नई दिल्ली: कोरोनावायरस टास्क फोर्स में काम करने वाले आईसीएमआर के स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने कहा कि भारत में कोविड-19 लॉकडाउन का सटीक प्रभाव इस सप्ताह से ही सामने आने लगेगा.
नई दिल्ली स्थित गैर-लाभकारी सार्वजनिक-निजी संस्थान पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएचएफआई) के अध्यक्ष श्रीनाथ रेड्डी ने कहा, हम केवल प्रतिबंधों में ढील देने के बाद लॉकडाउन के प्रभाव को जानेंगे, लेकिन इन्क्यूबेशन पीरियड (संक्रमण और लक्षण दिखने का वक़्त ) के बारे में जानते हुए, लॉकडाउन का प्रभाव इस सप्ताह या अगले सप्ताह में आने लगेगा.
रेड्डी की टिप्पणी पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्र को संबोधित करने के लिए निर्धारित समय मंगलवार को 10 बजे लॉकडाउन पर एक परिप्रेक्ष्य देती है कि यह घोषणा 25 मार्च को को की गयी 21 दिन के देशव्यापी लॉकडाउन को आगे बढ़ाने के लिए हो सकती है, भले ही आंशिक रूप से बढ़ाई जाये.
तीन सप्ताह का लॉकडाउन, जिसमें लगभग सभी कार्यस्थलों को या तो बंद कर दिया गया है. घर से काम या कम लोगों के साथ काम करना हो, यह मंगलवार को समाप्त होने वाला है. हालांकि, कोरोना के मामलों की संख्या अभी भी बढ़ रही है कई मुख्यमंत्रियों ने प्रधानमंत्री से लॉकडाउन को जारी रखने का आग्रह किया है, जो केवल स्वास्थ्य सेवा और खाद्य आपूर्ति जैसी आवश्यक सेवाओं को छूट देते हैं. और अब केंद्र सरकार ने लॉकडाउन 3 मई तक बढ़ा दिया है.
पंजाब, ओडिशा और तमिलनाडु सहित कुछ राज्यों ने पहले ही 30 अप्रैल तक लॉकडाउन का विस्तार करने का फैसला किया है.
टीकाकरण की अनुपस्थिति में सामाजिक संपर्क को कम करने वाले व्यापक लॉकडाउन को कोरोनावायरस के प्रसार की जांच करने का एकमात्र तरीका माना जाता है. चीन के वुहान में पिछले साल दिसंबर में पहली बार पता चलने के बाद से दुनिया भर में 1 लाख से अधिक लोगों को होने का दावा किया है.
अब तक के आंकड़े बताते हैं कि इसने भारत में इस बीमारी को कम करने में मदद की है. स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 12 अप्रैल तक भारत में 8,447 मामले और 273 मौतें दर्ज की गईं. चेन्नई के गणितीय विज्ञान संस्थान के विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया था कि लॉकडाउन के बिना 20 अप्रैल तक मामलों की संख्या 35,000 के आसपास हो सकती है, जबकि स्वास्थ्य मंत्रालय ने 15 अप्रैल तक 8.2 लाख मामलों के बजाय संदेहयुक्त प्रोजेक्शन की पेशकश की थी.
भले ही एक विस्तारित राष्ट्रीय लॉकडाउन वायरस के प्रसार की जांच करने और इसकी वृद्धि दर को कम करने में मदद कर सकता है, लेकिन इसका अर्थ है कि लॉकडाउन आसानी से ख़त्म होने पर यह फिर से गति प्राप्त कर सकता है. लेकिन सरकार का दावा है कि लोगों को सुरक्षित रखने के लिए रणनीति है.
प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के. विजयराघवन सरकार के शीर्ष विज्ञान अधिकारी और आईसीएमआर टास्क फोर्स के सदस्य भी हैं ने कहा, भारत यह सुनिश्चित करने के लिए सब कुछ कर रहा है कि जब लॉकडाउन हटा लिया जाए तो हमारे पास इसके प्रसार को रोकने के लिए रणनीतियां हैं.
विजयराघवन ने यह भी दावा किया कि भारत में वायरस के प्रसार को रोकने के लिए उपाय किए गए थे, परीक्षण में वृद्धि के साथ-साथ संपर्कों पर नज़र रखी गई थी. उन्होंने कहा कि आरोग्य सेतु ऐप, जो आपको सचेत करता है कि अगर कोई कोविड-19 रोगी आस-पास के क्षेत्र में है. यह विशेष रूप से उपयोगी है क्योंकि इन्क्यूबेशन पीरियड के दौरान वायरस के कोई संकेत नहीं दिखते हैं और इसे फैलाना जारी रखते हैं.
आश्वासन के बावजूद विशेषज्ञ कोविड-19 की लड़ाई में एक राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की प्रभावशीलता को लेकर बटे हैं. हालांकि कुछ ने इसे कोविड -19 के प्रसार को धीमा करने का दावा किया और दूसरों का कहना है कि भारत कोरोनोवायरस के परीक्षण के लिए अपने आलसी दृष्टिकोण से निपटने में चूक गया.
