नई दिल्ली: केंद्रीय बलों में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की नियुक्तियों में एक अलग ही विरोधाभास देखने को मिल रहा है. जहां कुछ अधिकारी एक से ज्यादा हाई-प्रोफाइल पदों पर बने हुए हैं, तो वहीं कुछ अधिकारियों को एक पोस्टिंग तक के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है. इस तरह की प्रवृत्ति का एक प्रमुख उदाहरण भारतीय पुलिस सेवा (IPS) अधिकारी सुजॉय एल. थाउसेन है. पिछले आठ महीनों के भीतर उन्हें सीमा-सुरक्षा बलों के कम से कम तीन अहम पदों के साथ-साथ केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के प्रमुख का कार्यभार भी सौंपा गया है.
मौजूदा समय में थाउसेन सरकार के सबसे बड़े अर्धसैनिक बल सीआरपीएफ के महानिदेशक (डीजी) के रूप में कार्यरत हैं और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) को संभालने का अतिरिक्त प्रभार भी संभाल रहे हैं. बीएसएफ बांग्लादेश और पाकिस्तान के साथ भारत की 7,000 किमी से ज्यादा लंबी सीमाओं की रक्षा करता है.
मध्य प्रदेश कैडर के 1998 बैच के इस अधिकारी के पास पहले से ही कई बड़े पदों की जिम्मेदारी भी है. पिछले साल जून में थाउसेन को सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) के महानिदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था, जो नेपाल और भूटान के साथ भारत की सीमाओं की रक्षा करता है और अगस्त में उन्हें भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) का अतिरिक्त प्रभार दिया गया था. अक्टूबर में उन्होंने सीआरपीएफ प्रमुख के रूप में पदभार संभाला और दिसंबर में उन्हें बीएसएफ के महानिदेशक के रूप में अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया.
दिप्रिंट से बात करते हुए थाउसेन ने कहा कि उनके दोनों मौजूदा पोस्ट पर उनकी अच्छी पकड़ है.
उन्होंने कहा, ‘मैं अब दोनों बलों को जानता हूं, क्योंकि मैंने पहले बीएसएफ में विशेष महानिदेशक के पद पर काम किया हुआ है. दोनों सेनाएं देश की सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं. एक सीमा की सुरक्षा करने वाला बल है. तो वहीं सीआरपीएफ देश में लगभग हर काम करती है. चुनावों के प्रबंधन से लेकर उग्रवाद विरोधी अभियानों तक और जरूरत पड़ने पर कानून व्यवस्था प्रबंधन तक, सभी कामों की जिम्मेदारी सीआरपीएफ पर होती है.’
दिप्रिंट द्वारा एक्सेस किए गए गृह मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि जहां एक तरफ थाउसेन जैसे डीजी रैंक के कुछ अधिकारियों के पास एक से अधिक प्रभार हैं, तो वहीं कुछ अन्य पूरी तरह से योग्य होने के बावजूद अभी भी पोस्टिंग का इंतजार कर रहे हैं.
दिप्रिंट ने कई वरिष्ठ सेवानिवृत्त और सेवारत आईपीएस अधिकारियों से बात की थी. उन सभी ने इस असंतुलन को दूर किए जाने की बात कही.
सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी प्रकाश सिंह को पुलिस सुधार लाने में उनके योगदान के लिए जाना जाता है. उन्होंने संकेत दिया कि यह स्थिति किसी के लिए भी फायदा नहीं रहती है.
उन्होंने कहा, ‘इस तरह के अतिरिक्त प्रभार रखने वाला अधिकारी, स्पष्ट रूप से अधिक काम के दबाव में रहता है. तो वहीं उनके साथी और सहकर्मी, जो सूचीबद्ध हैं या प्रस्ताव सूची में हैं, वे अपने आपको डिमोटिवेट महसूस करते हैं. ऐसे कई अधिकारी हैं जिन्हें सूचीबद्ध किया गया था, लेकिन उन्हें अभी तक पोस्टिंग नहीं मिली है.’
‘प्रमुख के तौर पर ज्यादा मेहनत की जरूरत’
दिप्रिंट ने असम, हाफलोंग के रहने वाले थाउसेन के बारे में उनके कई साथियों और सहकर्मियों से बात की. उन सभी ने उन्हें एक ‘सक्षम’ और कुशल अधिकारी बताया.
थाउसेन एक बेहतरीन खिलाड़ी है. उन्होंने राष्ट्रीय पुलिस अकादमी में प्रशिक्षण के दौरान बाहरी गतिविधियों में अपनी उपलब्धियों के लिए एक पुरस्कार भी जीता है. वह एक स्कोलर भी हैं. उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) से पोस्ट ग्रेजुएशन किया है और फिर 2006 में मध्य प्रदेश के उज्जैन विश्वविद्यालय से मानवाधिकारों और पुलिस गतिविधियों के संरक्षण पर अपनी पीएचडी पूरी की.
