नई दिल्ली: विभिन्न आरोपों में जेल की सजा काट रहे प्रदर्शनकारी छात्रों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को रिहा करने के लिए अमनेस्टी इंटरनेशनल, ह्यूमन राइट्स वाच सहित करीब 25 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने गृह मंत्री अमित शाह को खुला पत्र लिखा है. इस पत्र में संस्थाओं ने इस छात्र-छात्राओं और प्रदर्शनकारियों को तत्काल रिहा करने की मांग की है.
जिन छात्र-छात्राओं को हिरासत में लिया गया है उनपर नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ प्रदर्शन और भीड़ को भड़काने का आरोप है. और ये सभी कोरोना संक्रमण के खतरे के बीच गिरफ्तार किए गए हैं. बता दें कि इन चार छात्र कार्यकर्ताओं में सफूरा जर्गर, मीरान हैदर और शिफा-उर-रहमान और शरजील इमाम शामिल हैं. इनपर यूएपीए (कानूनी गितिविधियां रोकथाम अधिनियम) के आरोप लगे हैं. इन छात्रों में सबसे ज्यादा चिंता इन संस्थाओं को सफूरा ज़र्गर के स्ववास्थ्य को लेकर है. सफूरा चार महीने की गर्भवति हैं.
अमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपने ओपन लेटर में लिखा है, ‘हमारा मानना है कि उनकी हिरासत निराधार है और इसका उद्देश्य उन्हें मानवाधिकारों की रक्षा करने और पक्षपाती कानून के खिलाफ शांतिपूर्ण रूप से विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए दंडित करना है.’
क्या लिखा है
गृहमंत्री को लिखे इस खत में संस्थान ने इस बात पर ध्यान उजागर किया है कि उस दौरान देश में कोविड-19 महामारी चल रही है, इस दौरान उन्हें जेल में रखे जाने से, उनके जीवन और स्वास्थ्य के लिए गंभीर ख़तरा पैदा हो गया है. हम आपसे, इन सभी चार कार्यकर्ताओं के साथ साथ उन सभी व्यक्तियों को तत्काल और बिना शर्त के रिहा करने का आग्रह करते हैं. जिन्हें केवल मानवाधिकारों की रक्षा करने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण रूप से सम्मिलित होने के अपने अधिकार का उपयोग करने के लिए हिरासत में रखा गया है, या आरोपी बनाया गया है या अभिशंसित किया गया है.
यही नहीं संगठनों ने यह भी कहा है कि उनका मानना है, ‘प्रदर्शनकारी छात्र मानव अधिकारों के लिए शांतिपूर्ण प्रदर्शन में शामिल थे, इस तरह नज़रबंद करना संविधान के खिलाफ है.’
सफूरा ज़र्गर, मीरान हैदर और शिफ़ा-उर-रहमान को दिल्ली पुलिस ने क्रमश 10 अप्रैल, 1 अप्रैल और 24 अप्रैल को, खबरों के अनुसार, प्रदर्शनों में उनकी कथित भूमिका के संबंध में, दंगा करने और गैर-कानूनी रूप से सम्मिलित होने के आरोप में गिरफ्तार किया था. नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) धर्म के आधार पर भेदभाव को वैधता प्रदान करता है और भारत के संविधान और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून का उल्लंघन करता है.
छात्र कार्यकर्ता शरजील इमाम को जनवरी 2020 में सीएए विरोध प्रदर्शनों के दौरान उनके भाषण के लिए देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. यूएपीए के तहत अतिरिक्त आरोप अप्रैल 2020 में लाए गए थे. इन सभी को फिलहाल मुकदमा शुरू होने के पहली की (पूर्व परीक्षण) हिरासत में रखा गया है.
ओपन लेटर में इन संस्थानों ने भीमा कोरेगांव मामले में 14 अप्रैल 2020 को, अदालत के आदेश पर आत्मसमर्पण करने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की ओर भी ध्यान आकर्षित किया है. यूएपीए के तहत मानवाधिकार कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बडे और गौतम नवलखा को महाराष्ट्र राज्य के भीमा कोरेगांव में 2018 के प्रदर्शन के दौरान कथित रूप से जाति-आधारित हिंसा भड़काने के आरोप में हिरासत में लिया.
इसी मामले के संबंध में 2018 के बाद से नौ अन्य कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया है. उन्हें आदिवासी और दलित समुदायों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए जाना जाता है और उन सभी को तुरंत रिहा किया जाना चाहिए.
यह भी पढ़ें: सीएए विरोधी भड़काऊ भाषण पर देशद्रोह का मामला, एससी का शरजील इमाम की याचिका पर 4 राज्यों को नोटिस
संस्थाओं ने दिया संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार का हवाला
बता दें कि खत में संस्थाओं ने संयुक्त राष्ट्र और देश की जेलों से पेरोल और अन्य कानूनों के तहत रिहा किए गए लोगों का हवाला दिया है. 25 मार्च 2020 को, संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कोविड-19 महामारी के चलते, सभी राज्यों से ‘राजनैतिक बंधकों और अपने आलोचनात्मक, असहमतिपूर्ण विचारों के लिए हिरासत में लिए गए व्यक्तियों सहित, पर्याप्त कानूनी आधार के बिना हिरासत में लिए गए सभी लोगों को’ रिहा करने का आग्रह किया.
महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और कर्नाटक सहित, पूरे भारत में कम से कम 200 जेल कैदियों और जेल कर्मचारियों को कोविड-19 संक्रमण होने की पुष्टि होने के बावजूद, शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों सहित, कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार रक्षकों को हिरासत में रखने के लिए कठोर क़ानूनों के दुरुपयोग के ज़रिये, प्रशासन उन्हें सिर्फ प्रताड़ित ही नहीं कर रहा है, बल्कि अनावश्यक रूप से उनके जीवन को गंभीर जोखिम में भी डाल रहा हैं.
इसके अलावा, सफूरा ज़र्गर की गर्भावस्था, खासकर कोविड-19 महामारी के बीच, उनकी रिहाई को और भी जरूरी बना देती है. महिला कैदियों के साथ व्यवहार और महिला अपराधियों के प्रति गैर-हिरासती कदमों के लिए संयुक्त राष्ट्र के नियम, जिन्हें बैंकॉक नियम भी कहा जाता है, उनके तहत मुकदमे के पहले (पूर्व-परीक्षण) के कदमों के बारे में निर्णय लेते समय, जहां संभव और उपयुक्त हो, गर्भवती महिलाओं के लिए गैर-हिरासती विकल्पों को प्राथमिकता देने की सिफारिश की गयी है.
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के कोविड-19 फ़ैलने से रोकने के लिए जेलों में भीड़ को कम करने के आदेशों का पालन करते समय, भारतीय अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि छात्र कार्यकर्ता सफूरा ज़र्गर, मीरान हैदर, शिफ़ा-उर-रहमान और शरजील इमाम को तुरंत और बिना किसी शर्तों के रिहा कर दिया जाए, जिन्हें केवल एक भेदभाव-पूर्ण कानून का विरोध करते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार का शांतिपूर्ण इस्तेमाल करने के लिए जेल में रखा जा रहा है. भीमा कोरेगांव मामले में जेल भेजे गए 11 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को भी तुरंत रिहा कर दिया जाना चाहिए.