मुंबई, आठ फरवरी (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने मंगलवार को शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी को उस जनहित याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए तीन हफ्ते का समय दिया, जिसमें तीनों सत्तारूढ़ दलों द्वारा अक्तूबर 2021 में राज्य में आयोजित एक दिवसीय बंद को चुनौती दी गई है।
अदालत ने यह भी कहा कि अगर तीनों दल अपना हलफनामा दाखिल नहीं करते हैं तो इसके ‘नतीजे सामने आएंगे।’
जनहित याचिका (पीआईएल) मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त जूलियो रिबेरो सहित चार वरिष्ठ नागरिकों ने की है। इसमें उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किसानों की मौत के विरोध में 11 अक्टूबर 2021 को महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के तीन घटकों द्वारा बुलाए गए एक दिवसीय बंद को चुनौती दी गई थी।
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एमएस कर्णिक की खंडपीठ ने मंगलवार को कहा कि तीनों दल चाहें तो तीन हफ्ते के भीतर हलफनामा दाखिल कर सकते हैं।
मुख्य न्यायाधीश दत्ता ने कहा, ‘अगर नहीं तो अदालत उनके जवाब के बगैर ही याचिका पर सुनवाई शुरू करेगी। अगर वे (राजनीतिक दल) अपना हलफनामा दाखिल नहीं करते हैं तो इसके परिणाम सामने आएंगे।’
याचिका के मुताबिक, लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा के खिलाफ और कृषि कानूनों पर अब खत्म हो चुके किसान आंदोलन के प्रति एकजुटता दर्शाने के लिए तीन अक्टूबर को बुलाए गए बंद से सरकारी खजाने को 3,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था।
उच्च न्यायालय ने दिसंबर 2021 में राज्य सरकार और तीनों दलों को अपना हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था। मंगलवार को अतिरिक्त सरकारी वकील ज्योति चव्हाण ने हलफनामा दाखिल करने के लिए तीन हफ्ते का समय और मांगा।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता आरडी सोनी ने अदालत को बताया कि अभी तक किसी भी प्रतिवादी राजनीतिक दल ने कोई हलफनामा दाखिल नहीं किया है।
याचिका में उच्च न्यायालय से बंद को असंवैधानिक और अवैध घोषित करने के साथ ही तीनों राजनीतिक दलों को प्रभावित नागरिकों को मुआवजा देने का निर्देश देने की मांग की गई है।
अदालत ने मंगलवार को प्रतिवादियों को अपना हलफनामा दायर करने के लिए तीन हफ्ते का अतिरिक्त समय दिया। साथ ही मामले की अगली सुनवाई पांच सप्ताह के बाद निर्धारित कर दी।
भाषा पारुल अनूप
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