इन सालों में अधिकारी ने राज्य और केंद्रीय स्तरों पर कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है. उन्होंने एलीट स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (SPG) में डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल (DIG) और IG के रूप में कार्य किया था. एसपीजी 2004 से 2013 के बीच, जब संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार सत्ता में थी, प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार थी. 2020 में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर वापस लाए जाने तक वह अपने कैडर में वापस आ गए.
एक समय में दो केंद्रीय बलों का नेतृत्व करने की चुनौतियों के बारे में पूछे जाने पर थाउसेन ने कहा, ‘दोनों बलों की अलग-अलग जरूरतें हैं. इसलिए प्रमुख के रूप में दोनों के साथ न्याय करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है. और मैं वही कर रहा हूं.’
सीआरपीएफ और बीएसएफ दोनों बड़े बल हैं. इन बलों की आधिकारिक वेबसाइटों के अनुसार, सीआरपीएफ के पास 246 बटालियन हैं, जबकि बीएसएफ के पास 192 हैं. दोनों बल सीमाओं और राज्यों में फैले हुए हैं. डीजी सहित वरिष्ठ अधिकारियों को सीमाओं पर बटालियन मुख्यालय पर भी जाना होता है.
एक सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी, जिन्होंने बीएसएफ के डीजी के रूप में भी काम किया था, ने स्थिति को अत्यधिक ‘अवांछनीय’ बताया.
पूर्व डीजी ने कहा, ‘एक अधिकारी के लिए बीएसएफ और सीआरपीएफ के बल मुख्यालयों के बीच घूमते रहना या ऐसे बलों के बटालियन मुख्यालयों का दौरा करना मानवीय रूप से असंभव है.’ वह आगे कहते हैं, ‘विभिन्न बलों और एजेंसियों के लिए अलग-अलग जनादेश हैं. एक अधिकारी सब कुछ कैसे मैनेज कर सकता है, जबकि सरकार के पास पर्याप्त संख्या में अधिकारी कतार में प्रतीक्षा कर रहे हैं?’
यह भी पढ़ें: ‘6,500 किलो लेकर 750 किमी पार’- Indian Army ने LAC पर सेवा देने के लिए खच्चर को पुरस्कृत किया
किसी के लिए कई पोस्ट, तो किसी के लिए एक भी नहीं
थाउसेन अकेले ऐसे आईपीएस अधिकारी नहीं हैं जिन्हें एक समय में एक से अधिक प्रभार सौंपे गए हैं.
उदाहरण के लिए, हरियाणा कैडर के 1984-बैच के अधिकारी सुरजीत सिंह देसवाल ने दो अलग-अलग सालों के दौरान पांच केंद्रीय बलों के महानिदेशक के रूप में कार्य किया है.
उन्हें 2018 में ITBP के महानिदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था और अतिरिक्त प्रभार के रूप में SSB का नेतृत्व भी किया था. 2020 में उन्हें और अतिरिक्त प्रभार सौंपे गए- जनवरी में सीआरपीएफ के डीजी बनाया गया तो मार्च में बीएसएफ के डीजी का पद भी उन्हें मिल गया और फिर सितंबर में आतंकवाद विरोधी बल राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) के डीजी के रूप में उनकी तैनाती हुई.
मई 2021 में, पश्चिम बंगाल कैडर के 1986 बैच के आईपीएस अधिकारी, तत्कालीन सीआरपीएफ प्रमुख कुलदीप सिंह को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) का अतिरिक्त प्रभार भी दिया गया था. यह एजेंसी आतंकवाद से जुड़े अपराधों की जांच करती है.
अगर कुछ अधिकारियों पर पदों की बारिश हो रही है, तो समान वरिष्ठता और रैंक के अन्य अधिकारियों को रिक्तियों के बावजूद सूखे का सामना करना पड़ रहा है.
गृह मंत्रालय की प्रस्ताव सूची में उन अधिकारियों के नाम दर्ज हैं जिन्हें उनके संबंधित राज्य कैडर ने केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर सेवा देने के लिए जारी किया हुआ है, लेकिन वे पोस्टिंग का इंतजार कर रहे हैं.
5 जनवरी की ऑफर लिस्ट में तीन डीजी-रैंक के अधिकारियों के नाम शामिल थे, जो अभी भी नियुक्ति की प्रतीक्षा कर रहे हैं – वी.के. पंजाब कैडर के 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी वी.के. भावरा, 1988-बैच एमपी कैडर के अधिकारी अरविंद कुमार और 1989 बैच के हरियाणा कैडर के अधिकारी संजय कुंडू.
