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Sunday, 29 September, 2024
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कोविड एक युद्ध है, इसमें मरने वाले वाले पुलिसकर्मियों को शहीद का दर्जा मिले: कर्नाटक डीजीपी

एक ख़ास बातचीत में कर्नाटक के डीजीपी प्रवीण सूद दिप्रिंट से कहा कि कोविड-19 वैश्विक महामारी ने पुलिस को वो रोल निभाते देखा है, जिसकी ‘उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी’.

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बेंगलुरू: कर्नाटक के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) प्रवीण सूद का मानना है कि कोविड-19 की ड्यूटी में मरने वाले पुलिसकर्मियों को शहीद का दर्जा मिलना चाहिए.

दिप्रिंट से बात करते हुए सूद इस सवाल का जवाब दे रहे थे कि महाराष्ट्र सरकार ने कोविड-19 ड्यूटी पर रहते हुए, संक्रमण का शिकार होकर मरने वाले पुलिसकर्मियों के लिए इमरजेंसी सर्विस मेडल्स देने का फैसला किया है.

उन्होंने कहा, ‘अपने कर्तव्यों को अंजाम देते हुए, वो अपनी जान दांव पर लगा देते हैं. ये किसी लड़ाई से कम नहीं है, लेकिन ये लड़ाई बड़ी और अलग तरह की है. मैं महाराष्ट्र के साथ पूरी तरह सहमत हूं…कि जिन्होंने अपने कर्तव्यों को निभाते हुए अपनी जान गंवा दी, उन्हें शहीद का दर्जा मिलना चाहिए.’ उन्होंने आगे कहा, ‘ये शहादत से कम नहीं है.’

अपने काम के स्वभाव के अनुरूप पुलिस ने कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान ख़ासकर केंद्र सरकार की ओर से घोषित अभूतपूर्व लॉकडाउन को लागू करने में एक अहम रोल अदा किया है.

21 जून तक कर्नाटक में 132 पुलिसकर्मी केविड-19 से संक्रमित हो चुके थे और कम से कम तीन मौतें दर्ज हो चुकीं थीं. कोरोनावायरस से सबसे बुरी तरह प्रभावित सूबे महाराष्ट्र में, कोरोना पीड़ित पुलिसकर्मियों की संख्या 4,103 है और 48 मौतें हो चुकी हैं.


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सूद ने कहा, ‘दुख के साथ कहना पड़ता है कि आज तक हमारे तीन बहादुर पुलिसकर्मी वायरस की भेंट चढ़ चुके हैं. लेकिन इसकी वजह से किसी ने अपना काम नहीं छोड़ा है और अपने परिवार को घर पर छोड़कर, रात दिन लोगों की सेवा में लगे हैं. उन्होंने आगे कहा, ‘पुलिस की ओर से, अपने लोगों की जान जोखिम में डालकर, हम उम्मीद कर रहे हैं कि आप सब लोग सुरक्षित रहेंगे.’

‘दूसरी लड़ाईयों से उलट’

सूद ने कहा कि कोरोनावायरस के खिलाफ लड़ाई दूसरी ‘लड़ाईयों के उलट’ है. उन्होंने आगे कहा कि इसके निशाने पर एक अनजान दुश्मन है. ड्यूटी पर लगे लोगों को ये पता नहीं होता कि वो कब और कहां संक्रमित हो जाएंगे. फिर भी पुलिसकर्मी बिना थके हुए काम कर रहे हैं, ये सुनिश्चित करने के लिए कि लोग घर पर रहें और सुरक्षित रहें.

उन्होंने कहा, ‘मेडिकल ऑफिसर्स और कोविड योद्धाओं के साथ-साथ, हमारे पुलिसकर्मी भी बेहद असुरक्षित हैं, क्योंकि लोगों की सुरक्षा, और क़ानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए या तो वो ऐसी जगह तैनात होते हैं या भेजे जाते हैं, जो संक्रमित हो सकती है.’

