नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना ने शुक्रवार को कहा कि न्यायिक समीक्षा और निर्णय की गुणवत्ता में सुधार के लिए न्यायपालिका में अधिक महिला जजों की आवश्यकता है.
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि संस्था में अधिक महिलाओं का नामांकन “अदालतों की विश्वसनीयता और वैधता का मामला” है और “निर्णय में भाषा और शब्दावली” में सुधार करना महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा, “विभिन्न अनुभवों की आवश्यकता” को पूरा करने के लिए और “यह सुनिश्चित करने के लिए कि अदालतें अधिक लिंग-तटस्थ स्थान बनें” न्यायपालिका में अधिक महिला न्यायाधीश होनी चाहिए.
न्यायाधीश, जो 2027 में भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बनेगीं, वह जस्टिस सुनंदा भंडारे फाउंडेशन द्वारा आयोजित 28वें जस्टिस सुनंदा भंडारे मेमोरियल लेक्चर दे रही थीं. इसी दौरान उन्होंने राज्य के सभी अंगों, कानूनी पेशे और शिक्षा के नियमन में लगे संस्थानों को “भारतीय न्यायपालिका को अधिक समावेशी और विविध बनाने के लिए अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर काम करने” की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया.
उन्होंने कहा, “पीठ में अधिक महिलाओं के शामिल होने से भारत में न्याय प्रदान करने में अधिक प्रभावी योगदान मिल सकता है.”
उनके अनुसार, न्यायपालिका में महिलाओं की भागीदारी न केवल एक संवैधानिक अनिवार्यता है, बल्कि एक मजबूत, पारदर्शी, समावेशी, प्रभावी और विश्वसनीय न्यायिक प्रक्रिया के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक आवश्यक कदम भी है.
अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए, न्यायमूर्ति नागरत्ना ने याद किया कि कैसे कर्नाटक हाई कोर्ट के एक न्यायाधीश के रूप में उन्होंने एक नवनियुक्त महिला न्यायिक अधिकारी, जो उस समय गर्भवती थी, को वरिष्ठता देने से इनकार करने के अपने सहकर्मी के सुझाव का विरोध किया, क्योंकि वह निर्धारित तिथि पर शपथ लेने में असमर्थ थी क्योंकि यह उनकी डिलीवरी की तारीख से क्लैश हो रहा था
न्यायाधीश ने याद किया, “मेरी बेंच के कुछ सदस्यों का विचार था कि चूंकि उन्होंने उक्त तिथि पर शपथ नहीं ली, इसलिए वह अपनी वरिष्ठता खो देंगी. लेकिन मैंने इसका विरोध किया, जिससे मुख्य न्यायाधीश को यह टिप्पणी करनी पड़ी कि वह न्यायिक अधिकारी को शपथ दिलाने के लिए अस्पताल जायेंगे. मैंने उनसे (मुख्य न्यायाधीश) कहा कि यह एक अच्छा सुझाव है और मैं भी उनके साथ चलूंगा.”
न्यायिक अधिकारी ने आखिरकार उनकी डिलीवरी के पांचवें दिन शपथ ली और एचसी के मुख्य न्यायाधीश ने न्यायमूर्ति नागरत्ना के विचार से सहमति जताते हुए महिला को भर्ती में उनकी योग्यता के आधार पर वरिष्ठता प्रदान की.
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने न्यायमूर्ति भंडारे के साथ अपने परिवार के जुड़ाव को याद किया, जो दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत होने से पहले, भंडारे के पिता से मिले थे, जो उस समय सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा न्यायाधीश थे. उन्होंने उस मुलाकात को गर्मजोशी से याद किया और दिवंगत जज की लचीलेपन की सराहना की.
न्यायमूर्ति भंडारे, जिन्हें जून 1984 में दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था, की 1994 में कैंसर से मृत्यु हो गई थी.
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि न्यायमूर्ति भंडारे की अपने काम के प्रति प्रतिबद्धता बहुत अधिक थी क्योंकि उन्होंने अपने इलाज के लिए विदेश यात्रा निर्धारित होने से एक दिन पहले भी काम किया था. न्यायाधीश ने कहा, “उन्होंने जाने से पहले एक फैसला सुनाया और शुक्र है कि उनके निधन के एक हफ्ते बाद फैसले को बरकरार रखा गया.”
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महिला सशक्तिकरण में न्यायपालिका का योगदान
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने महिला सशक्तिकरण में न्यायपालिका के योगदान को उजागर करने के लिए पिछले कुछ वर्षों में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए कई प्रशंसनीय निर्णयों पर ध्यान दिया.
इनमें सशस्त्र बलों में महिलाओं को स्थायी कमीशन देना, यौन उत्पीड़न कानून, महिलाओं के लिए समान संपत्ति का अधिकार और घरेलू संबंधों में एक गृहिणी के योगदान को निर्धारित करना शामिल है.
उन्होंने महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए कानूनों की घोषणा और नीतियों के अधिनियमन के माध्यम से कार्यपालिका के संवैधानिक जनादेश को पूरा करने पर जोर देकर लैंगिक समानता के उद्देश्य को आगे बढ़ाने में न्यायपालिका की भूमिका को भी सूचीबद्ध किया.
उन्होंने कहा, “महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए लगातार और लक्षित राज्य कार्रवाई के अभाव में समानता केवल एक नारा बनकर रह जाएगी. यह दोहराने योग्य है कि सामाजिक सुधार और प्रगति के बावजूद, सामाजिक संरचना महिलाओं के प्रति पक्षपाती बनी हुई है. इस तरह का पूर्वाग्रह खतरनाक है कि यह महिलाओं को जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रभावित करता है.”
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने विवाह की संस्था पर भी बात की, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि यह “माताओं, पत्नियों, बहनों, बेटियों, चाची आदि के रूप में महिलाओं की कड़ी मेहनत और अतुलनीय देखभाल के काम” द्वारा पोषित किया गया है.
उन्होंने कहा, “व्यापक धारणा यह है कि एक आदर्श विवाह एक ‘शिक्षित और अच्छी तरह से प्रशिक्षित’ पुरुष और एक महिला के बीच होता है, जिसके पास ऐसी शिक्षा और घरेलू कौशल की पृष्ठभूमि होती है जो उसे एक अच्छी गृहिणी बनाती है.”
हालांकि, उनके अनुसार महिलाओं और पुरुषों दोनों को यह एहसास होना चाहिए कि वे विवाह के स्तंभ हैं.
न्यायाधीश ने कहा, “विभिन्न स्तंभ अलग-अलग लेकिन समान रूप से महत्वपूर्ण उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं. कोई भी परिवार आर्थिक या देखभाल कार्य के स्वस्थ संतुलन के बिना जीवित नहीं रह सकता. परिवार में महिलाओं के प्रति कृपालु रवैया दरार का कारण है और इसके कारण घरेलू हिंसा और महिला के साथ बेवफाई जैसी चीज़े होती हैं.”
(संपादन: अलमिना खातून)
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