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Wednesday, 30 October, 2024
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जमानत आदेश के छह महीने बाद अदालतें बांड भरने के लिए नहीं कह सकतीं: शीर्ष अदालत

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नयी दिल्ली, 30 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि अदालतें जमानत आदेश पारित होने के छह महीने बाद आरोपी पर जमानत बांड प्रस्तुत करने की शर्त नहीं लगा सकतीं।

न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि यदि अदालत मामले के गुण-दोष से संतुष्ट है तो उसे या तो जमानत दे देनी चाहिए या फिर याचिका खारिज कर देनी चाहिए।

उच्चतम न्यायालय ने 24 अक्टूबर को एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर विचार किया था, जिसने पटना उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी। इस आदेश में बिहार मद्यनिषेध और उत्पाद संशोधन अधिनियम के तहत उसके खिलाफ दर्ज मामले में छह महीने बाद जमानत बांड प्रस्तुत करने का उसे निर्देश दिया गया था।

निचली अदालत ने व्यक्ति को 10,000 रुपये के बांड और इतनी ही राशि की दो जमानतें प्रस्तुत करने पर रिहा करने का निर्देश दिया।

याचिका पर विचार करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा, “यह पिछले कुछ दिनों में उच्च न्यायालय द्वारा पारित कुछ आदेशों में से एक है, जिसमें मामले का गुण-दोष के आधार पर निर्णय किए बिना उच्च न्यायालय ने वर्तमान याचिकाकर्ता को इस शर्त पर जमानत दे दी है कि याचिकाकर्ता-आरोपी आदेश पारित होने के छह महीने बाद जमानत बांड प्रस्तुत करेगा।”

इसने कहा कि इस बात का कोई कारण नहीं बताया गया कि जमानत देने के आदेश के क्रियान्वयन को छह महीने के लिए क्यों स्थगित किया गया।

पीठ ने कहा, “हमारी राय में किसी व्यक्ति/आरोपी को जमानत देने के लिए ऐसी कोई शर्त नहीं लगाई जा सकती।”

शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया और तथा गुण-दोष के आधार पर नए सिरे से निर्णय करने के लिए इसे 11 नवंबर को संबंधित अदालत के समक्ष सूचीबद्ध किया।

मामला याचिकाकर्ता के वाहन से 40 लीटर देशी शराब की कथित बरामदगी से संबंधित है।

भाषा नोमान मनीषा

मनीषा

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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