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Thursday, 25 April, 2024
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‘कोविशील्ड’ लेबल, नकद भुगतान, कोई फ़ोटो नहीं – ये है मुंबई के ‘नकली’ वैक्सीनेशन सेंटर के अंदर की कहानी

पुलिस के मुताबिक 25 मई से 6 जून के बीच ऐसे कैंपों में करीब 2,685 लोगों को ठगा गया. जबकि अधिकांश को वैक्सीनेशन का प्रमाण पत्र नहीं मिला है.

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मुंबई: कॉरपोरेट घरानों और आवासीय सोसाइटियों को वैक्सीनेशन कैंप लगाने की पेशकश करना, उन्हें कोविड वैक्सीन की खुराक उपलब्ध कराने का आश्वासन देना, ‘कोविशील्ड’ लिखी शीशियां मुहैया भी कराना, ‘सरकारी नियमों’ का हवाला देकर शिविरों में फोटोग्राफी करने से रोकना, नकद भुगतान लेना और खुराक लेने वाले लोगों को टीकाकरण का प्रमाणपत्र कुछ दिनों के भीतर उनके मोबाइल नंबरों पर भेजे जाने की बात कहकर वहां से गायब हो जाना.

मुंबई पुलिस के मुताबिक, यही वह तरीका था जिससे कुछ लोगों के एक नेटवर्क ने 25 मई से 6 जून के बीच आठ नकली वैक्सीनेशन कैंप लगाकर मुंबई और ठाणे में कम से कम 2,685  लोगों को कथित तौर पर ठगा. पुलिस ने कहा कि इन शिविरों में टीका लगवाने वाले कुछ लोगों को तो बाद में टीकाकरण का प्रमाणपत्र भी मिला, लेकिन विभिन्न अस्पतालों के नाम और गलत तारीखों के साथ.

देश में जैसे-जैसे कोविड के टीकों की मांग बढ़ी है, वैसे-वैसे कथित फर्जी टीकाकरण शिविरों की खबरें भी आई हैं. पिछले हफ्ते कोलकाता में फर्जी टीकाकरण शिविरों की जानकारी मिलने के बाद अब मुंबई और ठाणे में भी ऐसी ही जालसाजी की शिकायतें सामने आ रही हैं. हालांकि, कोलकाता में शिविर आयोजित करने वाले फर्जी आईएएस अधिकारी ने टीका लगाने के लिए पैसे नहीं लिए, लेकिन मुंबई और ठाणे में आयोजित शिविर मुफ्त नहीं थे. यहां टीका लेने वालों से प्रति खुराक 1,000 और उससे अधिक रुपये लिए गए.

इन शिविरों में टीकाकरण कराने वालों में से कई को अभी अपने प्रमाणपत्र नहीं मिले हैं, जिन्हें मिले भी हैं उनके प्रमाणपत्रों पर अस्पताल के नाम और टीकाकरण की तारीख गलत लिखी गई है. अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इन शिविरों में लोगों को वास्तविक कोविड टीके की खुराक दी गई थी, या फिर यह तीन स्वीकृत टीकों में से एक नहीं था तो फिर इन्हें क्या दिया गया था.

हालांकि, पुलिस ने बताया कि टीका लगवाने वालों में से किसी ने अब तक किसी भी स्वास्थ्य समस्या या किसी दुष्प्रभाव की शिकायत नहीं की है.

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मुंबई पुलिस ने अब तक ऐसे सात ‘फर्जी’ टीकाकरण शिविरों, जिनमें बड़े पैमाने पर लोगों का एक ही समूह शामिल है, के संबंध में मामले दर्ज किए हैं और 12 गिरफ्तारियां भी की हैं. ठाणे पुलिस ने ऐसा ही एक मामला दर्ज किया है.

मुंबई पुलिस के उपायुक्त विशाल ठाकुर ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम इस तरह के और शिविरों के बारे में सुराग ढूंढ़ रहे हैं. इसकी जांच भी की जा रही है कि इन टीकाकरण शिविरों में हिस्सा लेने वालों को वास्तविक टीके की खुराक दी गई या कुछ और. जांच सही दिशा में जा रही है.’


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नकद भुगतान, कोई प्रमाणपत्र नहीं

मई में एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म रिन्यूबाय में एचआर प्रमुख को सीमा आहूजा नामक एक महिला का फोन आया, जिसने कथित तौर पर दावा किया कि वह और उनके सहयोगी रिन्यूबाय के कर्मचारियों, चैनल भागीदारों और उनके परिवारों के लिए कोविड टीकाकरण शिविर आयोजित कर सकते हैं. ठाणे पुलिस में दर्ज प्राथमिकी के मुताबिक, सीमा आहूजा ने कथित तौर पर इसके लिए प्रति खुराक 1,000 रुपये लेने की बात कही.

