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Thursday, 9 May, 2024
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एचएएल में कोविड से घटे अतिरिक्त पुर्ज़ों के उत्पादन के कारण सीमित संख्या में चीता चॉपर्स उड़ाएंगी सशस्त्र सेनाएं

एचएएल ने पुराने हो रहे चीता हेलिकॉप्टरों के पुर्ज़ों का उत्पादन घटा दिया है, और बलों से कह दिया गया है, कि ये कमी तीन महीने तक रह सकती है.

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नई दिल्ली: कोविड-19 वैश्विक महामारी और उससे उपजे लॉकडाउन ने सरकारी उपक्रम हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) में पुर्ज़ों के उत्पादन को प्रभावित किया है, जिसके कारण सशस्त्र दलों ने पुराने हो रहे चीता हेलिकॉप्टर्स की उड़ान के घंटे कम कर दिए हैं और उनका इस्तेमाल सिर्फ ज़रूरी रख-रखाव और कामकाज की ज़रूरतों के लिए कर रही है.

रक्षा सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि कोविड संकट के चलते, एचएएल ने पुराने हो रहे चीता हेलिकॉप्टर्स के पुर्ज़ों का उत्पादन कम दिया है और बलों से कह दिया गया है कि ये कमी तीन महीने तक रह सकती है.

चीता एक सिंगिल-इंजिन यूटिलिटी हेलिकॉप्टर है, जिसे थल सेना और वायु सेना दोनों में इस्तेमाल किया जाता है.

सेना के एक सीनियर अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘फॉरमेशंस को बता दिया गया है कि स्पेयर्स की कमी से उनके ऑपरेशन के क्षेत्र में चीता चॉपर्स के बेड़े की उपयोगिता पर असर पड़ सकता है.’

चीता के कम इस्तेमाल के बारे में बात करते हुए, एक सीनियर ऑफिसर ने कहा कि सियाचिन और उत्तर व उत्तर-पूर्व के अग्रिम ठिकानों जैसी जगहों को तरजीह दी जाएगी, जिन्हें बनाए रखने के लिए लगातार हवाई प्रयास ज़रूरी होता है.

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सूत्रों ने कहा कि स्पेयर्स सप्लाई और ओवरहॉल की चुनौती सामने आ जाने से, फ्लाइट सेफ्टी प्रभावित हो सकती है.

सेना के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि इस क़दम से ऑपरेशनल फ्लाइंग पर किसी भी तरह का असर नहीं पड़ा है. सेना के एक टॉप अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारे पास पर्याप्त स्पेयर्स हैं जो सभी तरह के ऑपरेशंस का ध्यान रख सकते हैं.’

दिप्रिंट ने टिप्पणी के लिए एयरफोर्स से भी संपर्क किया, लेकिन इस ख़बर के छपने तक, उनका कोई जवाब नहीं मिला था.

एचएएल के प्रवक्ता गोपाल सुतर ने दिप्रिंट को बताया कि महामारी की वजह से कंपनी सप्लाई चेन की चुनौतियों से जूझ रही है, लेकिन सशस्त्र बलों को बिना बाधित हुए इसकी सहायता जारी है, जिसमें चीता हेलिकॉप्टर्स शामिल हैं.

उन्होंने कहा, ‘एचएएल की तरफ से, ख़ासकर इस प्लेटफॉर्म (चीता) को लेकर, अभी तक काम प्रभावित नहीं हुआ है, चूंकि इस प्लेटफॉर्म पर काम कर रही एचएएल टीमें अपने पूरे प्रयास कर रही हैं. अभी तक हमारी टीमों ने किसी मामले में चिंता नहीं जताई है.’

उन्होंने कहा, ‘प्लीज़ इस बात को नोट कीजिए कि पुराने पड़ गए प्लेटफॉर्म के बावजूद एचएएल चीता और चेतक को पूरी सपोर्ट दे रहा है. पुराना पड़ जाने की दिक़्क़तों की वजह से स्पेयर्स की सप्लाई में चुनौतियां हैं. लेकिन उन समस्याओं से निपटा जा रहा है, हालांकि महामारी की वजह से सप्लाई चेन अभी भी प्रभावित चल रही है.’

