मुरारी)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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