नई दिल्ली: गौशालाओं, गौ-उत्पाद, उद्यमियों को गाय से संबंधित व्यवसायों को स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करना और गोवंश के कल्याण के लिए काम करने वाले संगठनों को वित्तीय सहायता प्रदान करना- ये ऐसे कुछ उपाय हैं जिन पर मोदी सरकार पूरे देश में फैली आवारा मवेशियों की समस्या को हल करने की अपनी एक योजना के हिस्से के तौर पर विचार कर रही है.
मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के दायरे में आने वाले पशुपालन और डेयरी विभाग ने अपने ‘मवेशियों के कल्याण’ योजना के लिए केंद्र सरकार से मंजूरी की मांग की है.
मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, इस कदम का उद्देश्य किसानों को मवेशियों के उत्पादक जीवनकाल के पूरा होने पर उन्हें सड़कों पर न छोड़ने के लिए प्रोत्साहित करना, ‘आवारा पशुओं और इंसानों के बीच के संघर्ष’ को कम करना और बाई प्रोडक्ट्स के माध्यम से किसानों को अतिरिक्त आमदनी प्रदान करना है.
अधिकारी ने दिप्रिंट के साथ बातचीत में इस बात की पुष्टि की है कि संबंधित मंत्री ने उक्त योजना को ‘सैद्धांतिक रूप से मंजूरी’ दे दी है और साथ ही यह भी कहा कि ‘व्यय विभाग’ से अलग से सैद्धांतिक मंजूरी ली जा रही है.’
अधिकारी ने कहा, ‘योजना की कुल प्रस्तावित लागत 494 करोड़ रुपये है, जो 2022-23 से लेकर 2025-26 तक पांच वर्षों में विभाजित है. इसमें गौशालाओं, पशुधन पर्यटन पार्क, गाय उत्पादों आदि के लिए धन की व्यवस्था करना शामिल होगा’.
अधिकारी ने आगे कहा कि यह योजना गौ-वंश से प्राप्त होने वाले उत्पादों और बाई-प्रोडक्ट्स के उपयोग के जरिए उन्हें बचाने के लिए है. उन्होंने कहा, ‘यह योजना प्रौद्योगिकी के उपयोग के जरिए कचरे को धन में बदलने की भी परिकल्पना करेगी. इसलिए, यह आवारा मवेशियों और इंसानों के बीच के संघर्ष को कम करने में मदद करेगा और किसानों को अतिरिक्त आमदनी प्रदान करेगा.’
आवारा पशुओं का मुद्दा कई राज्य सरकारों के गले की फांस बन रहा है और यहां तक कि यह एक चुनावी मुद्दा भी बन गया है. उदाहरण के तौर पर, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस साल फरवरी में – विधानसभा चुनावों से ठीक पहले, यह घोषणा की थी कि अगर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) राज्य में सत्ता में लौटती है तो प्रदेश सरकार उन किसानों को हर महीने 900 से 1000 रुपये देगी जो आवारा पशुओं को गोद लेंगे या उनकी देखभाल करेंगे.
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50 लाख बेघर मवेशी
पशुपालन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, भारत में लगभग 50 लाख बेघर मवेशी हैं (2019 में आयोजित 20वीं पशुधन गणना के अनुसार).
मंत्रालय की ओर से जारी और दिप्रिंट द्वारा प्राप्त किए गए एक बयान में कहा गया है कि ‘ये जानवर मुख्य रूप से भोजन और पानी की तलाश में सड़क पर भटक रहे हैं. कुल मिलाकर 32 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने गौ वंश के पशु धन की हत्या पर प्रतिबंध लगा दिया है और इसलिए किसान उन्हें बेच नहीं सकते हैं. मवेशियों के कारण दुर्घटनाओं और फसल को होने वाले नुकसान की भी खबरें आती रहतीं हैं. इन जानवरों में मुख्य रूप से दूध देना बंद कर चुकी गायें और नर गौ वंश वाले पशु शामिल हैं.’
इस बयान में आगे कहा गया है कि इन बेघर जानवरों को रखने वाली सरकारी और निजी गौशालाओं के लिए पैसों की कमी के कारण अपना काम जारी रखना मुश्किल हो रहा है. हालांकि, कुछ राज्य सरकारें इस संबंध में वित्तीय सहायता प्रदान कर रही हैं, लेकिन यह सहायता इन पशुओं को भोजन और पोषण की आपूर्ति करने में ‘अपर्याप्त’ साबित हो रही हैं.
