नयी दिल्ली, छह जून (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने ‘भारतीय चिकित्सा पद्धति राष्ट्रीय आयोग’ के अध्यक्ष की नियुक्ति शुक्रवार को रद्द करते हुए उन्हें पद के लिए अयोग्य करार दिया।
मुख्य न्यायाधीश देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने वैद्य जयंत यशवंत देवपुजारी की आयोग (एनसीआईएसएमसी) के अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति को चुनौती देने वाली दो याचिकाओं को स्वीकार कर लिया।
पीठ ने कहा, ‘‘रिट याचिकाएं स्वीकार की जाती हैं और प्रतिवादी 5 (देवपुजारी) की आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति को रद्द करते हुए रिट जारी की जाती है।’’
आयोग के वकील ने अदालत को बताया कि अध्यक्ष के चयन और नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हो गई है। अदालत ने प्रक्रिया को शीघ्र पूरा करने का निर्देश दिया और कहा कि चयन प्रक्रिया के समय उसकी टिप्पणियों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
अदालत ने यह आदेश तत्कालीन केन्द्रीय भारतीय औषधि परिषद के पूर्व अध्यक्ष वेद प्रकाश त्यागी और डॉ. रघुनंदन शर्मा द्वारा दायर दो याचिकाओं पर पारित किया।
कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय ने 9 जून, 2021 को एक परिपत्र जारी करके देवपुजारी को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया था।
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि देवपुजारी को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त नहीं किया जा सकता क्योंकि उनके पास एक स्नातकोत्तर डिग्री नहीं है जो भारतीय चिकित्सा पद्धति के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम, 2020 (एनसीआईएसएम अधिनियम) के तहत अनिवार्य है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि देवपुजारी के पास एक पीएचडी डिग्री थी, जबकि अपेक्षित डिग्री एमडी या भारतीय चिकित्सा पद्धति के किसी भी विषय में कोई अन्य समकक्ष मास्टर्स डिग्री थी। उसने कहा कि पुणे विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें प्रदान की गई पीएचडी डिग्री के लिए निम्न योग्यता (आयुर्वेद में मास्टर डिग्री) की आवश्यकता नहीं थी।
पीठ ने कहा, ‘‘हमें यह मानने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि एनसीआईएसएम अधिनियम, 2020 की धारा 4(2) में प्रयुक्त ‘स्नातकोत्तर डिग्री’ का अर्थ भारतीय चिकित्सा पद्धति के किसी भी विषय में मास्टर्स डिग्री (एमडी) है, जो प्रतिवादी के पास नहीं है और इसलिए, उसके पास संबंधित पद पर नियुक्त होने के लिए अपेक्षित योग्यता नहीं है।’’
उसने कहा कि देवपुजारी को आयुर्वेद में स्नातक की डिग्री (बीएएमएस) प्राप्त करने के तुरंत बाद मास्टर डिग्री कोर्स किए बिना पीएचडी कोर्स में दाखिला दे दिया गया था।
अदालत ने कहा कि स्नातक के बाद विश्वविद्यालय द्वारा प्रदान की गई प्रत्येक डिग्री को एक ‘स्नातकोत्तर योग्यता’ नहीं कहा जा सकता, क्योंकि हमारे देश में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में ‘स्नातकोत्तर डिग्री’ ने एक विशेष अर्थ और महत्त्व प्राप्त कर लिया है और स्नातकोत्तर डिग्री का अर्थ है एमए, एमएससी, एमडी, एलएलएम या एमएड जैसी मास्टर डिग्री।
अदालत ने कहा कि आयोग के कार्यों पर एनसीआईएसएम अधिनियम के प्रावधानों का जोर भारतीय चिकित्सा पद्धति में शिक्षा की उच्च गुणवत्ता और उच्च मानकों को बनाए रखने से संबंधित है और तदनुसार, ‘विभाग प्रमुख’ और ‘संगठन प्रमुख’ वाक्यांशों को उस संदर्भ में समझा जाना चाहिए जिसमें संसद ने अधिनियम पारित किया था।
अदालत ने कहा, ‘आयुर्वेदिक दवा और उत्पाद बनाने वाली कंपनी में काम करने वाले प्रतिवादी 5 के कथित अनुभव का विश्लेषण करते हुए, हम प्रतिवादियों की ओर से दी गई इस दलील से सहमत नहीं हैं कि इस तरह के अनुभव को ‘विभाग के प्रमुख’ या ‘संगठन के प्रमुख’ की हैसियत से एक ‘नेतृत्वकर्ता’ के रूप में काम करने का अनुभव कहा जा सकता है।’’
त्यागी की याचिका में कहा गया कि आयोग देश में भारतीय चिकित्सा की शिक्षा और विनियमन से संबंधित सभी मामलों के लिए एक शासी निकाय है।
उन्होंने कहा, ‘यदि किसी अयोग्य व्यक्ति को ऐसे महत्वपूर्ण वैधानिक निकाय के अध्यक्ष पद पर बने रहने की अनुमति दी जाती है, तो बड़ी संख्या में लोगों/छात्रों/भारतीय चिकित्सकों के हितों पर प्रतिकूल और गंभीर प्रभाव पड़ेगा।’’
भाषा
अमित नरेश
नरेश
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