सूद ने शिवमोगा की मिसाल दी और कहा कि वहां रेप की एक कथित आरोपी की मदद करते हुए कई पुलिसकर्मी संक्रमित हो गए थे.

सूद ने कहा कि महिला को बचाने के बाद उस प्रयास की अगुवाई कर रहे पुलिस अधिकारी उसे अपनी जीप में नज़दीकी अस्पताल ले गया. कुछ दिन के बाद, पीड़िता कोविड-19 पॉजिटिव निकल आई.

सूद ने आगे कहा, ‘पुलिस अधीक्षक से लेकर सिपाही तक, हमें हर पुलिसकर्मी को टेस्ट के लिए भेजना पड़ा, उन्हें क्वारेंटीन में रखा और उनके बदले में दूसरों को भेजना पड़ा.’

पुलिसकर्मियों के बीच कोविड-19 को लेकर उस समय दहशत फैल गई, जब 19 अप्रैल को बेंगलुरू के पदारायणपुरा इलाके से एक घटना की ख़बर आई, जिसे कोविड हॉटस्पॉट घोषित किया जा चुका था.

इलाक़े में कथित तौर पर एक भीड़ तोड़फोड़ पर उतर आई और कुछ स्वास्थ्यकर्मियों को खदेड़कर भगा दिया, जो कोविड-19 के शिकार हुए एक मृतक के सम्पर्क को  करने क्वारेंटीन आए थे. संपर्को ने स्वास्थ्यकर्मियों के साथ क्वारेंटीन सेंटर्स जाने से मना कर दिया था और स्थिति को क़ाबू करने के लिए पुलिस को बुलाना पड़ा था.

बाद में हंगामे के लिए गिरफ्तार 120 लोगों में से दो के टेस्ट पॉज़िटिव पाए गए, जिसने पूरे पुलिस महकमे को चकरा दिया. लेकिन 100 से अधिक पुलिसकर्मी, जिन्होंने कथित उपद्रवियों को पकड़ने में सहायता की थी. आख़िर में टेस्ट में निगेटिव पाए गए.

सूद ने कहा कि एहतियात के तौर पर, 50 वर्ष से अधिक उम्र के सभी पुलिसकर्मियों को छुट्टी पर जाने के लिए कहा गया है, क्योंकि वो असुरक्षित वर्ग में आते हैं.

उन्हें ये भी कहा, ‘मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने भी ऐसे पुलिसकर्मियों के लिए 55 लाख रुपए मुआवज़ा देने का ऐलान किया है, जो अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए कोविड-19 इनफेक्शन की भेंट चढ़ गए.’

नई भूमिका

सूद के अनुसार, कोविड-19 महामारी के दौरान पुलिस को ऐसी भूमिका में देखा गया है, जिसकी ‘उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी.’

उन्होंने कहा, ‘हमने कभी सोचा भी नहीं था कि हम ऐसे मामलों में भी शामिल होंगे, जिनका पुलिसिंग से कोई संबंध नहीं था. हम सीएम, मुख्य सचिव, और अन्य स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ निर्णय लेने की प्रक्रिया का हिस्सा थे.’

उन्होंने आगे बताया कि, ‘हमारे रैपिड रेस्पॉन्स वेहिकल्स, जिन्हें होयसालाज़ भी कहा जाता है, ग़ैर-कोविड मरीज़ों को अस्पताल पहुंचाने के लिए एम्ब्युलेंस में तब्दील कर दिए गए, जिन्हें इलाज की ज़रूरत थी. हमारे पुलिस थाने फूड सेंटर्स बन गए, जहां ग़रीबों और भूखों को लाखों फूड पैक्ट्स बांटे गए और फिर जब (प्रवासी मज़दूरों को ले जाने के लिए) श्रमिक ट्रेन्स शुरू हुईं, तो ये थाने रेलवे बुकिंग काउंटर्स बन गए.’ उन्होंने आगे कहा कि हमारे लोगों में हमदर्दी थी और वो मुसीबत में फंसे लोगों की मदद करते थे.’

