नयी दिल्ली, 12 फरवरी (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने मादक पदार्थ निरोधक कानून के तहत आरोपी एक व्यक्ति को जमानत देने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वह चरस की आपूर्ति में शामिल सुसंगठित गिरोह का हिस्सा है और अगर उसे रिहा किया जाता है तो वह फिर से वही अपराध कर सकता है।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने समाज पर स्वापक औषधियों के हानिकारक प्रभाव को दर्शाने के लिए उच्चतम न्यायालय के एक फैसले पर भरोसा जताया, जिसमें कहा गया है कि मादक पदार्थों की लत के खतरे से न केवल एक व्यक्ति का जीवन बर्बाद होता है बल्कि आने वाली पीढियों पर भी इसका असर पड़ सकता है।
न्यायाधीश ने कहा कि मादक पदार्थों से संबंधित मामलों में जमानत याचिकाओं पर विचार करते वक्त स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम को लागू करने के उद्देश्य को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता को पुलिस ने उस वक्त गिरफ्तार किया था जब वह 10 किलोग्राम चरस ले जा रहे सह-अभियुक्त सूरज के साथ था। यह मात्रा कानून के दायरे में कारोबारी मात्रा थी।
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता के फरार सरगना के सम्पर्क में लगातार बने रहने सहित विभिन्न तथ्यों पर विचार करने से यह संकेत मिलता है कि याचिकाकर्ता चरस की आपूर्ति करने वाले सुसंगठित गिरोह का एक हिस्सा है।
न्यायाधीश ने कहा कि याचिकाकर्ता ने खुद के निर्दोष होने को लेकर तार्किक आधार उपलब्ध नहीं कराये हैं, इसलिए उसकी जमानत याचिका खारिज की जाती है।
भाषा सुरेश माधव
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