नयी दिल्ली, दो जून (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) से सोमवार को कहा कि वह पक्षपात के आरोपों के मद्देनजर अदालत के एक कर्मचारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले की जांच कर रहे जांच अधिकारी को बदलने पर विचार करे।
न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला अहलमद (रिकॉर्ड के संरक्षक) की अग्रिम जमानत याचिका और मामले की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को हस्तांतरित करने संबंधी याचिका पर विचार कर रहे थे।
याचिकाकर्ता ने कहा कि उसने पहले भी संबंधित पुलिस अधिकारी के खिलाफ अधिकारियों से शिकायत की थी।
न्यायमूर्ति गेडेला ने एसीबी के वकील से कहा, ‘‘हम आपको इस बारे में सोचने की सलाह देते हैं। यह न केवल पारदर्शी होना चाहिए बल्कि पारदर्शी दिखना भी चाहिए। हम उनकी (पुलिस अधिकारी की) परीक्षा नहीं ले रहे हैं, (बल्कि) हम आपकी विश्वसनीयता परख रहे हैं। यदि पक्षपात की कोई भी आशंका है, तो उसे दूर करें।’’
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अदालत अपने किसी कर्मचारी द्वारा भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि प्रथम दृष्टया, एसीबी की स्थिति रिपोर्ट में ऐसा लगता है कि उसे (अदालत कर्मचारी को) ‘‘स्पष्ट रूप से फंसाया गया’’ है।
दूसरी ओर, याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि वर्तमान अधिकारी जांच के दौरान हर दिन उनके मुवक्किल की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं।
एसीबी ने जमानत के लिए कर्मचारी द्वारा रिश्वत मांगने की शिकायतों के बाद 16 मई को आरोपी (कर्मचारी) के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी।
अड़तीस-वर्षीय अहलमद को 14 सितंबर, 2023 से 21 मार्च, 2025 के बीच राउज एवेन्यू जिला न्यायालय में एक विशेष न्यायाधीश की अदालत में तैनात किया गया था।
अहलमद के वकील ने कहा कि उच्च न्यायालय की प्रशासनिक समिति ने पहले ही कहा था कि अहलमद के खिलाफ ‘‘कुछ भी नहीं’’ है, लेकिन याचिकाकर्ता के नौ बार जांच में शामिल होने के बाद 16 मई को प्राथमिकी दर्ज की गई।
एसीबी के वकील ने कहा कि वह मामले में कुछ और सामग्री रिकॉर्ड पर लाने के लिए स्थिति रिपोर्ट दाखिल करेंगे।
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि एसीबी ने निचली अदालत के एक न्यायाधीश को फंसाने के लिए रिश्वतखोरी की प्राथमिकी दर्ज की, ताकि ‘‘उनसे (न्यायाधीश से) बदला लिया जा सके’’, जबकि न्यायाधीश ने संयुक्त आयुक्त को नोटिस जारी कर पूछा था कि कर्मचारियों को कथित रूप से धमकाने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय में अवमानना का मामला क्यों न भेजा जाए।
सत्र अदालत ने 22 मई को उस वक्त अहलमद की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी, जब सरकारी वकील ने साजिश का पता लगाने के लिए उसे (आरोपी कर्मचारी को) हिरासत में लेकर पूछताछ करने का अनुरोध किया था।
उच्च न्यायालय के समक्ष एक अन्य याचिका में अहलमद ने प्राथमिकी और उसके बाद की कार्यवाही को रद्द करने का अनुरोध किया है।
इसके साथ ही, अहलमद ने उच्च न्यायालय से निष्पक्ष जांच के लिए इस मामले को सीबीआई को हस्तांतरित करने का निर्देश देने की प्रार्थना की।
उच्च न्यायालय प्रशासन ने 14 फरवरी को कथित रिश्वतखोरी के लिए संबंधित विशेष न्यायाधीश के खिलाफ जांच शुरू करने के एसीबी के अनुरोध को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि जांच एजेंसी के पास न्यायाधीश के खिलाफ ‘पर्याप्त सामग्री’ नहीं है।
हालांकि, एसीबी को अपनी जांच जारी रखने और विशेष न्यायाधीश की संलिप्तता दिखाने वाली कोई भी सामग्री मिलने पर प्रशासन से फिर से संपर्क करने का निर्देश दिया गया था।
भाषा सुरेश अविनाश
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