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Sunday, 22 December, 2024
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2020 के अंत तक कोविड वैक्सीन आने की संभावना, लेकिन 2 साल का भी समय लग सकता है: अदार पूनावाला

ऑफ द कफ में एसएसआई के सीईओ अदार पूनावाला ने कहा है उनकी कंपनी ने भारत को कम से कम 50% कोविड वैक्सीन की डोज़ देने के लिए अपने पार्टनरों के साथ सौदा किया है.

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नई दिल्ली: दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीन निर्माता सेरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया (एसआईआई) के चीफ़ एग्जिकेटिव अदार पूनावाला का कहना है कि कोविड-19 की वैक्सीन को तैयार होने में कम से कम 2 साल का समय लगेगा. हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि कुछ इस साल के अंत तक तैयार हो सकती हैं.

दिप्रिंट के ऑफ़ द कफ़ के डिजिटल संस्करण में पूनावाला ने इसके प्रधान संपादक शेखर गुप्ता से कहा, ‘अगर हम वास्तविक समय जानना चाहते हैं तो मैं 2 साल कहूंगा…आशावादी होकर बात करें तो ये इस साल के अंत तक भी हो सकता है.’

पुणे स्थित एसआईआई वैश्विक स्तर पर सालाना 150 करोड़ वैक्सीन डोज़ का उत्पादन करती है. एसआईआई तीन ऐसे वैक्सीन कैंडिडेट्स पर काम कर रही है जो यूनाइटेड किंग्डम की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, अमेरिका के कोडेजेनिक्स और ऑस्ट्रेलिया की बायोटेक फर्म थेमिस द्वारा विकसित की गई हैं.


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इनमें से अगर ब्रिटिश फॉर्मा दिग्गज अस्ट्राजेनिका के साथ मिलकर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा बनाई जा रही ट्रायल स्टेज वाली वैक्सीन सफल होती है तो ये इस साल के अंत तक आने वाली पहली वैक्सीन बन जाएगी. पूनावाला ने कहा, ‘ज़्यादातर वैक्सीन कम से कम 2 साल दूर हैं. हालांकि, यूएस की मॉडेर्ना और यूके का ऑक्सफोर्ड इस रेस में आगे चल रहे हैं.’

उन्होंने भरोसा दिलाया कि वैक्सीन की कीमत इतनी ज़्यादा नहीं होगी कि इसकी पहुंच लोगों तक न हो. उन्होंने कहा, ‘ये कोविड-19 के ख़िलाफ़ एक रेस है. मुझे नहीं पता कि हम इससे फ़ायदा कमाने जा रहे हैं या नहीं या हम इसमें जो निवेश करेंगे वो भी वापस मिलेगा या नहीं क्योंकि हर कंपनी इसे साधारण कीमत पर बेचेगी.’

उन्होंने कहा, ‘कम से कम हमारे लिए कोविड-19 फ़ायदा कामने का मौका नहीं है. ये इसे विकसित करने वालों पर निर्भर करेगा कि वो इसके रॉयलिटी प्राइस को लेकर कैसा कायदा-कानून बनाते हैं जिससे की इसकी कीमत तय होगी.’

हालांकि, पूनावाला ने कहा कि उन्हें नहीं लगता ‘किसी नागरिक को कभी इसके लिए पैसे देने पड़ेंगे क्योंकि सरकार और इंश्योरेंस कपंनियों को ये काम करना पड़ेगा.’ एसआईआई के मालिक ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि कंपनी ने अपने पार्टनरों के साथ ये डील की है कि कम से कम 50 प्रतिशत डोज़ भारत में मुहैया कराई जाएगी.
उन्होंने कहा, ‘अगर मैं अपने देश को कुल उत्पादन का आधा भी नहीं दे सकता तो माफ़ कीजिएगा, मैं आपके साथ पार्टनरशिप नहीं कर सकता.’

‘ऑक्सफोर्ड के वैक्सीन कैंडिडेट के सफ़ल होने की 80 प्रतिशत तक उम्मीद’

जिन वैक्सीन के सफ़ल होने की उम्मीद है उन्हें लेकर पूनावाला का मानना है कि ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन से सबसे ज़्यादा उम्मीदें हैं और ये ट्रायल में सबसे आगे है.

पिछले महीने अस्ट्राजेनिका और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने पार्टनरशिप की घोषणा की. पार्टनरशिप के तहत सार्स-कोव-2 से होने वाली बीमारी कोविड-19 को रोकने के लिए यूनिवर्सिटी द्वारा तैयार की जा रही संभावित पुनः संयोजक एडेनोवायरस वैक्सीन का वैश्विक विकास और वितरण किया जाना है.

पूनावाला ने कहा, ‘वो (ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी वाले) अभी तक ट्रायल के मामले में आगे हैं और अक्टूबर तक रफ्तार बनाने के लिए हम जोखिम उठाकर कुछ डोज़ बनाने के लिए तैयार हैं. उम्मीद है कि अगर वैक्सीन सुरक्षित और असरदार साबित होती है तो साल के अंत तक हमारे पास एक कारगर वैक्सीन होगी.’


