नयी दिल्ली, 19 फरवरी (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने उस जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया है, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) द्वारा कानूनी फर्म को सूचीबद्ध करने के लिए निर्धारित पात्रता मानदंड को चुनौती दी गई थी।
न्यायमूर्ति मनमोहन, न्यायमूर्ति नवीन चावला की एक पीठ ने कहा कि प्रभावित व्यक्तियों के ऐसे मामले में जनहित याचिकाओं में ‘‘शामिल होने’’ की अवधारणा में ढील दी गई है जो बहुत गरीब हैं या जिनके पास अदालत जाने का साधन नहीं है। हालांकि, उसी छूट को उन मामलों में नहीं बढ़ाया जा सकता है जिनमें प्रभावित पक्ष वकील को कहा जाता है क्योंकि वे रोजाना अदालतों में पेश होते हैं और वे इसके नियम-कायदे तथा प्रक्रिया से पूरी तरह परिचित हैं।
पीठ ने कहा कि जनहित याचिका की अवधारणा ‘‘मुख्य रूप से भारत में सामाजिक और आर्थिक अधिकारों की तामील से जुड़ी हुई है’’ और वर्तमान मामले को एक जनहित याचिका के तौर पर विचार करने के लिए ‘‘स्थायी सिद्धांत को शिथिल करना उचित या उपयुक्त नहीं होगा।’’
अदालत ने 17 फरवरी के अपने आदेश में कहा, ‘‘कानून का स्थापित सिद्धांत यह है कि एक पीड़ित व्यक्ति को अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहिए। स्थायी सिद्धांत की विशेषता यह है कि एक संभावित वादी को उस कार्रवाई से प्रभावित होना चाहिए जिसे वह चुनौती देता है। भारतीय अदालतों द्वारा व्यक्तियों के लिए आवाज उठाने में ढील दी गई है, अगर पीड़ित व्यक्ति बहुत गरीब है या उसके पास अदालत का दरवाजा खटखटाने का साधन नहीं है तो जनहित याचिका पर विचार किया जा सकता है।’’
पीठ ने कहा, ‘‘इस अदालत का विचार है कि वर्तमान मामले में ‘पीड़ित व्यक्ति’ वकील या कानूनी फर्म हैं जो प्रतिदिन अदालतों में हाजिर होते हैं। वे अदालत के कायदे और प्रक्रिया से पूरी तरह अवगत हैं और हर समय अदालत में उनकी पहुंच होती है।’’
अदालत के समक्ष निजी तौर पर पेश हुए याचिकाकर्ता मोहम्मद एहराज जफर ने दलील दी कि पात्रता के लिए ‘‘टर्नओवर’’ के संदर्भ में एक आर्थिक मानदंड स्थापित करना संविधान के अनुच्छेद 14, 16, 19(1)(जी) और 21 तथा अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत वकीलों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के तहत हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय ने ‘खुली राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धी बोली के आधार पर तीन साल की अवधि के लिए कानूनी फर्म को सूचीबद्ध करने के लिए ई-निविदा’ जारी की है तथा पात्रता मानदंड में कहा गया है कि पिछले तीन वित्तीय वर्षों में आवेदकों का औसत वार्षिक कारोबार कम से कम 50 करोड़ रुपये होना चाहिए।
भाषा आशीष अमित
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