नयी दिल्ली, एक फरवरी (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय में मंगलवार को दो एनजीओ की ओर से दलील दी गई कि वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण विवाह संस्था को अपवित्र नहीं करेगा, बल्कि पति द्वारा जबरन संबंध बनाने को माफ किये जाने से इसकी पवित्रता का क्षरण हुआ है।
याचिकाकर्ता एनजीओ आरआईटी फाउंडेशन और ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वीमन्स एसोसियेशन की ओर से पेश वकील ने कहा कि जबरन संबंध बनाना विवाह की पवित्रता या कानूनी प्रकृति को संरक्षित नहीं करता है। उन्होंने कहा कि इसलिये पत्नी को इस तरह के मामलों में बलात्कार के विशिष्ट नुकसान के लिए पूरा अधिकार देना चाहिए।
याचिकाकर्ता एनजीओ की ओर से पेश वकील करुणा नंदी ने तर्क दिया कि यदि वैवाहिक बलात्कार के अपवाद का उद्देश्य पति के वैवाहिक अधिकारों या विवाह संस्था का संरक्षण करना है, तो ऐसी चीज अपने आप में असंवैधानिक है और यह अपवाद कानून की किताब में नहीं बना रह सकता। न्यायमूर्ति राजीव शकधर और सी हरिशंकर की पीठ भारतीय दंड संहिता के तहत बलात्कार के अपराध के लिए पतियों को दी गई अभियोजन से छूट को रद्द करने से जुड़ी याचिकाओं के समूह पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ताओं ने भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत वैवाहिक बलात्कार के अपवाद की संवैधानिकता को इस आधार पर चुनौती दी है कि इससे उन विवाहित महिलाओं के साथ भेदभाव होता है, जिनका उनके पतियों द्वारा यौन उत्पीड़न किया जाता है। भाषा संतोष दिलीप
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