नयी दिल्ली, 10 फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को आदेश दिया कि मध्य प्रदेश की उस महिला न्यायिक अधिकारी को पद पर बहाल किया जाए जिसने 2014 में उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था और जांच के बाद पद से इस्तीफा दे दिया था। न्यायालय ने कहा कि महिला के इस्तीफे को स्वेच्छा से दिया गया त्यागपत्र नहीं माना जा सकता।
न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की पीठ ने महिला का इस्तीफा स्वीकार करने वाला आदेश निरस्त कर दिया और मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय को निर्देश दिया कि महिला को अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के पद पर बहाल किया जाए। हालांकि, शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि महिला पुराने वेतन की हकदार नहीं होगी।
पीठ ने कहा, “याचिकाकर्ता द्वारा अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश के पद से 15 जुलाई 2014 को दिया गया इस्तीफा स्वेच्छा से दिया गया त्यागपत्र नहीं माना जा सकता और इस्तीफा स्वीकार करने संबंधी 17 जुलाई 2014 को दिया गया आदेश निरस्त किया जाता है।”
पीठ ने कहा, “प्रतिवादियों को निर्देश दिया जाता है कि वे याचिकाकर्ता को अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश के पद पर बहाल करें। वह पुराने वेतन भत्ते पाने की हकदार नहीं है। उसे 15 जुलाई 2014 से सेवारत माना जाए।”
महिला की ओर से पेश हुईं वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि न्यायिक अधिकारी पर दबाव डाला गया था और उसे इस्तीफा देने पर मजबूर किया गया था। उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत को बताया कि महिला को इस्तीफा देने पर मजबूर करने वाले विपरीत माहौल की बात यौन शोषण का आरोप लगाने के चार साल बाद की जा रही है।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, जिनके विरुद्ध यौन शोषण की शिकायत की गई थी, उन्हें दिसंबर 2017 में राज्यसभा द्वारा नियुक्त एक समिति ने क्लीन चिट दे दी थी।
अपनी याचिका में महिला ने कहा था कि उच्च न्यायलय ने 15 दिसंबर 2017 की तारीख वाली न्यायाधीश जांच समिति की रिपोर्ट को नजरंअदाज किया था। रिपोर्ट में कहा गया था कि महिला ने ‘‘असहनीय परिस्थितियों के चलते अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के पद से 15 जुलाई 2014 को इस्तीफा दिया और उसके पास अन्य कोई विकल्प नहीं था।”
भाषा यश अनूप
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