नयी दिल्ली, चार अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने ‘जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट’ (जेकेएलएफ) के प्रमुख यासीन मलिक को दो मामलों में तिहाड़ जेल से वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए गवाहों से जिरह करने की शुक्रवार को अनुमति दे दी।
मलिक और अन्य सह-आरोपियों के खिलाफ दो मुकदमे जम्मू-कश्मीर से दिल्ली स्थानांतरित करने के अनुरोध संबंधी केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की याचिका पर यह फैसला सुनाया गया। इनमें से एक मामला आठ दिसंबर 1989 को तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद के अपहरण से जुड़ा हुआ है और दूसरा मामला 25 जनवरी 1990 को श्रीनगर में गोलीबारी में चार भारतीय वायुसेना कर्मियों की हत्या से संबंधित है।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने तिहाड़ जेल और जम्मू में उपलब्ध वीडियो कॉन्फ्रेंस सुविधाओं के बारे में दिल्ली उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार आईटी और जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट का अवलोकन किया।
शीर्ष अदालत ने कहा कि जम्मू सत्र अदलत में वीडियो-कॉन्फ्रेंस की पूरी व्यवस्था है। न्यायालय ने मलिक के इस अभिवेदन पर गौर किया कि वह गवाहों से जिरह के लिए वकील की सेवाएं नहीं लेना चाहता।
रुबैया को उनके अपहरण के पांच दिन बाद छोड़ा गया था और उस समय भारतीय जनता पार्टी समर्थित तत्कालीन वी पी सिंह सरकार ने बदले में पांच आतंकवादियों को रिहा किया था। रुबैया अब तमिलनाडु में रहती हैं। वह सीबीआई के लिए अभियोजन पक्ष की गवाह हैं। सीबीआई ने 1990 के दशक की शुरुआत में इस मामले को अपने हाथ में लिया था।
राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) की विशेष अदालत द्वारा मई, 2023 में आतंकवाद के वित्त पोषण संबंधी मामले में सजा सुनाए जाने के बाद से मलिक तिहाड़ जेल में बंद है।
भाषा सिम्मी शोभना
शोभना
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