नई दिल्ली: साल 2015 में, राजस्थान के कनोटा के पूर्व शाही परिवार से संबंध रखने वाली पद्मिनी राठौर को पाकिस्तान के सिंध सूबे में स्थित अमरकोट शाही परिवार के कुंवर कर्णी सिंह सोढ़ा के साथ उनकी सीमा पार की शादी को कवर करने की मांग करते हुए पत्रकारों के ढेर सारे फोन आए.
‘पाकिस्तानी लड़का, भारतीय लड़की और जयपुर में हुई एक शाही शादी’ और ‘सीमाओं से परे एक विवाह’ जैसे शीर्षक उस साल भारतीय समाचार पोर्टलों में छपी कुछ सुर्ख़ियों में शामिल थे.
इस विवाह के सात साल बाद, पद्मिनी नौकरशाही के उस विकट कष्ट से जूझ रही है, जो दुनिया की सबसे खतरनाक सीमा कहलाने वाली जगह पर शादी करने वालों के सामने मुंह बाए रहता है.
पिछले महीने सामने आए सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पाकिस्तानी नागरिकता प्राप्त करने वाले भारतीयों की संख्या साल 2019 में शून्य से बढ़कर साल 2020 में 7 और फिर साल 2021 में 41 हो गई है. पद्मिनी की कहानी यह समझने में मदद करती है कि क्यों कुछ भारतीयों ने पाकिस्तानी नागरिक बनने का विकल्प चुना है. साथ ही, यह उनके सामने पेश आने बाले मुश्किलात को भी बयां करता है.
दुनिया के कुछ अन्य देशों के विपरीत, भारत दोहरी नागरिकता की अनुमति नहीं देता है, जिसका अर्थ है कि विदेशी नागरिकता प्राप्त करने वाले सभी भारतीय नागरिकों को कानूनी रूप से अपनी भारतीय नागरिकता छोड़नी होती है.
पाकिस्तानी नागरिकता के लिए आवेदन करने वाले अधिकांश भारतीयों की तरह, 34 वर्षीय पद्मिनी ने भी वैवाहिक उद्देश्य से ही ऐसा किया था.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘मैंने कुंवर कर्णी सिंह से साल 2015 में शादी की थी. हमारा एक पांच साल का बेटा है जिसके पास पाकिस्तानी पासपोर्ट है. हमारे परिवार में मैं अकेली हूं जिसके पास पाकिस्तानी नागरिकता नहीं है और यह पाकिस्तान के भीतर सफर करने में परेशानी का सबब बनता है. चूंकि मैं अभी भी एक भारतीय नागरिक हूं, इसलिए मैं पाकिस्तान में बिना वीजा एक शहर से दूसरे शहर की यात्रा नहीं कर सकती, और इसे (वीजा को) प्रोसेस (संसाधित) होने में आमतौर पर 15-20 दिन लगते हैं.’
विदेश यात्रा भी एक बड़ी समस्या है क्योंकि उन्हें साल में केवल दो बार पाकिस्तान में फिर से प्रवेश की अनुमति है. पद्मिनी ने बताया, ‘साल 2019 के पुलवामा हमले से पहले, वे साल में चार बार पुन: प्रवेश की अनुमति दे रहे थे जो कि काम चलने लायक था. अब, केवल दो बार फिर से प्रवेश की अनुमति के साथ, हम विदेश में कई पारिवारिक यात्राएं नहीं कर सकते.’
इस स्थिति ने वित्तीय और लॉजिस्टिकल कठिनाइयों को भी जन्म दिया है. पद्मिनी ने दिप्रिंट को बताया, ‘अगर मुझे पाकिस्तान में जमीन का एक टुकड़ा भी खरीदना है, तो मुझे इसे अपने पति के नाम पर ही पंजीकृत करवाना होगा. जब तक मुझे नागरिकता नहीं मिल जाती, मैं न तो बैंक खाता खोल सकती हूं और न ही सीएनआईसी कार्ड प्राप्त कर सकती हूं.’
भारत के आधार कार्ड की ही तरह पाकिस्तान में बैंक खाता खोलने और वाहन या जमीन खरीदने से लेकर सिम कार्ड प्राप्त करने तक सभी जरुरी चीजों के लिए कम्प्यूटरीकृत राष्ट्रीय पहचान पत्र (कम्प्यूटराइज़ड नेशनल आइडेंटिटी कार्ड – सीएनआईसी) की आवश्यकता होती है.
