नयी दिल्ली, दो जून (भाषा) दिल्ली की एक अदालत ने 17 वर्ष पुराने वाणिज्यिक विवाद का निपटारा करते हुए कहा कि इस मामले की लंबे समय तक चली सुनवाई से ‘विलंबित वाणिज्यिक न्याय की दुर्दशा’’ को दर्शाया है, जिसका देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
जिला न्यायाधीश मोनिका सरोहा अप्रैल 2008 में एक कंपनी द्वारा जम्मू एंड कश्मीर बैंक लिमिटेड के खिलाफ दायर मुकदमे की सुनवाई कर रही थीं, जिसमें ऋण की प्रक्रिया के लिए आवेदन शुल्क या अग्रिम शुल्क के रूप में बैंक को भुगतान किए गए लगभग 17.92 लाख रुपये की वसूली का अनुरोध किया गया था।
न्यायाधीश सरोहा ने 26 मई के अपने आदेश में कहा कि वादी कंपनी यह साबित करने में विफल रही कि मूल स्वीकृति पत्र के अनुसार वह आवेदन शुल्क की वापसी की हकदार थी।
अदालत ने कहा, ‘‘प्रतिवादी बैंक, ऋण आवेदन पर कार्रवाई करने और महत्वपूर्ण प्रयास करने के ऐवज में मूल लिखित शर्तों के अनुसार आवेदन शुल्क को रखने का हकदार है।’’
अदालत ने कहा कि मुकदमे में तय किए जाने वाले मुद्दों के वाद दायर किए जाने के कुछ महीनों के भीतर ही निपटारे योग्य होने के बावजूद, बार-बार स्थगन, विविध आवेदन दाखिल करने, वादी द्वारा बार-बार वकील बदलने और अन्य कारणों से मुकदमा लंबा खिंच गया।
अदालत ने कहा, ‘‘वाणिज्यिक मामलों के निर्णय में इस तरह की देरी हितधारकों के विश्वास को कम करती है और अर्थव्यवस्था के विकास को बाधित करती है।’’
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शफीक प्रशांत
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