(तीसरे पैरा में कुछ शब्द जोड़ते हुए रिपीट)
नयी दिल्ली, 28 सितंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक विदेशी नागरिक को उच्चतम न्यायालय में अपील करने के लिए तीन सप्ताह की पैरोल प्रदान करते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को देश की शीर्ष अदालत में प्रभावी ढंग से कानूनी समाधान प्राप्त करने का अधिकार है, जो उनकी ‘आशा की अंतिम किरण’ है।
न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर ने कहा कि अपराध की गंभीरता या मुफ्त कानूनी सहायता की उपलब्धता के आधार पर इस ‘अमूल्य अधिकार’ से वंचित नहीं किया जा सकता और जेल से ही शीर्ष अदालत के समक्ष विशेष अनुमति याचिका दायर की जा सकती है।
हत्या के एक मामले में दोषी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। दोषी ने अपनी याचिका में, इस आधार पर आठ सप्ताह की पैरोल का अनुरोध किया था कि वह उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील दायर करना चाहता है और उसे कुछ चिकित्सीय दिक्कतें हैं।
अदालत ने एक हालिया आदेश में कहा, ‘‘इस अदालत की राय है कि प्रत्येक व्यक्ति को देश के भीतर न्याय की अंतिम अदालत में अपने कानूनी समाधान को प्रभावी ढंग से लेने का अधिकार है, जो एक चुने हुए कानूनी प्रतिनिधि के माध्यम से एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) प्रस्तुत करके पूरा किया जाता है।’’
अदालत ने कहा, ‘‘यह एक अमूल्य अधिकार है जिसे केवल अपराध की गंभीरता या मुफ्त कानूनी सहायता की उपलब्धता के आधार पर अस्वीकार नहीं किया जाना चाहिए, एसएलपी जेल से ही दायर की जा सकती है…. शीर्ष अदालत को आशा की अंतिम किरण के तौर पर देखा जाता है और किसी व्यक्ति को शीर्ष अदालत तक जाने के उसके अधिकार से किसी भी कारण से वंचित नहीं किया जा सकता।’’
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता लगातार 12 साल से अधिक समय तक जेल में रहा है और उसे 25,000 रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि की जमानत राशि पर तीन सप्ताह की अवधि के लिए पैरोल पर रिहा करने का आदेश दिया जाता है।
राज्य ने याचिका का विरोध किया और कहा कि विदेशी नागरिक होने के कारण, रिहा होने पर याचिकाकर्ता फरार हो सकता है। उसने कहा कि अपराध की गंभीरता को देखते हुए पैरोल के उसके अनुरोध को पहले अस्वीकार कर दिया गया था।
न्यायमूर्ति भटनागर ने कहा कि देश की शीर्ष अदालत में उपलब्ध कानूनी समाधान का उपयोग करना याचिकाकर्ता को दिया गया विशेषाधिकार है और अदालत का उस अधिकार को रद्द करने का कोई इरादा नहीं है।
अदालत ने याचिकाकर्ता को निर्देश दिया कि वह अपेक्षित अनुमति के बिना दिल्ली न छोड़े, अपना पासपोर्ट जमा करे और जेल अधीक्षक और संबंधित थाना प्रभारी को अपना मोबाइल फोन नंबर प्रदान करे। अदालत ने उस व्यक्ति को हर तीसरे दिन थाना प्रभारी के सामने अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का भी निर्देश दिया।
अदालत ने आदेश दिया, ‘‘याचिकाकर्ता को आत्मसमर्पण के समय उच्चतम न्यायालय में दायर एसएलपी की एक प्रति जेल अधीक्षक को प्रस्तुत करनी होगी। एसएलपी की एक प्रति आत्मसमर्पण से पहले इस अदालत के समक्ष रिकॉर्ड पर भी रखी जाएगी।’’
इसमें कहा गया, ‘‘याचिकाकर्ता को अपनी रिहाई की तारीख से तीन सप्ताह की अवधि समाप्त होने पर संबंधित जेल अधीक्षक के समक्ष निश्चित रूप से आत्मसमर्पण करना होगा।’’
भाषा अमित नरेश
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