दिप्रिंट को हासिल हुई 25 जून की प्राथमिकी में बताया गया है कि आहूजा ने कहा था कि मलाड मेडिकल एसोसिएशन के एक पदाधिकारी महेंद्र सिंह टीके की खुराक की व्यवस्था करेंगे और रिन्यूबाय कर्मचारी को यह आश्वासन भी दिया था कि महेंद्र सिंह मुंबई और ठाणे में ऐसे शिविर आयोजित करते रहे हैं. कंपनी ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और 26 मई को सुबह 10 बजे से दोपहर 1 बजे के बीच उनके ठाणे स्थित कार्यालय में एक टीकाकरण शिविर लगाया गया. शिविर में कम से कम 116 लोगों को टीका लगा और टीके लगवाने वालों को अपने आधार कार्ड दिखाने के लिए कहा गया.

एफआईआर में शिकायतकर्ता उर्णव हीरालाल दत्ता, जो रिन्यूबाय में क्लस्टर सेल्स मैनेजर के रूप में काम करते हैं, ने कहा कि शिविर लगने वाले दिन सीमा आहूजा तीन लोगों के साथ आई और उन्हें ‘श्रीकांत माने, करीम (कथित रूप से एक कंपाउंडर) और संजय गुप्ता’ के तौर पर परिचित कराया.

रिन्यूबाय का मुंबई ऑपरेशन संभालने के साथ-साथ ठाणे और वाशी के ऑफिस को भी देखने वाले दत्ता ने एफआईआर में कहा, ‘श्रीकांत माने ने मुझे एक दवा की बोतल दिखाई, जिस पर ‘कोविशील्ड’ लिखा था. उसके बाद सुबह 10 बजे से दोपहर 1 बजे के बीच 116 लोगों को खुराक मिली…जब कुछ कर्मचारियों ने टीका लगवाते हुए फोटो क्लिक करना शुरू किया, तो सीमा आहूजा और श्रीकांत माने ने उन्हें यह कहते हुए रोका कि फोटोग्राफी की अनुमति नहीं है. लेकिन फिर कुछ कर्मचारियों ने फोटो खींच लिए.’

दत्ता ने कहा, टीकाकरण के बाद जब उन्होंने आहूजा को 116 खुराक के लिए 1.16 लाख रुपये का चेक दिया तो उसने नकद भुगतान पर जोर दिया और हाथ से हस्ताक्षर वाली रसीद दे दी. प्राथमिकी में कहा गया है कि उसने यह भी कहा कि आठ दिन के अंदर लाभार्थियों के मोबाइल फोन या ईमेल आईडी पर वैक्सीन प्रमाणपत्र प्राप्त हो जाएगा,

अगले ही दिन माने को परेल स्थित पोदार सेंटर में एक और शिविर लगाने का अनुरोध मिला. दिप्रिंट को मिली मुंबई के भोईवाड़ा पुलिस स्टेशन में दर्ज एक अन्य एफआईआर मुताबिक, रिन्यूबाय और पोदार दोनों से संबद्ध रहे एक निर्माण ठेकेदार ने बताया कहा कि उसे रिन्यूब्यू के शिविर में टीका लगाया गया था और उसी ने माने को पोदार सेंटर में असिस्टेंट पर्चेज मैनेजर शंकर केसरी के पास भेजा था.

23 जून को दर्ज एफआईआर में केसरी ने कहा कि उन्होंने तुरंत माने से संपर्क किया, जिसने कथित तौर पर उन्हें बताया कि उनके हेड महेंद्र सिंह, दहिसर में शिवम अस्पताल के माध्यम से केसरी के कार्यालय के लिए टीकाकरण शिविर की व्यवस्था कर सकते हैं. प्राथमिकी के मुताबिक, उन्होंने वैक्सीन की प्रति खुराक के लिए 1,200 रुपये मांगे.


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इनकी पूरी कार्यप्रणाली एक जैसी थी.