‘उल्लंघन रोकने के लिए कड़ी कार्रवाई की ज़रूरत’

माना जा रहा है कि कोविड-19 नियंत्रण के प्रयासों में कर्नाटक ख़ासकर राजधानी बेंगलुरू दूसरे राज्यों के मुक़ाबले बहुत बेहतर कर रहा है. सोमवार तक राज्य में कोरोनावायरस के 9,157 मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें से 5,600 ठीक हो गए हैं. सोमवार तक एक्टिव मामलों की संख्या 3,395, और मौतों की संख्या 137 दर्ज हो चुकी थी.

लेकिन, लॉकडाउन के दौरान इसकी कथित ज़्यादतियों को लेकर पुलिस के रोल की आलोचना भी हुई है. मार्च के आख़िर में लॉकडाउन के शुरूआती दिनों में बेंगलुरू के संजय नगर में एक आदमी पर उस समय गोली चलाई गई, जब पुलिस की गिरफ्त से भागने की कोशिश में, उसने कथित रूप से एक पुलिसकर्मी पर बुरी तरह हमला कर दिया. कहा जाता है कि लॉकडाउन के पहले दिन, कथित रूप से पुलिस पर हमला करने पर उसे एक और आदमी के साथ गिरफ्तार किया गया था.

पुलिस के अनुसार, उन्होंने दोनों को उस वक़्त पकड़ने की कोशिश की, जब वो अपनी बाइक्स पर व्हीलीज़ करते हुए, बैरिकेड्स से बच निकलना चाह रहे थे. उन्हें भूपासांद्रा इलाक़े में एक चेकनाके को तोड़ते हुए देखा गया और जब पुलिस ने उनका पीछे करने की कोशिश की, तो वो पुलिस पर पत्थर और ईंटें फेंकने लगे. पुलिस ने कहा कि पकड़े जाने के बाद, जब उन्होंने भागने की कोशिश की, तो उनमें से एक की टांग पर गोली चला दी गई.

यशवंतपुर में स्क्रीन करते समय एक और आदमी ने कथित रूप से ये कहकर घबराहट फैलाने की कोशिश की कि वो वहां मौजूद सभी पुलिसकर्मियों और दूसरे लोगों को छूकर बीमारी फैला देगा. काफी देर विरोध करने के बाद, अंत में उसे गिरफ्तार कर लिया गया.

27 अप्रैल को, पुलिस ने बेलागवि में सीआरपीएफ कमांडो सचिन सावंत की उस समय खिंचाई की, जब वो सार्वजनिक जगह पर मास्क न पहनकर लॉकडाउन के नियम तोड़ रहे थे.

इन ख़बरों के बाद काफी रोष हुआ कि सावंत की पिटाई की गई. पब्लिक के बीच घुमाया गया और बाद में लोकल पुलिस स्टेशन में, उसे चेन से बांधकर रखा गया.


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लेकिन बेलागवि के पुलिस अधीक्षक ने, ये कहकर गिरफ्तारी का बचाव किया कि सावंत ने एक पुलिसकर्मी के पेट में लात मारी थी. बाद में स्थानीय लोगों द्वारा बनाए गए वीडियो में, इस दावे की पुष्टि हो गई.

सूद ने माना कि पुलिस ने कभी-कभी बल का प्रयोग किया, लेकिन ये भी कहा कि बहुत सी जगहों पर लोगों ने, लॉकडाउन को तोड़ने की कोशिश की. उन्होंने कहा कि अगर पुलिस उल्लंघन करने वालों के साथ कड़ाई से पेश नहीं आती, तो राज्य में वायरस का संक्रमण और तेज़ी से फैल सकता था.

