नयी दिल्ली, 26 जून (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक व्यक्ति को उसकी पत्नी और सौतेली बेटी से फिर से मिला दिया है। महिला के परिवार के सदस्यों ने उसे और उसकी बेटी को उत्तर प्रदेश में कथित रूप से कैद रखा हुआ था।
उच्च न्यायालय के निर्देश पर महिला और उसकी सात वर्षीय बेटी को अदालत के सामने पेश किया गया। अदालत ने महिला से कहा कि वह बालिग है और जहां भी वह जाना चाहती है जा सकती है। महिला की पहली शादी से यह बेटी है।
न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने व्यक्ति से कहा, “वे (महिला और बेटी) आपके साथ रहना चाहते हैं। इसलिए आप उन्हें यहां से ही साथ ले जाएं।’
अदालत व्यक्ति की ओर से दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में उसने अधिकारियों को अपनी पत्नी और सौतेली बेटी को पेश करने का निर्देश दिए जाने का आग्रह किया था।
महिला ने अदालत को बताया कि उसकी शादी संबंधित व्यक्ति से हुई है और वह अपनी बेटी सहित उसके साथ रहना चाहती है तथा उसके (महिला के) परिवार के सदस्यों ने उसे धमकाया और उसके साथ मारपीट भी की।
इस पर न्यायाधीश ने अदालत में मौजूद महिला के पूर्व ससुर और उसकी मां से कहा कि वह बालिग है और अपनी मर्जी से कहीं भी जाने के लिए स्वतंत्र है। अदालत ने आगाह किया कि अगर वे नहीं सुधरे तो उन्हें जेल भेज दिया जाएगा।
न्यायाधीश ने कहा, “आप समाज में रहते हैं, आप क्या कर रहे हैं? यहां कोई राजशाही नहीं है। वह बालिग है और अपनी मर्जी से कहीं भी जा सकती है। यदि आप इस तरह से व्यवहार करते रहे तो आपको सीधे तिहाड़ जेल भेज दिया जाएगा।”
अदालत ने कहा कि महिला ने याचिकाकर्ता से कानूनी रूप से शादी की थी और उसकी वैध पत्नी है तथा वह उसके साथ रह सकती है।
व्यक्ति ने अपनी याचिका में कहा था कि महिला विधवा हो गई थी और उसकी एक बच्ची है तथा उसने महिला से शादी की है।
याचिका में कहा गया था कि महिला के परिवार के सदस्य और उसके पूर्व ससुराल वाले याचिकाकर्ता के साथ उसके अंतरजातीय विवाह के खिलाफ हैं और वे उसे (व्यक्ति को) धमका रहे हैं।
इसमें दावा किया गया था कि महिला को जनवरी से कैद में रखा गया था।
भाषा नोमान नेत्रपाल
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