नई दिल्ली: दिल्ली पुलिस की हेड कांस्टेबल सीमा ढाका जिन्हें हाल ही में 76 लापता बच्चों को ढूंढने के लिए सराहा जा रहा है, याद करके बताती हैं कि उनके लिए हर ऑपरेशन अपने आप में एक चुनौती थी.
समयपुर बदली थाने में तैनात सीमा ढाका ने दिप्रिंट को बताया, ‘सबसे चुनौतीपूर्ण ऑपरेशन था पश्चिम बंगाल से एक बच्चे को लेकर आना, जिसकी मां ने दिल्ली में उसकी गुमशुदगी की शिकायत दर्ज करायी थी.’
‘बंगाल में प्रत्येक पुलिस स्टेशन के अंतर्गत लगभग 150 गांव थे और हमें उनमें से हर एक का पता लगाना था. लेकिन हम आखिरकार एक सुदूर गांव में उस बच्चे को खोजने में कामयाब रहे, जहां हम भारी बारिश के बीच दो नदियों को पार करने के बाद पहुंचे थे.’
अगस्त और अक्टूबर के बीच, ढाका ने दिल्ली-एनसीआर, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और पंजाब के 76 बच्चों को बचाया और उनके मां-बाप से मिलाया. इनमें से 56 की आयु 14 वर्ष से कम है. सीमा अब अपनी उपलब्धि के लिए ‘आउट-ऑफ-टर्न’ पदोन्नति से सम्मानित होने वाली पहले पुलिस कर्मचारी बन गयी हैं और उन्हें आज ही एएसआई के पद पर पदोन्नत किया गया है.
दिल्ली पुलिस आयुक्त एस.एन. श्रीवास्तव ने बुधवार को ढाका को उसकी ‘जुझारू भावना’ के लिए बधाई देते हुए ट्वीट किया था.
Women HC Seema Dhaka, PS Samaypur Badli, deserves congratulations for being the first police person to be promoted out of turn for recovering 56 children in 3 months under incentive scheme. Hats off to fighting spirit and joy brought to families. @LtGovDelhi @HMOIndia @PMOIndia
— CP Delhi #DilKiPolice (@CPDelhi) November 18, 2020
श्रीवास्तव ने अगस्त में ‘प्रोत्साहन योजना‘ शुरू की थी जिसके अंतर्गत एक वर्ष में 14 वर्ष से कम उम्र के कम से कम 50 लापता बच्चों को खोजने वाले कांस्टेबलों के लिए ‘आउट ऑफ टर्न’ प्रमोशन देने का वादा किया गया था.
लेकिन पदोन्नति सीमा ढाका के दिमाग में अंतिम चीजों में से एक थी. उन्होंने कहा, ‘मेरे लिए, अपने खोए हुए बच्चों को पाकर माता-पिता के चेहरों पर खुशी अनमोल थी. कुछ एफआईआर छह-सात साल पुरानी थीं लेकिन मेरे प्रयासों को पहचानने के लिए मैं कमिश्नर सर (श्रीवास्तव) की आभारी हूं.’
33 वर्षीय ढाका मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बड़ौत की रहने वाली हैं. वह 2006 में एक कांस्टेबल के रूप में दिल्ली पुलिस में शामिल हुई थी और 2014 में हेड कांस्टेबल के रूप में पदोन्नत हुई थी.
अपने बचाव अभियान को याद करते हुए ढाका ने यह भी बताया कि किस प्रकार विभिन्न लापता शिकायतों को दर्ज करने वाले लोगों को ट्रेस करना सबसे कठिन कामों में से एक था.
उन्होंने कहा, ‘इन एफआईआर दर्ज करने वाले शिकायतकर्ताओं को ट्रेस करना मुश्किल था. इनमें से कुछ 2013 तक के केस थे तो कुछ शिकायतकर्ताओं के पते बदल गए थे. और कुछ मामलों में हमें आगे बढ़ने के लिए पते को भौतिक रूप से सत्यापित करना पड़ा था’.
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कोविड को दी मात
ढाका द्वारा बचाए गए बच्चों में बड़ी संख्या वे थे जो नशे की लत के कारण अपने घरों को छोड़कर चले गए थे. इनमें से कई बच्चों को दिल्ली-एनसीआर के क्षेत्रों में खोजा गया.
ढाका ने बताया, ‘मुझे ऐसे दो बच्चे याद हैं, जो मिलने पर भी नशे की हालत में पाए गए थे. एक मेडिकल जांच के बाद, हमने उन्हें चाइल्ड वेलफेयर कमेटी को भेज दिया और फिर उन्हें पुनर्वास केंद्र भेज दिया गया.
इन बच्चों में कुछ नाबालिग लड़कियां भी शामिल थीं, जिनकी उम्र मुश्किल से 11 और 12 साल थी और जो अपने घरों से भाग चुकी थीं. ढाका ने बताया, ‘दो या तीन वर्षों के बाद, उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और वे अपने माता-पिता के पास वापस जाना चाहती थीं. ऐसे में बच्चे अपने परिवारों से संपर्क साधने की कोशिश ज़रूर करते हैं. हमने उन मामलों में कॉल डिटेल का पता लगाया और लड़कियों का पता लगाया’.
कई ऐसे मामले थे जहां बच्चों का व्यक्तिगत दुश्मनी के कारण अपहरण कर लिया गया था.
‘मेरे क्षेत्र में एक ऐसा ही मामला सामने आया था. एक विवाहित महिला, जिसे अपने सहकर्मी से प्यार हो गया था, उसे प्रेमी द्वारा लॉकडाउन के दौरान मिलने के लिए मजबूर किया जा रहा था. महिला ने मना कर दिया और पुरुष ने फिर उसके तीन साल के बच्चे का अपहरण कर लिया. हमने 2.5 घंटे में बच्चे को ढूंढ निकाला और आरोपी को गिरफ्तार कर लिया.’
सीमा ढाका कोविड को भी हरा चुकी हैं. वह जुलाई में ठीक हुई और अगस्त में उन्होंने अपना बचाव अभियान शुरू किया. सीमा ने बताया, ‘मुझे कोविड का डर अब नहीं था क्योंकि मैं पहले से ही संक्रमित होकर ठीक हो चुकी थी. लेकिन ट्रेनों की अनुपलब्धता के कारण हमें आने जाने और रुकने में दिक्कत आई. बच्चों को बचाने के लिए हम जहां जाते, कई बार हमें वहां रुकना भी पड़ता था. इससे हमारे लिए चुनौतियां पैदा हुईं.’
प्रोत्साहन योजना की घोषणा के बाद अगस्त की शुरुआत से दिल्ली पुलिस द्वारा कुल 1,440 बच्चों का पता लगाया गया है. इसकी तुलना में दिल्ली पुलिस ने साल 2019 में पूरे वर्ष में 3,336 गुमशुदा बच्चों को खोजा था.
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