‘क्या हमें लड़ाई में अंधे बनकर जाना चाहिए ?’
1,000 मामलों तक पहुंचने में भारत को 59 दिन लगे. लेकिन अगले 5,000 केस 12 दिनों में दर्ज किया गया, जो कि लगभग 17 मामलों से बढ़कर औसतन लगभग 417 हो गया.
रेड्डी ने कहा कि मामलों की बढ़ती संख्या चिंता करने वाली है, क्योंकि यह बेहतर स्क्रीनिंग की ओर इशारा करती है.
पिछले दो हफ्तों में भारत ने निजी प्रयोगशालाओं को भी शामिल कर अपनी परीक्षण क्षमता को बढ़ा दिया है. परीक्षण केंद्रों की संख्या 200 है, जिसमें प्रति दिन 18,000 परीक्षण करने की क्षमता है.
भारत ने 1.4 लाख संदिग्धों में 1.3 लाख नमूनों का परीक्षण किया है, लेकिन परीक्षण की इसकी वर्तमान दर 10 अप्रैल तक प्रति 10 लाख लोगों पर 145 परीक्षण अभी भी अमेरिका (8,220), यूके (5,280), इटली (16,725) और दक्षिण कोरिया (9,973) जैसे देशों की तुलना में बहुत कम है.
24 मार्च तक भारत केवल उन लोगों का परीक्षण कर रहा था जिनमें लक्षण हैं और कुछ देशों की यात्रा का इतिहास है इसके अलावा जो पुष्टि किए गए मामलों के संपर्क में आए थे.
पहले दो रोगियों के निदान के बाद जिन्होंने न तो विदेश यात्रा की थी और न ही संक्रमित लोगों के संपर्क में थे. भारत ने गंभीर सांस संबंधित बीमारियों के रोगियों का इलाज करने वाले स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और स्पर्शोन्मुख उच्च जोखिम वाले संपर्कों को शामिल करने के लिए अपनी परीक्षण रणनीति को व्यापक बनाया.
आधिकारिक राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन समाप्त होने के एक सप्ताह पहले 8 अप्रैल को ही यह था संभाविदत कोविड-19 के लक्षणों जैसे कि बुखार, खांसी और गले में खराश (सामान्य फ्लू से जुड़े लक्षण) के रोगियों को कवर करने के लिए दिशानिर्देशों का विस्तार किया गया था. लेकिन यह भी कोरोनोवायरस समूहों के रूप में पहचाने जाने वाले क्षेत्रों में था.
क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लोर के पूर्व प्रिंसिपल और भारत के प्रमुख महामारी विज्ञानियों में से एक जयप्रकाश मुलियाल ने कहा, ‘क्या हम एक लड़ाई में अंधे बनकर जा सकते हैं? उन्होंने कहा, ‘देश में आने वाले केवल रोगियों का परीक्षण करने पर हम स्पर्शोन्मुख रोगियों से चूक गए, अब हम नहीं जानते हैं कि वे वायरस कहां फैला रहे हैं.’
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन में दिखाया गया है कि 25 फरवरी से 2 अप्रैल के बीच पूरे 52 जिलों में किये गए जांच में अस्पताल में भर्ती 6,000 निमोनिया के रोगियों में 1.8 प्रतिशत में ही कोरोनावायरस पाया गया है.
लेकिन, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी के वैज्ञानिक और राष्ट्रीय टास्क फोर्स के सदस्य डॉ तरुण भटनागर ने कहा कि यह समस्या थी. उन्होंने कहा, अध्ययन में केवल बहुत गंभीर रोगियों को पकड़ा. हल्के मामलों के अस्सी प्रतिशत परीक्षण और अलग-थलग नहीं होते हैं, तो इससे समुदाय में संक्रमण फैल जाएगा.
नई दिल्ली स्थित थिंक-टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के एक वरिष्ठ अनुसंधान साथी ओमन कुरियन ने कहा, ‘शुरुआती लॉकडाउन एक बहुत कठिन काम है. जिसका इस्तेमाल बहुत सोच समझकर किया गया था. लेकिन इसके लिए हमें कीमत चुकानी होगी.’
उन्होंने कहा, ‘निश्चित रूप से इसने हमें रोक दिया, लेकिन व्यापक परीक्षण का उपयोग करते हुए वायरस के प्रसार की मैपिंग करके हमारे द्वारा खोए गए इन दो हफ्तों का बेहतर उपयोग किया जा सकता है.’
अब भी, भारत को बाधाओं को पार करने के लिए ज्यादा परीक्षण करने की जरुरत है. जबकि भारत ने तेजी से रैपिड एंटीबॉडी परीक्षणों के उपयोग को मंजूरी दे दी है, जो 15-30 मिनट में परिणाम दे सकता है और प्रयोगशाला सेटिंग्स की आवश्यकता भी नहीं है. यह फ्लू जैसे लक्षणों वाले रोगियों के लिए है. राज्यों के धीमी गति से निर्णय लेने पर और आपूर्ति में देरी होती है.