28 और 29 मई को टीकाकरण के दिन आहूजा और माने के साथ तीन व्यक्ति डॉक्टर के भेष में आए. एफआईआर में कहा गया है कि महेंद्र सिंह भी वहां मौजूद था और उसने ही केसरी को दवा की एक बोतल दिखाई, जिस पर ‘कोविशील्ड’ लिखा था. अभियान के बाद पोदार सेंटर ने 2,44,800 रुपये का नकद भुगतान कर हस्तलिखित रसीद प्राप्त की. यहां भी टीका लगवाने वाले सभी 207 लोगों को आश्वस्त किया गया कि उनके टीकाकरण के प्रमाणपत्र आठ दिनों के भीतर आ जाएंगे.

प्रमाणपत्र अंततः 12 जून के बाद पहुंचे और इसमें टीकाकरण की अलग-अलग तारीखों का जिक्र था. टीकाकरण स्थलों की जगह पर नानावती अस्पताल और लाइफलाइन मेडिकेयर का नाम लिखा गया था.

केसरी ने अपनी प्राथमिकी में कहा, ‘श्रीकांत माने ने मुझे बताया था कि जिस दिन डाटा कोविन पर अपलोड हो जाता है, वह तारीख टीकाकरण की तिथि के तौर पर दिखाई देती है, और चूंकि उनका पांच अलग-अलग अस्पतालों के साथ करार है, इसलिए इन्हीं में से किसी एक का नाम प्रमाणपत्र पर दिख सकता है.’

वहीं, रिन्यूबाय को शिविर में टीका लगवाने वाले 112 लोगों में से सिर्फ चार का टीकाकरण प्रमाणपत्र मिला. प्रमाणपत्रों में टीकाकरण की तारीख 6 जून और 11 जून और टीकाकरण केंद्र नानावती अस्पताल और लाइफलाइन मेडिकेयर अस्पताल के रूप में दर्ज है. बाकी 108 का सर्टिफिकेट आना अब भी बाकी है.

महेंद्र सिंह, माने, करीम, गुप्ता और आहूजा उन 11 लोगों में शामिल हैं जिन्हें इस मामले में पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका है.

इस मामले की जांच करने वाले ठाणे के एक पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘महेंद्र सिंह घोटाले के पीछे मुख्य व्यक्ति लगता है, जबकि अन्य को सिर्फ मोहरे बनाकर इस्तेमाल किया गया. लेकिन, चूंकि आरोपी की कस्टडी मुंबई पुलिस के पास है, इसलिए हम इस समय मामले में इससे ज्यादा कुछ नहीं कह सकते.’

‘फर्जी’ शिविरों की सीरीज

पुलिस को ऐसे और भी ‘फर्जी’ शिविरों की शिकायतें मिली हैं.

17 जून को कांदिवली स्थित हीरानंदानी हेरिटेज रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन की तरफ से दर्ज कराई गई शिकायत में 30 मई को उनके आवासीय परिसर में एक कथित फर्जी टीकाकरण शिविर आयोजित होने की जानकारी दी गई है. शिविर में 390 लोगों को टीका लगाया गया था और उनसे प्रति खुराक 1,260 रुपये लिए गए थे.

हाउसिंग कॉम्प्लेक्स में रहने वालों ने बताया कि उन्हें टीके का कोई साइड इफेक्ट नहीं हुआ था और कई दिनों तक उनके प्रमाणपत्र नहीं मिले थे. अंत में जो कुछ प्रमाणपत्र आए, उनमें टीकाकरण केंद्र के तौर पर नानावटी, लाइफलाइन मेडिकेयर और नेस्को कोविड केयर सेंटर जैसे अस्पतालों के नाम दर्ज थे.

हालांकि, हीरानंदानी में फर्जी शिविर का आयोजन रिन्यूबाय और पोदार सेंटर की तुलना में बाद की तारीख में लगा था लेकिन सबसे पहले शिकायत हाउसिंग सोसाइटी की तरफ से ही आई थी. इस मामले में दर्ज आठ एफआईआर में इसकी एफआईआर पहली है, और मुंबई पुलिस ने महेंद्र सिंह और तीन अन्य को 18 जून तक गिरफ्तार कर लिया था.

जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, सबूतों के आधार पर पुलिस ने और ज्यादा एफआईआर दर्ज की जो एक ही समूह की तरफ से ऐसे और शिविर लगाए जाने के संबंध में हैं.