इसी तरह डीजी के रूप में पहले से ही पैनल में शामिल कई अधिकारियों को भी लंबा इंतजार करना पड़ता है. और कई बार तो उनका ये इंतजार उनकी रिटायरमेंट पर जाकर ही खत्म होता है. दिप्रिंट ने पिछले साल मई में बताया था कि 28 अधिकारियों को डीजी रैंक के पदों के लिए सूचीबद्ध किया गया है. इनमें से 24 अधिकारी 1988 के बैच के थे. इनमें से ज्यादातर अभी भी सूचीबद्ध बने हुए है.
इनमें से कई को अभी तक कोई पद नहीं मिला है, जबकि अन्य सेवारत महानिदेशकों को अतिरिक्त प्रभार सौंप दिया गया.
पूर्व बीएसएफ डीजी ने कहा, ‘हालात कुछ ऐसे हैं कि बीएसएफ, आईटीबीपी और एनडीआरएफ (राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल) के महानिदेशक के पद खाली हैं. ऐसे कई अधिकारी हैं जिन्हें ऐसे बलों के प्रमुख के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, लेकिन वे प्रतीक्षा कर रहे हैं. यह न सिर्फ अधिकारियों के साथ अन्याय है बल्कि बल के साथ भी अन्याय है.’
एक अन्य वरिष्ठ सेवारत आईपीएस अधिकारी ने कहा कि एक अतिरिक्त प्रभार रखना एक ‘कार्यवाहक’ के रूप में कार्य करने जैसा है.
आईपीएस अधिकारी ने कहा, ‘किसी बल या एजेंसी या संगठन का अतिरिक्त प्रभार रखने वाला अधिकारी कोई बड़ा निर्णय नहीं ले सकता है या ग्राउंड-शिफ्टिंग नीति तय नहीं कर सकता है. वह एक केयरटेकर की तरह काम करता है. ऐसी महत्वपूर्ण बल या एजेंसियां बिना मुखिया के क्यों चलती हैं? अधिकारियों की कोई कमी नहीं है.’
उन्होंने कहा, ‘एक अधिकारी को कई प्रभार सौंपना एक आदर्श स्थिति नहीं है और यह अधिकारी के बाकी सभी पदों के साथ अन्याय है.’
खराब योजना या ‘सही’ अधिकारी का इंतजार?
प्रकाश सिंह के अनुसार, अधिकारियों को अतिरिक्त प्रभार देने की प्रथा अनुचित योजना को दर्शाती है.
सिंह ने कहा, ‘यह एक सही स्थिति नहीं है. न तो उस अधिकारी के लिए जो कई प्रभार संभाले हुए है, और न ही बलों और अन्य अधिकारियों के लिए. सरकार जानती है कि कौन कब रिटायर हो रहा है. उन्हें उत्तराधिकार की योजना ठीक से बनानी चाहिए.’
आगे का रास्ता सुझाते हुए बीएसजी के पूर्व डीजी ने कहा कि सरकार के पास इस बारे में डेटा रहता है कि अधिकारियों का कार्यकाल कब खत्म होगा और साथ ही उनकी रिटायरमेंट की तारीख भी. वह कहते हैं, ‘अन्य सभी महत्वपूर्ण मंत्रालयों और सेना की तरह महत्वपूर्ण बलों या एजेंसियों के महानिदेशकों के रिटायरमेंट से एक महीने पहले उस पद पर अगले अधिकारी की तैनाती की घोषणा कर दी जानी चाहिए.’
उन्होंने कहा, ‘अधिकारियों को ओएसडी (ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी) के रूप में तैनात किया जा सकता है, जैसा कि मंत्रालयों के मामले में किया जा रहा है. ऐसा करने से अधिकारियों को बल के बारे में व्यावहारिक ज्ञान भी मिल जाता है.’
बीएसएफ के पूर्व प्रमुख ने कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि बलों और एजेंसियों के प्रमुखों की नियुक्ति को लेकर ‘इतनी अनिच्छा’ क्यों है.
उन्होंने अनुमान लगाते हुए कहा, ‘ हम आम तौर पर सुनते आए हैं कि सरकार सही अधिकारी की प्रतीक्षा करती है.’
(अनुवाद: संघप्रिया मौर्या | संपादन: ऋषभ राज)
(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: चीन जैसे संकट में फंस जाएगा भारत, आत्मघाती हो सकती है जनसंख्या नियंत्रण में सख्ती