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Thursday, 30 October, 2025
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सहकर्मी की पत्नी से अवैध संबंधों में बीएसएफ अधिकारी की बर्खास्तगी को न्यायालय ने बरकरार रखा

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नयी दिल्ली, 30 अक्टूबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को एक बीएसएफ अधिकारी की बर्खास्तगी को बरकरार रखा, जो अपने सहकर्मी की पत्नी के साथ ‘अवैध संबंध’ में लिप्त पाया गया था। अदालत ने कहा कि उनका आचरण अपमानजनक और ऐसे अधिकारी के लिए अनुपयुक्त था, जिस पर देश की रक्षा जैसी गंभीर जिम्मेदारी है।

न्यायालय ने कहा कि वह इस तरह के नैतिक और संस्थागत सिद्धांतों के उल्लंघन को नजरअंदाज नहीं कर सकता, क्योंकि ऐसा बर्ताव सशस्त्र बलों में जनता के भरोसे को कमजोर करता है।

न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर और ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने कहा कि एक विवाहित व्यक्ति द्वारा बिना उचित कारण के किसी अन्य विवाहित व्यक्ति (जो उनका जीवनसाथी नहीं है) को उपहार देना असामान्य माना जा सकता है और इसके लिए उचित स्पष्टीकरण जरूरी है।

पीठ ने कहा कि ऐसे उपहारों के मामले में अपनी सफाई देने की जिम्मेदारी उस व्यक्ति की होती है जो बचाव करता है।

न्यायालय ने सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के पूर्व अधिकारी की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने सितंबर 2022 में जनरल सिक्योरिटी फोर्स कोर्ट (जीएसएफसी) द्वारा दिए गए दोषसिद्धि और सजा के आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया गया था।

याचिकाकर्ता ने अपनी सेवा से बर्खास्तगी के आदेश को रद्द करने और उसे दोबारा सुरक्षा बल में बहाल करने का अनुरोध किया था।

न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता जोकि सेवा से बर्खास्त किए जाने से पहले बीएसएफ में उप-निरीक्षक था, ने अपने सहयोगी की पत्नी को उपहार देकर और बार-बार उससे मिलने जाकर अवैध संबंध स्थापित किए, जो नैतिक रूप से परेशान करने वाले और उसके द्वारा पहनी गई वर्दी के मूल सिद्धांतों के खिलाफ थे।

न्यायालय ने कहा, ‘हम याचिकाकर्ता के आचरण को नजरअंदाज नहीं कर सकते, जो न केवल अपमानजनक है बल्कि ऐसे अधिकारी के लिए भी अनुपयुक्त है, जिसे देश की रक्षा जैसी गंभीर जिम्मेदारी सौंपी गयी है।’

न्यायालय ने कहा, “संस्थानिक और नैतिक सिद्धांतों के ऐसे उल्लंघन पर यह अदालत आंखें मूंद नहीं सकती, क्योंकि इस तरह का आचरण सशस्त्र बलों की ईमानदारी पर जनता के विश्वास को कमजोर करता है।”

पीठ ने कहा कि वह याचिकाकर्ता के आचरण पर टिप्पणी करने से स्वयं को नहीं रोक सकती। उसने एक अन्य फैसले का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि अनुशासित बल से जुड़े अधिकारी का यह दायित्व है कि वह ईमानदारी और नैतिकता के उच्चतम मानकों को बनाए रखे तथा ऐसे किसी भी आचरण से बचे जो उसके पद के अनुरूप न हो या उसके लिए अनुचित हो।

न्यायालय ने कहा कि इस बात का कोई उचित औचित्य नहीं दिया गया कि पुरुष ने उस महिला को उपहार क्यों दिए।

न्यायालय ने कहा कि यह कृत्य इसलिए और अधिक गंभीर हो जाता है क्योंकि याचिकाकर्ता और श्रीमती ‘एक्स’ के बीच कोई औपचारिक, पारिवारिक या पेशेवर संबंध नहीं था, जो सामान्य परिस्थितियों में ऐसे व्यवहार को उचित ठहरा सके।

न्यायालय ने कहा कि जीएसएफसी ने पाया कि पुरुष ने ये वस्तुएं ‘छुपकर’ दी थीं और यह निष्कर्ष निकाला कि उसने ये उपहार यौन लाभ के बदले दिए थे।

न्यायालय ने कहा, “…क्योंकि यदि याचिकाकर्ता ने ये वस्तुएं धन के बदले दी होतीं, तो वह श्रीमती ‘एक्स’ के पति को इसकी जानकारी देकर बदले में आवश्यक राशि प्राप्त कर सकता था, जो उसने नहीं किया।”

न्यायालय ने कहा कि उसे जीएसएफसी के निष्कर्षों में दखल देने का कोई आधार नहीं दिखता है।

यह आरोप लगाया गया था कि वर्ष 2019 में याचिकाकर्ता और उसके सहकर्मी की पत्नी, जो उसी इमारत में रहती थीं, के बीच बातचीत शुरू हुई थी और याचिकाकर्ता ने कई मौकों पर महिला को एक मोबाइल फोन, एक सोने का लॉकेट और एक ड्रेस उपहार में दी थी और महिला के पति की अनुपस्थिति में अक्सर उसके घर जाया करता था।

महिला के पति ने अधिकारियों को शिकायत लिखी, जिसके बाद याचिकाकर्ता के खिलाफ जांच शुरू की गयी थी।

भाषा

राखी पवनेश

पवनेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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