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‘भारत-पाक संबंधों का बार-बार खराब होना एक कारण हो सकता है’
पद्मिनी को संदेह है कि पिछले एक दशक में भारत-पाकिस्तान संबंधों का बार-बार ख़राब होना उनके नागरिकता के आवेदन में देरी से जुड़ा एक कारक हो सकता है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘मेरे पति के परिवार में शादी करने वाली कई महिलाएं – मेरी सास, मौसी सास, दादी सास – भारतीय थीं. उनके समय में, पाकिस्तानी नागरिकता कुछ ही हफ्तों के भीतर दे दी गई थी. ‘
वे कहती हैं, ‘मुझे शक है कि मेरे आवेदन में उन कारकों की वजह से अधिक समय लग रहा है जो मेरे नियंत्रण से बाहर हैं. पिछले एक दशक में, पुलवामा हमले, बालाकोट हमले और जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म करने के साथ ही भारत-पाकिस्तान संबंधों को कई बार डाउनग्रेड (खराब आकलन) किया गया है. हो सकता है कि दोनों पक्ष एक दूसरे के नागरिकों को अपनी नागरिकता देने को लेकर ज्यादा सतर्क हो गए हों.‘
इस बीच, हाल ही में भारतीयों को पाकिस्तानी नागरिकता प्रदान करने किये जाने में आई वृद्धि के लिए कोई स्पष्टीकरण सामने नहीं आया है.
पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल का कहना है कि इसका पहले से लंबित आवेदनों की मंजूरी के साथ-साथ खाड़ी क्षेत्र में रहने वाले भारतीय-पाकिस्तानी जोड़ों की संख्या में वृद्धि से संबंध हो सकता है.
सिब्बल ने दिप्रिंट को बताया, ‘पिछले दो-तीन वर्षों में पाकिस्तानी नागरिकता प्राप्त करने वाले भारतीयों की संख्या में आई थोड़ी सी वृद्धि वास्तव में पहले से लंबित पड़े (बैकलॉग) आवेदनों को एक साथ क्लियर किये जाने को परिलक्षित कर सकता है. जैसा कि हम जानते हैं, पाकिस्तानी नागरिकता के लिए आवेदन करने वाले भारतीयों को आमतौर पर लंबा इंतजार करना पड़ता है. खाड़ी क्षेत्र का मामला भी एक अन्य कारक हो सकता है. पिछले एक दशक में, यह भारतीयों और पाकिस्तानियों के बीच समान रूप से लोकप्रिय संगम स्थल बन गया है. वहां दोनों देशो से संबंध रखने वाले जोड़ों का मिलना और फिर भारत या पाकिस्तान में बस जाना कोई असामान्य बात नहीं है.’
खुशकिस्मती, लेकिन कठिन अनुभव भी
पाकिस्तानी नागरिकता पाने में कामयाब रहने वालों में 46 वर्षीय समीरा इजलाल भी शामिल हैं, जिन्होंने इसके लिए साल 1999 में आवेदन किया था.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘मेरे शौहर और मैंने जनवरी 1999 में शादी कर ली और मुझे दिसंबर में अपनी पाकिस्तानी नागरिकता मिल गई. आवेदन की शुरुआत से इस प्रक्रिया में लगभग नौ महीने लगे, जो बिरले ही होता है.आमतौर पर लोग सालों इंतजार करते हैं.’
समीरा और उनके शौहर साल 2003 से 2017 तक बांग्लादेश में रहते थे, जिसके बारे में वे कहती हैं कि इसने उनके लिए कराची में फिर से बसने की तुलना में भारत की यात्रा के लिए परमिट प्राप्त करना ज्यादा आसान बना दिया.
वे कहती हैं, ‘मेरे शौहर और मेरे पास बांग्लादेश में काम करने की अनुमति (वर्क परमिट) थी. मैंने ढाका में एक मर्चेंडाइज एक्सपोर्टिंग हाउस (उत्पादों का निर्यात करने वाला फर्म) में काम किया. हम व्यापारिक यात्राओं पर, और अपने परिवार से मिलने के लिए भी, अक्सर भारत आते थे. जब हम बांग्लादेश में रह रहे थे तब हमारे लिए भारतीय वीजा प्राप्त करना काफी आसान था. परेशानी तब शुरू हुई जब हम साल 2017 में वापस कराची लौट आये.’
हालांकि, पाकिस्तानी नागरिकता हासिल करना अपने आप में अलग समस्याएं पैदा करता है. समीरा आखिरी बार जनवरी 2019 में एक शादी में शामिल होने के लिए भारत आई थीं.
उन्होंने आगे कहा, ‘मैंने हैदराबाद, दिल्ली और लखनऊ जाने की अनुमति वाले वीजा के लिए आवेदन किया था, लेकिन मुझे केवल हैदराबाद और लखनऊ की यात्रा करने की अनुमति दी गई थी. वीजा आने में काफी समय, करीब तीन-चार महीने, लगा. मुझे शक है कि उन्होंने मुझे दिल्ली जाने की अनुमति इसलिए नहीं दी क्योंकि गणतंत्र दिवस की तैयारियों के दौरान वहां कड़ी सुरक्षा होती है.’
समीरा सितंबर 2020 में अपनी मां को दफ़न किये जाने में भी शामिल नहीं हो सकीं क्योंकि कोविड महामारी के दौरान भारत और पाकिस्तान दोनों हीं वीजा जारी नहीं कर रहे थे.
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