नयी दिल्ली, 18 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मेस में परोसे गए भोजन से असंतुष्ट होकर अपने सहकर्मियों पर गोली चलाने के मामले में एक सैन्यकर्मी की दोषसिद्धि को बरकरार रखा है।
न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति एस वी एन भट्टी की पीठ ने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के 2014 के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 307 (हत्या का प्रयास) और शस्त्र अधिनियम की धारा 27 के तहत बरी कर दिया गया था।
न्यायालय ने कहा, ‘‘तथ्यों और परिस्थितियों से पता चलता है कि आरोपी ने गुस्से में अपनी सर्विस राइफल एके-47 से अंधाधुंध गोलीबारी की, जबकि वह अच्छी तरह जानता था कि गोली उसके किसी भी सहकर्मी को शारीरिक चोट पहुंचा सकती है, जिससे आगे चलकर उसकी मौत भी हो सकती है।’’
पीठ ने 17 अप्रैल के अपने फैसले में कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि आरोपी कांस्टेबल ने अपने सहकर्मियों को शारीरिक चोट पहुंचाने के इरादे से घटना को अंजाम दिया, जबकि वह पूरी तरह से जानता था कि ऐसी चोट से मृत्यु भी हो सकती है।
इसने कहा, ‘‘इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि घायल व्यक्ति को चार चोटें आईं। चोटें भले ही जानलेवा न हों, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि हत्या करने का इरादा था।’’
पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने भादंसं की धारा 307 और शस्त्र अधिनियम, 1959 की धारा 27 के तहत अपराध से आरोपियों को बरी करते समय महत्वपूर्ण पहलुओं की अनदेखी की।
इसने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय के 14 जुलाई, 2014 और 28 जुलाई, 2014 के फैसले तथा आदेशों को बरकरार नहीं रखा जा सकता और तदनुसार इन्हें रद्द किया जाता है तथा निचली अदालत के 20 मार्च, 2013 के फैसले और आदेश को बहाल किया जाता है।’’
हालांकि, शीर्ष अदालत ने कहा कि भांदंसं की धारा 307 के तहत कोई न्यूनतम सजा निर्धारित नहीं की गई है, क्योंकि आरोपी ‘‘अनुशासन बल’’ में था और घटना 2010 की है, तथा उसने यह सब ‘‘क्रोध में’’ लेकिन पूर्वनिर्धारित मंशा से किया था।
पीठ ने कहा, ‘‘न्याय के हित में हम सजा को सात वर्ष के सश्रम कारावास के स्थान पर पहले ही भुगती जा चुकी सजा (लगभग 1 वर्ष 5 महीने) तक घटाते हैं।’’
भाषा नेत्रपाल नरेश
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