नयी दिल्ली, 31 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को मादक पदार्थ से जुड़े एक मामले में शिरोमणि अकाली दल नेता बिक्रम सिंह मजीठिया को राहत प्रदान करते हुए पंजाब पुलिस को उन्हें 23 फरवरी तक गिरफ्तार नहीं करने का निर्देश दिया, ताकि वह राज्य में चुनाव प्रकिया में हिस्सा ले सकें।
न्यायालय ने यह भी कहा, ‘‘हम एक लोकतंत्र हैं, जहां राजनीतिज्ञों को नामांकन दाखिल करने की अनुमति दी जानी चाहिए और ऐसी धारणा नहीं बननी चाहिए कि ‘दुर्भावना से प्रेरित’ होकर मुकदमे दायर किये गये हैं।’’
प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना तथा न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने विधानसभा चुनावों से ऐन पहले राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ आपराधिक मामलों में अचानक बढ़ोतरी होने का उल्लेख करते हुए पंजाब सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पी. चिदम्बरम से कहा कि वह अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने की सलाह दें कि ऐसी धारणा न बने कि राज्य सरकार राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को प्रतिशोध की भावना से निशाना बना रही है।
दंडात्मक कार्रवाई से संरक्षण प्रदान करते हुए शीर्ष अदालत ने मजीठिया को 20 फरवरी को पंजाब विधानसभा चुनाव होने के बाद एक निचली अदालत में आत्मसमर्पण करने का निर्देश भी दिया।
पीठ ने निचली अदालत को भी मजीठिया के आत्मसमर्पण करने के बाद उनकी नियमित जमानत याचिका पर सुनवाई करने और जल्दी निर्णय करने का निर्देश दिया।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘वकीलों को सुना। इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए फिलहाल हम याचिकाकर्ता को 23 फरवरी तक संरक्षण प्रदान करते हैं। याचिकाकर्ता 23 फरवरी को संबंधित निचली अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करना होगा और नियमित जमानत के लिए अर्जी देनी होगी। निचली अदालत जमानत याचिका पर कानून के दायरे में त्वरित विचार करेगी।’’
सुनवाई के दौरान ने पीठ ने कहा कि वह मादक पदार्थों की धांधली के खिलाफ पुलिस कार्रवाई के विरुद्ध नहीं है, बल्कि राज्य में राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ प्राथमिकियों में अचानक तेज वृद्धि से आश्चर्य होता है। पीठ ने ऐसे ही एक विधायक के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के विरुद्ध याचिका का भी जिक्र किया और पुलिस के कामकाज पर सवाल उठाया।
पीठ ने कहा, ‘‘हमें इन चीजों का जिक्र करने का दुख है। हम लोकतंत्र में हैं और कम से कम उन्हें चुनाव में नामांकन करने की अनुमति तो दीजिए …अचानक ये आपराधिक मामले बाहर आ रहे हैं। चुनाव से ठीक पहले, प्रत्येक व्यक्ति को यह भरोसा करने का कारण है कि उनके खिलाफ कुत्सित इरादा है। हम आपकी राज्य पुलिस को ड्रग माफियाओं को नियंत्रित करने से मना नहीं कर हैं। आप ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं।’’
चिदम्बरने में कहा कि वह स्वीकार करते हैं कि पहले राजनीतिक कार्रवाई हुई है। उन्होंने कहा, ‘‘…लेकिन यह (मजीठिया मामला) राजनीतिक कार्रवाई नहीं है और यह ऐसा मामला है, जिसकी निगरानी उच्च न्यायालय लगातार कर रहा है। उन्हें 21 फरवरी को आत्मसमर्पण करने दें और हमें तीन दिन की हिरासत दें।’’ उन्होंने कहा कि मौजूदा मामले का लंबा इतिहास है। वह दूसरे मामले में जरूर राज्य सरकार को सलाह देंगे कि वह (सरकार) कोई राजनीतिक प्रतिशोध से कार्रवाई न करे।
सुनवाई के प्रारम्भ में मजीठिया की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि राजनीतिक प्रतिशोध का यह अनोखा मामला है, क्योंकि 2004-2005 की अवधि में किये गये अपराधों के संदर्भ में कार्यवाहक डीजीपी के दिशानिर्देश पर 20 दिसम्बर 2021 को प्राथमिकी दर्ज की गयी थी। उन्होंने आगे कहा कि जब मजीठिया पूछताछ के लिए पुलिस के पास पहुंचे थे तो उनसे शादी के अलबम मांगे गये थे। मजीठिया से यह भी ‘हास्यास्पद सवाल’ पूछा गया था कि उनकी पत्नी ने उनका नाम क्यों नहीं लिया था?
इस पर चिदम्बरम ने सरकार बदलने में देरी को इसका कारण बताया और कहा कि शादी के अलबम इसलिए मांगे गए थे कि क्या मामले के अन्य अभियुक्त भी तो मजीठिया की शादी में शामिल नहीं हुए थे?
मजीठिया पर पिछले साल 20 दिसंबर को स्वापक औषधि एवं मन: प्रभावी पदार्थ (एनडीपीएस) कानून के तहत मामला दर्ज किया गया था। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने 24 जनवरी को मजीठिया की गिरफ्तारी पूर्व जमानत याचिका खारिज कर दी थी। इसके बाद उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की गयी।
शीर्ष अदालत ने गत 27 जनवरी को पंजाब सरकार को मौखिक रूप से कहा था कि वह 31 जनवरी तक मजीठिया के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई न करे।
भाषा
सुरेश दिलीप
दिलीप
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