‘रूटीन सॉमरिक उड़ानें व ट्रेनिंग प्रभावित रहेंगी’

ऊपर हवाला दिए गए सर्विंग ऑफिसर ने कहा कि ऊंची जगहों पर आकस्मिक निकासी को भी ऊंची प्राथमिकता दी जाएगी. उनका कहना था, ‘रूटीन सामरिक उड़ानें, सीनियर ऑफिसर्स के दौरे और हेलिकॉप्टर्स पर ट्रेनिंग, फिलहाल के लिए कम कर दी जाएंगी, जब तक कि स्पेयर्स की सप्लाई बहाल नहीं हो जाती.’

एक दूसरे अधिकारी ने कहा कि इस डेवलपमेंट की वजह से बेहद ऊंची जगहों पर, जहां सबसे अधिक ज़रूरत होती है, चीता चॉपर का संयुक्त इस्तेमाल हो सकता है.

ऑफिसर ने कहा कि जिन क्षेत्रों में चीता चॉपर्स का इस्तेमाल ऑपरेशनल तौर पर आवश्यक नहीं है, वहां एडवांस्ड लाइट हेलिकॉप्टर्स जैसे दूसरे विकल्प इस्तेमाल किए जा सकते हैं.

चीता हेलिकॉप्टर्स

चीता हेलिकॉप्टर्स को सबसे पहले 1976 में सेवा में लिया गया था. समय के साथ एचएएल, विदेशी कंपनियों के साथ टेक्नोलॉजी ट्रांसफर समझौते करके, इनका निर्माण करती आ रही है.

ये हेलिकॉप्टर्स उन जगहों में इस्तेमाल के लिए बनाए गए हैं, जहां वज़न, गुरुत्वाकक्षण केंद्र और ऊंचाई में बहुत अंतर होता है. ये मल्टी-रोल और बेहद फुर्तीले होते हैं, और एचएएल की वेबसाइट के मुताबिक़, सभी श्रेणियों के हेलिकॉप्टर्स के बीच, इनका बहुत ऊंचाई पर उड़ने का विश्व रिकॉर्ड है.

इस हेलिकॉप्टर में आर्टूस्ट-111-बी टर्बो शाफ्ट इंजिन लगा है, जो आवाजाही, पर्यवेक्षण, निगरानी, साज़ो-सामान की सपोर्ट, बचाव कार्यों, और हाई-ऑल्टीट्यूड मिशंस के लिए उपयुक्त होता है.

एचएएल अभी तक 275 से अधिक चीता चॉपर्स बना चुकी है. चीता के लिए एक अधिक शक्तिशाली इंजिन ‘शक्ति’ बनाने के लिए, एचएएल ने फ्रांस की टर्बोमेका के साथ भी सहयोग किया है, जिसे हाई-ऑल्टीट्यूड में इस्तेमाल के लिए, चीता के वेरिएंट ‘चीतल’ में लगाया जाएगा.

सिंगिल इंजिन वाले लाइट यूटिलिटी हेलिकॉप्टर के मुक़ाबले, जिनकी बॉडी भारी-भरकम होती है, चीता पतले होते हैं और इनमें लैण्डिंग गियर की जगह स्कीज़ होती हैं. चीता में बैठने की क्षमता भी कम होती है, और ये छोटे से छोटे हैलिपैड पर भी उतर सकते हैं.

वायु सेना चीता और चेतक को, तलाश और बचाव अभियानों, आकस्मिक बचाव और रूट ट्रांसपोर्ट रोल के लिए, रीढ़ मानती है.

अपेक्षा है कि सेना और एयरफोर्स चेतक और चीता की जगह 200 लाइट यूटिलिटी हेलिकॉप्टर्स (एलयूएच) ख़रीद सकती है. एचएएल में विकसित एलयूएच को इस साल फरवरी में शुरूआती ऑपरेशनल क्लियरेंस मिल गया है.

मई में एक इंटरव्यू में, एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया ने कहा था कि एलयूएच प्रोग्राम अब पूरा हो गया है. लेकिन इसे अभी हाई- ऑल्टीट्यूड ऑपरेशन की कुछ ज़रूरतें दर्शानी हैं और फ्लाइंग क्वालिटी से जुड़े कुछ मसले हल करने हैं.

भारत ने रूस से भी एक समझौता किया है, जिसके तहत एचएएल और रशियन हेलिकॉप्टर्स के बीच संयुक्त उद्यम से, 200 लाइट यूटिलिटी चॉपर्स कामोव-226 निर्मित किए जाएंगे. लेकिन इस पर अभी रक्षा मंत्रालय में काम चल रहा है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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