वर्सोवा में एक कैंप लगाकर आरोपियों ने म्यूजिक कंपनी टिप्स इंडस्ट्रीज और प्रोडक्शन फर्म माचिस पिक्चर्स से जुड़े 151 लोगों को ‘टीके की खुराक’ दी. टिप्स के लिए खार में आयोजित एक अन्य शिविर में 206 अन्य लोगों का टीकाकरण किया गया. आरोपियों ने बोरीवली में आदित्य कॉलेज के 225 कर्मचारियों और उनके परिवारों, निजी फर्म मानसी शेयर्स एंड स्टॉक के 514 स्टाफ मेंबर को टीका लगाने के अलावा बैंक ऑफ बड़ौदा के 40 कर्मचारियों के लिए मलाड में एक फर्जी शिविर भी लगाया था.

मुंबई पुलिस को समता नगर में एक संदिग्ध फर्जी टीकाकरण शिविर के संबंध में एक और शिकायत मिली है, लेकिन मामले में प्राथमिकी दर्ज करने से पहले मुंबई के नागरिक निकाय से ब्योरे की पुष्टि कर रही है.

‘मुख्य आरोपी’

मुंबई पुलिस ने महेंद्र सिंह और मंगलवार को पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने वाले एक अन्य व्यक्ति डॉ. मनीष त्रिपाठी को मामले में मुख्य आरोपी के रूप में नामित किया है. पुलिस त्रिपाठी की तलाश कर रही थी क्योंकि जांच में उसके इस पूरे मामले में शामिल होने का पता चला था. उसने अपनी अग्रिम जमानत याचिका खारिज होने के बाद आत्मसमर्पण कर दिया. पिछले हफ्ते पुलिस की ओर से जारी एक बयान के मुताबिक, उसके दोनों बैंक खातों को फ्रीज कर दिया गया है.

मलाड मेडिकल एसोसिएशन के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि महेंद्र सिंह 17 साल से इस एसोसिएशन की प्रशासनिक विंग में काम कर रहा था, लेकिन लगभग दो महीने पहले ही उसने इसे छोड़ दिया है.

पदाधिकारी ने कहा, ‘वह उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर का रहने वाला है और बहुत मेहनती है. हम उसे जो काम सौंपते थे वह उसे पूरा करा देता था. हालांकि, कई बार उसके तौर-तरीकों पर संदेह होता था.’

उन्होंने कहा कि महेंद्र सिंह काम करवाने के लिए अपने संपर्कों के नेटवर्क का बखूबी इस्तेमाल करना जानता है. हालांकि, उसकी गतिविधियां सिर्फ इस एसोसिएशन के कामकाज तक ही सीमित नहीं थीं.

एसोसिएशन कर्मचारी ने कहा, ‘हमने उसे इस बारे में चेतावनी भी दी थी, क्योंकि वह किसी जगह पर मलाड मेडिकल एसोसिएशन के प्रतिनिधि के तौर पर (काम एसोसिएशन से जुड़ा नहीं था) ही पहुंचा था. फिर कुछ महीने बाद ऐसी ही एक घटना हुई और फिर उसने एसोसिएशन छोड़ दिया. मैंने सुना था कि वह टीकाकरण अभियान के आयोजन में शामिल था, लेकिन मुझे यह संदेह नहीं था कि कोई घोटाला होगा.’

त्रिपाठी एक नर्सिंग इंस्टीट्यूट केसीईपी प्राइवेट लिमिटेड चलाता है, जिसकी स्थापना उसने सितंबर 2020 में की थी, और बताया जाता है कि उसने टीकों के ट्रांसपोर्ट और उन्हें लगाने के काम में अपने कुछ छात्रों का ही इस्तेमाल किया था. मुंबई पुलिस के एक अधिकारी के अनुसार, त्रिपाठी पहले से ही महेंद्र सिंह को जानता था और उसने ही शिवम अस्पताल का भूतल परिसर किराये पर लिया था, जहां से संभवत: टीके की शीशियां आई थीं.

बीएमसी ने शिवम अस्पताल को 28 अप्रैल तक कोविड टीकाकरण के लिए एक निजी केंद्र के रूप में अधिकृत किया था. मुंबई पुलिस ने पिछले हफ्ते शिवराज और नीता पटारिया, जो दोनों डॉक्टर और शिवम अस्पताल के मालिक हैं, को घोटाले में संभावित संलिप्तता और फर्जी वैक्सीन खुराक की आपूर्ति मुहैया कराने के आरोप में गिरफ्तार किया था.

डीसीपी ठाकुर ने कहा, ‘हम महेंद्र सिंह, डॉ. त्रिपाठी के साथ-साथ पटारिया दंपत्ति के टीके की शीशियां हासिल करने में शामिल होने की जांच कर रहे हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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