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शनिवार, 17 मई, 2025
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दूसरे धर्म की महिला के अपहरण के दोषी व्यक्ति को अदालत से राहत

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जबलपुर, चार नवंबर (भाषा) मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के 1998 के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें एक व्यक्ति को दूसरे धर्म की महिला का अपहरण करने का दोषी ठहराया गया था, जिसके परिजनों ने दावा था कि वह उस समय नाबालिग थी।

पन्ना के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की अदालत ने 26 अगस्त 1998 को भादंवि की धारा 363 (अपहरण) के तहत नायब खान को दो साल कैद और पांच हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी।

उसे राम सेवक गौतम की शिकायत पर दर्ज एक मामले में दोषी ठहराया गया था। गौतम ने पुलिस को बताया था कि उसकी “नाबालिग बेटी” का अपहरण 27 जून 1995 को तब किया गया था जब वह शौच के लिये बाहर गई थी।

पुलिस एक महीने के बाद लड़की का पता लगा पाई और लड़की को उसके माता-पिता से मिलाया, जबकि खान पर अपहरण का आरोप लगाया गया था।

खान के वकील अमानुल्ला उस्मानी ने कहा कि निचली अदालत ने यह मानते हुए गलती की कि घटना के समय पीड़ित नाबालिग थी, क्योंकि उसने पुलिस के सामने स्वीकार किया था कि उसकी उम्र 18 वर्ष से अधिक थी।

वकील ने अदालत को बताया कि यहां तक कि एक विशेषज्ञ डॉ. जीपी सिंह ने भी साक्ष्य दिया था कि वह (लड़की) एक वयस्क थी, जबकि उसने स्वयं भी अदालत को बताया कि वह स्वेच्छा से आरोपी के साथ गई थी।

उच्च न्यायालय के 13 अक्टूबर के आदेश में, न्यायमूर्ति अंजुली पालो ने कहा, “महिला अभियोक्ता की गवाही, उसके माता-पिता के साथ-साथ डॉ. जीपी सिंह की रिपोर्ट और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून के मद्देनजर, इस अदालत का यह सुविचारित मत है कि संदेह का लाभ अभियुक्त/अपीलकर्ता को दिया जाए।”

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा, “रिकॉर्ड में उपलब्ध सामग्री के आधार पर, घटना के समय अभियोजक लड़की बालिग थी। यह अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि अपीलकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 363 के तहत कोई अपराध नहीं बनता है। तदनुसार, अपील स्वीकृत की जाती है। दोषसिद्धि का आक्षेपित निर्णय और सजा का आदेश दिनांक 26 अगस्त, 1998 एतद्द्वारा रद्द किया जाता है।”

भाषा प्रशांत माधव

माधव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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