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उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों की टीम को लगता है कि इस वैक्सीन की सफ़लता के 80 प्रतिशत चांस हैं. हालांकि, इस हफ्ते जानवरों पर किए गए ट्रायल में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन उन बंदरों को बचाने में असफल रही जिन्हें वैक्सीन लगाया गया था. हालांकि, वैक्सीन निमोनिया से बचाने में सफ़ल रही. मॉडेर्ना की वैक्सीन ने असर दिखाया है.

इन नतीजों को लेकर पूनावाला ने कहा, ‘हमें इन ट्रायल के आंतरिक नतीजों से न तो उत्सुक न ही हतोत्साहित होने की ज़रूरत है.’ उन्होंने कहा, ‘अभी ये कहना मुश्किल है कि कोविड के मामले में कौन सी वैक्सीन आगे है. अगले 3 महीनों तक वैक्सीन से जुड़ी उठा-पटक को अनदेखा किया जाना चाहिए क्योंकि तीसरे फ़ेज़ का ट्रायल पूरा नहीं होने तक इसके असर को लेकर कुछ साफ़ नहीं कहा जा सकता.’

ऑक्सफोर्ड के वैक्सीन कैंडिडेट का बचाव करते हुए उन्होंने कहा, ‘ऑक्सफोर्ड के टेस्ट में अगर बंदरों में एंटी बॉडी नहीं बना तो इसका मतलब ये नहीं कि वैक्सीन को लाइसेंस नहीं मिलेगा. अगर ये निमोनिया रोक सकता है, सांस से जुड़ी बीमारी को संभाल सकता है और जान बचाने में सफ़ल है तो इसे रेग्युलेट करके इसे लाइसेंस दिया जा सकता है. मुझे नहीं लगता कि कोई वैक्सीन 100 प्रतिशत सुरक्षा प्रदान करती है.’

हालांकि, परीक्षण के जो परिणाम आए उसकी वजह से एसआईआई को लाखों की संख्या में वैक्सीन के उत्पादन की तैयारी को रोकना पड़ा क्योंकि इन्हें सकारात्मक नतीज़ों की उम्मीद थी.

उन्होंने कहा, ‘सभी ट्रायल को ध्यान में रखते हुए मुझे थोड़ा सावधान रहने की सलाह दी गई है ताकि सतर्क रहते हुए शुरुआत में मेरी योजना के उलट 100 मिलियन के बजाय कुछ मिलियन डोज़ ही तैयार की जाएं.’

इस बीच वो अभी भी तेज़ी से उत्पादन के लिए तैयार हैं लेकिन ये इस बात पर निर्भर करेगा कि ‘क्लीनिकल ट्रायल में डेटा आधारित उत्साहजनक नतीजे मिलें.’ उन्होंने कहा, ‘एक बार डेटा आ जाए तो हम तुरंत उत्पादन में तेज़ी ला सकते हैं.’

वैक्सीन के वितरण को लेकर कंपनी अस्ट्राजेनिका के साथ बातचीत कर रही है. अस्ट्राजेनिका की ‘वैश्विक पहुंच बहुत अच्छी’ है जिसके ज़रिए ज़रूरत पड़ने पर ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन का बाज़ारीकरण किया जा सकता है. उन्होंने कहा, ‘अभी मैं खुुलासा नहीं कर सकता लेकिन हम अन्य कंपनियों से भी इस बारे में बात कर रहे हैं.’

सबकी कोविड टेस्टिंग होनी चाहिए: पूनावाला

केंद्र और राज्य सरकारों से आग्रह करते हुए उन्होंने कहा कि बिना लक्षण वाले व्यक्तियों की भी टेस्टिंग की जाए. उन्होंने कहा, ‘हम अभी फैसला लेना चाहिए और हर उस व्यक्ति का टेस्ट कराना चाहिए जो टेस्ट कराना चाहता हो. मैं सरकार से ज़्यादा टेस्ट कराने को लेकर अनुरोध करता रहा हूं लेकिन बिना लक्षण के वो टेस्ट नहीं करते.’

अप्रैल में एसआईआई ने पुणे स्थित मॉलिक्युलर डायग्नोस्टिक कंपनी मायलैब डिस्कवरी सॉल्यूशंस के साथ पार्टनरशिप की. ये पहली कंपनी है जिसके आरटी-पीसीआर टेस्टिंग किट को इंडियन काउंसिल फ़ॉर मेडिकल रिसर्च ने हरी झंडी दी है. इस पार्टनरशिप के तहत एसआईआई हर रोज़ दो लाख़ किट तैयार कर रही है.


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पूनावाला ने कहा कि कई उद्योगपतियों ने ‘मुझे फ़ोन किया और पूछा कि क्या वो अपने सभी कर्मचारियों को टेस्ट करके अपने व्यापार और उत्पादन केंद्र को शुरू कर सकते हैं.’

उन्होंने चेतावनी दी टेस्टिंग में ढुलमुल रवैये से परेशानी और बढ़ेगी. उन्होंने कहा, ‘मां अपने बच्चों को टीका लगवाने नहीं ले जा पा रही हैं. टेस्टिंग को बेहतर बनाने का फ़ायदा ये होगा कि हम अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर ला सकते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता कुछ सालों के बाद ही आएगी. ऐसी उम्मीद मत कीजिए कि ये 6 महीने में आ जाएगी. अलग-अलग जगहों औपर समुदायों में बीमारी फ़ैलने में लंबा समय लगता है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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