नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी (आप) ने ‘मुफ्त उपहारों’ (फ्रीबीज) वाले मुद्दे पर गौर करने के लिए गठित विशेषज्ञ समिति के लिए प्रस्तावित टर्म्स ऑफ़ रेफरेन्सेस (कार्यक्षेत्र संबंधी शर्तों) के बारे में अपने सुझावों को पेश करते हुए माननीय सुप्रीम कोर्ट से कहा कि किसी अनिर्वाचित उम्मीदवार का भाषण भविष्य की किसी सरकार की बजटीय योजनाओं के बारे में उसकी मंशा का आधिकारिक बयान नहीं हो सकता है,
आप ने मंगलवार को दायर अपने ताजा लिखित प्रतिवेदन, जिसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास भी है, में कहा है कि किसी चुनावी भाषण के दौरान किए गए वादे नागरिक कल्याण के विभिन्न मुद्दों पर किसी उम्मीदवार या किसी पार्टी की व्यापक वैचारिक रुख के बारे में होते हैं जो आम नागरिकों को मतदान के लिए सुचना आधारित निर्णय लेने की सहूलियत देते हैं.
आप, जिसने आधिकारिक तौर पर सुप्रीम कोर्ट में तथाकथित ‘मुफ्त उपहारों’ का बचाव किया है, ने निवेदित किया है कि एक बार निर्वाचित सरकार के गठन के बाद, वह तय कर सकती है कि चुनाव के दौरान प्रस्तावित विभिन्न योजनाओं को किस तरह से संशोधित, स्वीकार, अस्वीकार या प्रतिस्थापित करना है या अथवा नहीं.
इसने कहा कि ये संशोधन मतदाताओं और सरकार के बजट की जरूरतों को पूरा करने के लिए किया जाते हैं और मतदाताओं और विशेषज्ञों से प्राप्त प्रतिक्रिया को शामिल करने के बाद ही किये जाते हैं.
बता दें कि भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना की अध्यक्षता वाली खंडपीठ अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कर रही है, जिसमें उन्होंने इन ‘मुफ्त उपहारों’ पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है.
इस मामले की पिछली सुनवाई में, अदालत ने ‘मुफ्त उपहार’ देने वाले राजनीतिक दलों की मान्यता रद्द करने के विचार पर गौर करने से इनकार कर दिया था. हालांकि, इसने कहा था कि ये ‘मुफ्त उपहार’ सरकारों द्वारा शुरू की गई कल्याणकारी योजनाओं से अलग हैं.
मामले में अगली सुनवाई 17 अगस्त को होगी.
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‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन’
इस जनहित याचिका के समर्थन में खड़े होते हुए केंद्र सरकार ने इन ‘मुफ्त उपहारों’ के खिलाफ दिशानिर्देशों की सिफारिश करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति बनाने के अदालत के प्रस्ताव पर सहमति व्यक्त की है.
प्रस्तावित समिति के संबंध में व्यापक परामर्श प्रक्रिया की शुरुआत करते हुए, पीठ ने याचिकाकर्ता (उपाध्याय), केंद्र सरकार और आप से इस समिति के लिए प्रस्तावित टर्म्स ऑफ़ रेफरेन्सेस पर अपने सुझाव देने को कहा था.
आप पहले ही उपाध्याय की जनहित याचिका के विरोध में एक अर्जी दाखिल कर चुकी है.
इसमें कहा गया है कि मुफ्त पानी, बिजली या सार्वजनिक परिवहन जैसे चुनावी वादे ‘मुफ्त उपहार’ नहीं हैं, बल्कि एक और अधिक न्यायसंगत समाज बनाने के प्रति राज्य की संवैधानिक जिम्मेदारी का निर्वहन करने के उदाहरण हैं.
विशेषज्ञ समिति के लिए प्रस्तावित टर्म्स ऑफ़ रेफरेन्सेस के संबंध में, अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली पार्टी ने कहा कि इस पैनल को वास्तविक वित्तीय खर्च को नियंत्रित करने के उपाय सुझाने का काम सौंपा जाना चाहिए, न कि चुनावी भाषणों को विनियमित करने का.
इसने कहा कि कार्यपालिका या न्यायपालिका द्वारा चुनावी भाषण लगाया गया पर कोई भी प्रतिबंध ‘असंवैधानिक’ होगा और ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन’ भी होगा. साथ ही उसका कहना था कि इस तरह का कोई भो अंकुश संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत उन अपवादों द्वारा संरक्षित नहीं है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ‘उचित प्रतिबंध’ लागए जाने की अनुमति देता है.
इसने आगे यह भी कहा कि अगर राजकोषीय घाटे और वित्तय जिम्मेदारी पर चिंता ही वास्तव में कार्यवाही का बिंदु है, तो चुनावी भाषण को निशाना बनाना और इसे विनियमित करना‘ बिना मतलब की भाग दौड़‘ से ज्यादा कुछ नहीं होगा. ऐसा इसलिए है क्योंकि चुनावी वादे ‘वास्तविक वित्तीय व्यय को विनियमित करने की परोक्ष वजह के रूप में’ पूरी तरह से अनुपयुक्त हैं.
पार्टी ने कहा कि राजकोषीय घाटे के मुद्दों को हल करने के लिए चुनावी भाषण को निशाना बनाना ‘चुनावों की लोकतांत्रिक गुणवत्ता’ को नुकसान पहुंचाएगा, क्योंकि यह पार्टियों को जन कल्याण से सम्बन्धित अपने वैचारिक रुख को लोगों तक पहुंचाने से रोकेगा. इसका कहना था है कि इससे राजकोषीय जवाबदेही हासिल करने की दिशा में भी कोई प्रगति नहीं होगी
आप ने कहा, राजकोषीय जिम्मेदारी के हित में इस पैनल को सरकारी खजाने से धन के ‘वास्तविक व्यय’ के बिंदु पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जिसका मतलब है पहले से चुनी गई सरकारों की बजटीय कार्यवाही और उनकी वित्तीय नियोजन की प्रक्रियाएं.
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