सूद ने आगे कहा कि बहुत बार लोग पुलिस के बारे में कुछ ज़्यादा ही कठोर राय बना लेते हैं. डीजीपी ने कहा कि बल को, बहुत ही सख़्त प्रदेश लॉकडाउन को लागू करने से लेकर कोविड-19 के प्राइमरी और सेकंडरी सम्पर्कों तक पहुंचने, तबलीग़ी जमात के सदस्यों का टेस्ट व क्वारेंटीन कराने और प्रवासी मज़दूरों के सकुशल घर वापसी सुनिश्चित करने तक, हर क़दम पर विरोध का सामना करना पड़ा.

लेकिन, उन्होंने आगे कहा, ‘उस सबसे अच्छे से निपटा गया और पुलिस के प्रति लोगों का नज़रिया अब बदल गया है.’

उन्होंने कहा, ‘5 मई को, जब हम तुलना कर रहे थे कि दूसरे राज्यों की अपेक्षा हमने लॉकडाउन को कैसे लागू किया, तो पॉज़िटिव मामलों और क्वांरीन से गुज़र रहे लोगों के आंकड़ों से पता चला, कि हमारी कड़ी कार्रवाई से वायरस को क़ाबू करने में कितनी सहायता मिली.’

‘कर्नाटक की कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग को बहुत श्रेय दिया गया है, उसमें भी पुलिस का अपना एक रोल है. हर मौक़े पर हमें विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन अंत में लगता है कि लोग समझ रहे हैं कि पुलिस उनके साथ सख़्ती क्यों बरत रही थी.’

कर्नाटक की सफलता का राज़

पांच टी के एक मंत्र– ट्रेसिंग, टेस्टिंग, ट्रैकिंग, ट्रीटमेंट और टेक्नोल़जी- को कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में कर्नाटक की जीत का श्रेय दिया गया है. लेकिन सूद ने कहा कि एक टी और भी थी- तबलीग़ी जमात.

दिल्ली के निज़ामुद्दीन में स्थित एक इस्लामी मिशनरी संस्था तबलीग़ी जमात का संबंध भारत में कोविड-19 मामलों में आई शुरूआती उछाल से जोड़ा गया, जब उन्होंने मध्य मार्च में कुछ दिन पहले ही दिल्ली सरकार से जारी सोशल डिस्टेंसिंग गाइडलाइन्स को धता बताते हुए अपना सालाना जलसा आयोजित कर लिया.

सूद ने कहा, ‘हमने जिस तरह तबलीग़ी जमात के मुद्दे को हैण्डल किया, वो दूसरे राज्यों से अलग रहा है.’

डीजीपी ने दावा किया कि तबलीग़ी घटना के सामने आते ही, उन्हें एक ‘क्लासिफाइड जानकारी’ मिली, जिसमें जलसे में शिरकत करने वाले 1300 लोगों की शिनाख़्त की गई थी.

सूद के अनुसार उन्होंने एक सीधा तरीक़ा अपनाया. उन्होंने रात में ही ज़िलों के अधिकारियों को उन लोगों के नाम, फोन नम्बर और पतों की सूची भेज दी. उन्होंने बताया कि ’24 घंटे के अंदर’ उन्होंने केवल कर्नाटक में 807 सदस्यों को ट्रेस कर लिया था.

उन्होंने बताया कि बाक़ी लोग अगले दिन तक दूसरे राज्यों में ट्रेस कर लिए गए और संबंधित पुलिस प्रमुखों को उन्हें क्वारेंटीन में भेजने के लिए कह दिया गया.

सूद ने आगे कहा, ’57 लोग विदेशी थे और 750 कर्नाटक वासी थे जो मरकज़ जाकर लौटे थे. 500 लोग जो ग़ायब थे, उन्हें ट्रेस करने के लिए हमने टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया और दूसरे राज्यों में उनका पता निकालकर सुनिश्चित किया उनका वहीं पर क्वारेंटीन हो जाए.’

‘मैं कहूंगा कि 48 घंटे के भीतर कर्नाटक के वो 100 प्रतिशत मेम्बर्स, जो तबलीग़ी जमात के जलसे में शरीक हुए थे, क्वारेंटीन सेंटर्स पहुंचा दिए गए.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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