नयी दिल्ली, नौ मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के निर्देश की अवमानना करने के लिए आंध्र प्रदेश के एक अधिकारी को पदावनत करने का आदेश देते हुए शुक्रवार को कहा कि अदालत के आदेशों की अवज्ञा कानून के शासन की नींव पर हमले के समान है जो हमारे लोकतंत्र का आधार है।
न्यायमूर्ति बी आर गवई तथा न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने आंध्र प्रदेश सरकार को निर्देश दिया कि जनवरी 2014 में गुंटूर जिले में तहसीलदार के तौर पर जबरन कई झुग्गियों को हटाने वाले डिप्टी कलेक्टर को फिर से तहसीलदार के पद पर पहुंचाया जाए।
न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि पूरे देश में यह संदेश जाए कि कोई भी अदालत के आदेशों की अवज्ञा बर्दाश्त नहीं करेगा।’’
अधिकारी पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए शीर्ष अदालत ने सभी को यह संदेश देने पर जोर दिया कि कानून से ऊपर कोई नहीं है।
न्यायालय ने कहा, ‘‘जब कोई संवैधानिक अदालत या कोई भी अदालत कोई निर्देश जारी करती है तो प्रत्येक अधिकारी, चाहे वह कितने भी उच्च पद पर क्यों न हो, अदालत द्वारा पारित आदेशों का सम्मान करने तथा उनका पालन करने के लिए बाध्य है।’’
पीठ ने कहा, ‘‘न्यायालय द्वारा पारित आदेशों की अवहेलना कानून के शासन की उस नींव पर हमला करती है जिस पर हमारा लोकतंत्र खड़ा है।’’
शीर्ष अदालत उच्च न्यायालय की खंडपीठ के उस आदेश के खिलाफ अधिकारी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसकी अवमानना अपील को खारिज कर दिया गया था। खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसमें उसे उच्च न्यायालय के आदेश की ‘जानबूझकर और पूरी तरह से अवज्ञा’ करने के लिए दो महीने के कारावास की सजा सुनाई गई थी।
एकल न्यायाधीश का आदेश उन याचिकाओं पर आया जिनमें आरोप लगाया गया कि घटना के समय तहसीलदार रहे अधिकारी ने जनवरी 2014 में गुंटूर जिले में झुग्गियों को हटाया, जबकि 11 दिसंबर, 2013 के निर्देश में उनके ऐसा करने पर रोक लगाई गई थी।
शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के उस आदेश की पुष्टि की जिसमें अधिकारी को दोषी ठहराया गया था।
हालांकि, शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के, अधिकारी को दो महीने के कारावास की सजा सुनाने वाले आदेश को संशोधित किया।
पीठ ने कहा, ‘‘हम सजा को और संशोधित करते हैं और याचिकाकर्ता को उसकी सेवा के पदानुक्रम में एक स्तर नीचे लाने की सजा सुनाई जाती है।’’
उच्चतम न्यायालय ने पहले अधिकारी से पूछा था कि क्या वह उच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना करने के लिए सजा के रूप में पदावनति के लिए तैयार हैं।
भाषा वैभव मनीषा
मनीषा
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.