‘अधिक स्थानीय दृष्टिकोण की आवश्यकता ’
कई विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को एक स्थानीय दृष्टिकोण के साथ प्रयोग करना चाहिए. उदाहरण के लिए भीलवाड़ा.
पिछले महीने, राजस्थान में भीलवाड़ा कोविड-19 प्रकोप के एक हॉटस्पॉट के रूप में उभरा, जिसमें 27 सकारात्मक मामले दर्ज किए गए और दो मौतें हुईं. लेकिन राजस्थान सरकार और जिला प्रशासन द्वारा अपनाई गई रणनीति ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि कपड़ा निर्माता शहर ने एक सप्ताह में कोई भी नए कोविड-19 मामले को दर्ज नहीं किए हैं. जबकि सकारात्मक परीक्षण करने वाले 13 मरीज अब तक ठीक हो चुके हैं.
राखल गायतोंडे जो कोविड-19 पर केरल सरकार की विशेषज्ञ समिति के सदस्य हैं और एक सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ हैं ने कहा, एक भीलवाड़ा मॉडल ऑफ कन्टेनमेंट जो पूरी तरह से सकारात्मक मामलों के आस-पास के निश्चित क्षेत्रों पर आधारित है, प्रकोप के लिए एक प्रशासनिक प्रतिक्रिया की तरह लगता है. भारत को एक सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया की आवश्यकता है जो अधिक बारीक हो. इसका मतलब है कि किसी विशेष क्षेत्र में बीमारी के प्रसार के आधार पर प्रतिक्रिया की ग्रेडिंग हो.
उन्होंने कहा कि लंबे समय तक लॉकडाउन संभव नहीं है, यह गरीब पर प्रभाव डालेगा और राज्य की क्षमता पर भारी आर्थिक बोझ डालेगा.
केरल उन राज्यों में शामिल है, जो कोरोनोवायरस से निपटने में आशाजनक प्रयास कर रहे हैं. केरल में 31 मार्च तक भारत में सबसे अधिक मामले थे, अब पुष्टि के मामलों में सबसे धीमी वृद्धि दर्ज की जा रही है. 10 नए मामले रविवार और शनिवार केवल दो मामले आये हैं. इसमें रिकवर हुए मामलों की संख्या भी सबसे अधिक है और अब कुछ प्रतिबंधों के साथ आवश्यक सेवाओं को फिर से शुरू करके चरणबद्ध तरीके से लॉकडाउन को आसान बनाने की योजना बना रहा है.
गायतोंडे ने कहा कि राज्य समुदाय के स्तर का आकलन करने के प्रस्तावों को भी देख रहा है, जिसमें आबादी के अनुपात का आकलन किया जाता है और इस तरह वायरस को हराने के लिए एंटीबॉडी की जरुरत (प्रतिरक्षा) होती है.
उन्होंने कहा कि अन्य नियोजित पहलों में स्वास्थ्यकर्मियों का परीक्षण और मधुमेह, हृदय रोग जैसी पुरानी बीमारियों के प्रति संवेदनशील लोगों का एक डेटाबेस तैयार करना शामिल है. ताकि राज्य उन गंभीर रोगियों की संख्या का अनुमान लगा सके जिन्हें इसके इलाज की आवश्यकता हो सकती है.
स्थानीय दृष्टिकोण के पक्ष में गायतोंडे के सुझाव को केयर इंडिया, जो कि एक गैर-लाभकारी संस्था के तन्मय महापात्र (टीम लीड) कोविड -19 की प्रतिक्रिया पर बिहार सरकार के साथ परामर्श कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रीय लॉकडाउन के बजाय यह राज्यों के साथ एक अधिक स्थानीय दृष्टिकोण होना चाहिए, जो कि केंद्र के निर्देश के साथ अपने स्वयं के स्थानीय रोग डेटा के आधार पर अपनी प्रतिक्रिया का निर्णय ले.’
आगे के दिनों के लिए एक संभावित रोड मैप बताते हुए मुलिल ने कहा कि सरकार कम आबादी के लिए लॉकडाउन को प्रतिबंधित कर सकती है, उदाहरण के लिए वृद्ध और उन लोगों के साथ जो बीमारी के अधिक महत्वपूर्ण परिणाम भुगतने की संभावना रखते हैं.
उन्होंने कहा, जब तक वायरस चारों ओर एक अतिसंवेदनशील आबादी में रहता है. एक बार आबादी का एक बड़ा हिस्सा प्रतिरक्षा हासिल कर लेता है, तो वायरस का संचरण रुक जाता है.
मुलियाल ने कहा, ‘लॉकडाउन में ढील देकर इसे नियंत्रित किया जा सकता है. युवा लोगों की मदद से जो स्वेच्छा से शारीरिक दूरी और स्वच्छता बनाए रखते हुए और अपने घरों के अंदर बुजुर्ग लोगों को रखने के लिए काम करते हैं.
उन्होंने कहा कि यह अर्थव्यवस्था को नष्ट किए बिना जीवन की सुरक्षा करने का एकमात्र तरीका है.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)