बयान के मुताबिक, मवेशियों की उत्पादक उम्र 10-12 साल होती है. कृषि के मशीनीकरण ने नर गौवंश के पशुओं को बेकार बना दिया है. अनुत्पादक गायें और नर पशु किसानों के लिए बोझ हैं क्योंकि वह उनके लिए आर्थिक रूप से व्यवहारिक नहीं होतीं हैं.
इस बयान में आगे जोड़ा गया है, ‘इन उत्पाद नहीं देने वाले मवेशियों और नर पशुओं की सार्वजनिक भावनाओं और धार्मिक कारणों की वजह से यदि बलि नहीं दी जाती तो उनके जीवन के अंत होने तक देख-रेख करने की आवश्यकता होती है, जब तक कि वह प्राकृतिक मृत्यु से मर नहीं जाते हैं. इस अवधि के दौरान जानवरों को पशु चिकित्सा संबंधी देखभाल भी प्रदान करने की ज़रूरत होती है ताकि जानवर बीमारियों और चोटों से संक्रमित न हों, और यह अपने आप में एक महंगा मामला भी है.’
गौशालाओं को सहायता प्रदान करना और बाई-प्रोडक्ट्स को बढ़ावा देना
मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित योजना में दूध के अलावा गौ वंश के प्राप्त होने वाले अन्य बाई-प्रोडक्ट्स – जैसे किस गाय के गोबर और मूत्र जिनका उपयोग अन्य विभिन्न उत्पादों के निर्माण में किया जाता है- उनके उत्पादन को बढ़ावा देकर गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाने की परिकल्पना की गई है.
बयान में कहा गया है, ‘कुछ संगठन ये उत्पाद बनाने की कोशिश कर रहे हैं, हालांकि, उनकी मात्रा कम है और उनके पास मार्केटिंग का समर्थन नहीं है. इसके अलावा, जैव-सीएनजी, लिग्निन (एक जैविक इकाई) और जैविक उर्वरक आदि जैसे नए उत्पादों का उत्पादन करने के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने की आवश्यकता है.’
हालांकि, यह बयान इस बात की ओर भी इशारा करता है कि ये उद्योग ‘बहुत ही प्रारंभिक अवस्था’ में हैं और अपने उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए उन्हें सरकारी सहायता की आवश्यकता है.
इस संदर्भ में स्थायी व्यवसायों की नींव रखने वाले बाई-प्रोडक्ट्स के बारे में इस बयान में एक उदाहरण कुछ इस तरह का है कि कैसे ‘कुछ संगठन गाय के गोबर को फॉस्फेट रिच ऑर्गेनिक फर्टिलाइज़र के रूप में बदलने के के बाद उसका उपयोग जैविक उर्वरकों का उत्पादन करने के लिए कर रहे हैं..
एक बार हरी झंडी मिलने के बाद, प्रस्तावित योजना को पूरे भारत में लागू किया जाएगा. इस योजना के तहत संगठन, अनुसंधान संस्थान, गैर-सरकारी संस्थान (एनजीओ), गौशालाएं, व्यक्तिगत उद्यमी, ट्रस्ट या समाज, किसान संगठन और स्वयं सहायता समूह, लाभ उठाने के पात्र होंगे.
मंत्रालय के एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘योजना में उन चुनिंदा संस्थानों को साहायता प्रदान करने की बात कही गई है, जो इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं. साथ ही, गौ-उद्यमियों के प्रशिक्षण के लिए लाभार्थियों के चयन के दौरान, अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लाभार्थियों को मानदंडों के अनुसार प्राथमिकता के आधार पर चुना जाएगा.’
अधिकारी ने बताया कि पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत गठित एक वैधानिक निकाय और भारतीय पशु कल्याण बोर्ड इस योजना के लिए कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में कार्य करेगा.
उक्त अधिकारी ने कहा, ‘सरकार से वित्तीय लाभ प्राप्त करने के वाले गैर-सरकारी संगठनों की तरह के लाभार्थियों को नीति आयोग द्वारा निर्धारित मानदंडों के माध्यम से चुना जाएगा. चूंकि यह केंद्रीय योजना है और इस योजना के तहत लाभार्थी को दी गई फंडिंग भारतीय पशु कल्याण बोर्ड के माध्यम से की जाएगी. पंचायत प्रणाली को आवारा मवेशियों के लिए सुविधाएं निर्मित करने के वास्ते प्रोत्साहित किया जाएगा ताकि इसके बाई-प्रोडक्ट्स संबद्ध उद्योगों को उपलब्ध कराए जा सकें और (पंचायतें) योजना के तहत धन प्राप्त कर सकें.’
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अनुवाद (रामलाल खन्ना)
संपादन (फाल्गुनी शर्मा)
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